ग्रहों की विशेषताएं
सूर्य
सूर्य सम्पूर्ण सौर मंडल का राजा है। सूर्य सम्पूर्ण जीवन, शक्ति तथा ऊर्जा का केन्द्र है। सूर्य आत्मा का चिह्न है। हिन्दू पुराणों के अनुसार सूर्य के रथ को सात घोड़े खींचते हैं। यह इस कारण से कहा गया है कि सूर्य कि किरणों में सात प्रकार के रंग विबग्योर (VIBGYOR) होते हैं।
सूर्य जब किसी महत्वपूर्ण राशि पर पहुँचता है तो हिन्दू लोग विशेष पूजा करते हैं। अप्रैल में सूर्य मेष में प्रवेश करता है और तब वैसाखी उत्तरी भारत में मनाई जाती है। इसे तमिलों के नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है।
सूर्य ‘काल पुरुष’ की आत्मा है। कार्तिक के चन्द्रमास में सूर्य तुला में प्रवेश करता है और नीच हो जाता है। सूर्य जो कि आत्मा है के अशुभ प्रभाव को रोकने के लिए, मंदिरों में प्रवचन तथा कथाओं का पाठ कार्तिक मास में किया जाता है ।
जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तो मकर संक्रान्ति पूर्ण भारतवर्ष में मनाई जाती है लोग विभिन्न नदियों में स्नान करते हैं।
सूर्य सौर मंडल का राजा है। वाराहमिहिर, जो एक महान ज्योतिषी थे, सूर्य की पूजा करते थे तथा राजा विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक थे सब जगह रविवार को अवकाश होता है। ईसाई लोग रविवार को गिरजाघर जाते हैं।
सूर्य शुष्क, रचनात्मक तथा गर्म ग्रह है। स्वभाव से उग्र है। इसका अधिपत्य पूर्व दिशा में है। यह प्रतिरोध की शक्ति प्रदान करता है। इसलिए यह ओजस्विता का ग्रह है। चालडीयन पूर्णश्रद्धा से सूर्य की पूजा करते थे। यह प्रतिनिधित्व करता है :-
सामान्य : राजा, पिता, कप्तान, शासन, निर्भीकता, वैभव, स्वास्थ्य, प्रसन्नता, आशा, राजनैतिक शक्ति, व्यक्तित्व, शान, भावनात्मकता, उत्थान, महत्वाकांक्षा, प्रसिद्ध, पूर्वदिशा ।
जब आक्रान्त हो : अंह, ईर्ष्या, अस्थिर स्वभाव, क्रोध, घमण्ड, दिखावा, जन-विरोध, व्यभिचार ।
सूर्य द्वारा शासित शरीर के अंग : हृदय, सिर, मस्तिष्क, हड्डी, दायीं आंख, मुँह, तिल्ली, गला, फेफड़े ।
रोग : हृदय-रोग, सिरदर्द, आंखों की कमज़ोरी, गंजापन, निम्न रक्तचाप, लू लगना, तेज बुखार ।
खनिज पदार्थ : सोना, तांबा, माणिक्य ।
अनाज आदि : गेंहू, गुड़ ।
फल: तीखे स्वाद का रस, संतरा इत्यादि ।
अन्य : हर्र, गोला, बादाम, मिर्चे, चमेली, सुगंधित जड़ी- बूटियाँ, केसर, चिकित्सा संबंधी जड़ी बूटियाँ, शेर, घोड़ा, तमाम गाने वाले पक्षी ।
चन्द्रमा
चन्द्रमा ग्रहों के परिवार की रानी है । ग्रह राशि चक्र की बारह राशियों की परिक्रमा अत्याधिक शीघ्र लगा लेता है। इसे 12 राशियों की परिक्रमा लगाने में 27 दिन 7 घंटे तथा 43 मिनट का समय लगता है। यह पृथ्वी के सबसे समीप है। यह पृथ्वी की परिक्रमा करता है । चन्द्रमा, सूर्य की परावर्तित किरणों से प्रकाशित होता है तथा रात के अंधकार को दूर करता है। यह महिलाओं के मासिक धर्म को नियमित करता है। इसी कारण मासिक धर्म लगभग 27 दिनों में आता है। यह महिलाओं के स्तनों का कारक है।
चन्द्रमा ठंडा ग्रह है। यह कालपुरुष के मन का प्रतिनिधित्व करता है। यह बढ़ता तथा घटता है । अतः यदि चन्द्रमा कमज़ोर है तो ऐसे व्यक्ति अस्थिर रहते हैं तथा अस्थिर बुद्धि के होते हैं। उनका स्वभाव समय बदलने के साथ बदलता है।
चन्द्रमा बचपन का कारक होता है। यदि चन्द्रमा कमज़ोर हो तो बच्चा शैशव में ही कष्ट पाता है। जल-रोगों के लिए यह महत्वपूर्ण है। इससे बच्चे के उल्टियों तथा दस्त आदि आ सकते हैं। अतः यदि जन्म के समय चन्द्रमा क्षीण/आक्रान्त हो तो जल्दी-जल्दी बीमारियाँ होती हैं
यदि व्यक्ति चन्द्रमा द्वारा होने वाली बीमारियों से पीड़ित है तो अगले अनुच्छेदों में दिए गए एक या दो पदार्थों को अर्पित करने से वह बीमारियाँ नियन्त्रित हो जाती हैं । यह प्रतिनिधित्व करता है :-
सामान्य : माँ, मन, दूध, मानसिक शांति, जन-जीवन, उच्च पदस्थ होना, पारिवारिक जीवन, जल, गर्भाधान, बच्चे का जन्म, शैशवास्था, पाश्विक वृत्तियाँ, सम्भोग, उत्तर पश्चिम दिशा ।
आक्रान्त : अनिर्णय, बहुत चिन्ता, प्रेरक, आवेग, निराशा, डर तथा हीन भावना, कमज़ोर स्मरण शक्ति ।
शरीर के अंग : रक्त, पेट, महिलाओं के स्तन
रोग :जलीय, सर्दी और बुखार, खांसी, गले की बीमारी, खूनी दस्त, अण्डकोष की वृद्धि, वमन, आँख की बीमारी, उन्माद, हिस्टीरिया, मिरगी, आँतों में कीड़े, फोड़े, गैस जलधर, बेरिं-बेरि, कालिक दर्द, मूत्र-रक्तदोष, दमा, श्वास के रोग, कैंसर ।
पदार्थ : संतरे, खरबूजे, खीरा, खजूर, घी, मक्खन, दही, दूध, चीनी, गन्ना, पान के पत्ते, चांदी
अन्य : पका खाना, नमक, चावल, क्रीम, आयातित शराब, गाय, फलों का रस, तथा मोती ।
मंगल
मंगल सेनाध्यक्ष है। यह युद्ध शक्ति को सूचित करता है। यह उग्र तथा पौरुषयुक्त ग्रह है। यह सकारात्मक तथा नकारात्मक दोनों प्रकार की ऊर्जा को व्यक्त करता है। यह भाव तथा अन्य ग्रहों के संबंध में मंगल की स्थिति तथा उनकी स्थितियों पर यह निर्भर करेगा ।
मंगल क्रूर ग्रह है। जब यह योगकारक होता है तो कार्यात्मक रूप से लाभकारी हो जाता है। योगकारक वो ग्रह है जो केन्द्र तथा त्रिकोण का स्वामी है । जब लग्न कर्क या सिंह होता है, मंगल योगकारक ग्रह होता है।
मंगल उच्चाकांक्षा तथा इच्छाओं का ग्रह है। यह बुद्धि का प्रतीक है तथा पुरुष की पाश्विक वृत्ति को शासित करता है। मंगल को अतिवादी कहा जाता है। ये बहुत बुरी चोट पहुँचाता है। परन्तु जब ये किसी की सहायता करना चाहता है तो उसके लिए जान भी दे देता है।
मंगल छोटे भाई तथा जमीन संपत्ति के लिए महत्वपूर्ण है। यह शारीरिक शक्ति तथा संगठन क्षमता को इंगित करता है। मंगल के प्रभाव के कारण व्यक्ति प्रहार करने तथा पीछे हटने का सही अवसर जानते हैं। जब मंगल कष्टदायी हो तो निम्नलिखित पदार्थ दान के रूप में अर्पित किए जा सकते हैं । यह प्रतिनिधित्व करता है :-
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सामान्य : भाई, ऊर्जा, शक्ति, व्यवाहारिक स्वभाव, जिद्दी, भूचाल, भूस्खलन, दुर्घटना, शल्यचिकित्सा, आहत, रक्त-स्राव, दक्षिण दिशा ।
जब आक्रान्त हो : उग्रता, क्रोध, झगड़ालू, शराबी, निर्दयी, चिड़चिड़ाहट, प्रचण्ड ।
शरीर के अंग : कान, नाक, सिर, बाजुओं के टिशु, गुर्दे, गॉल ब्लेडर प्रास्टेंट ग्रन्थि, गर्भाशय, कोलन, बाहरी लिंग, गुदा, अण्ड ग्रन्थि, मज्जा ।
बीमारी : ज्वर, चेचक, छोटी माता, खसरा, झुलसन, जख्म, फोड़े-फुंसी, नाक कान के रोग, उच्च रक्त चाप, रक्त स्राव, नासूर, मस्तिष्क ज्वर, विकलांगता ।
खनिज पदार्थ : लोहा और इस्पात, सोना, तांबा, मूंगा, लाल, शाल, गन्धक |
फल, सब्जियाँ अनाज, अन्य पदार्थ: अदरक, लहसुन, धनियाँ, कांटेदार पौधे, अखरोट, काजू, मूंगफली, सुपारी, तरल रसायन, ब्रांडी, विस्की, काफी, चाय, तम्बाखू, पटसन, जंगली कुत्ता, चीता, भेड़िया ।
बुद्ध
बुद्ध चन्द्रमा से बड़ा परन्तु पृथ्वी से छोटा है। यह ग्रह परिवार का राजकुमार है। सूर्य तथा बुद्ध की बीच की अधिकतम दूरी 28° हो सकती है। हिन्दू बुद्ध को भगवान केशव, नारायण, माधव इत्यादि मानते हैं। यह राजकुमार है और इसलिए छोटा है।
बच्चे की तरह यह स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं कर सकता तथा जिस ग्रह से यह सम्बन्धित होगा उसकी विशेषताएँ ग्रहण कर लेगा ।
बुद्ध सौर जालिका तथा केन्द्रीय तंत्रिकीय व्यवस्था शासित करता है। यह बुद्धिमानी का ग्रह है तथा हरे रंग का प्रतिनिधित्व करता है। यह तीव्र स्मृति के लिए जिम्मेदार है। इसके प्रभाव से व्यक्ति विनोदपूर्ण, बातूनी तथा विद्वान बनता है। इसके प्रभाव से जल्दी-जल्दी छोटी यात्राओं का मौका मिलता है।
यह कभी स्थिर नहीं रहता पर क्योंकि यह बातूनी ग्रह है इसकी वजह से अच्छे बिक्री-कर्ता, बीमा एजेन्ट तथा प्रचार एजेन्ट बनाता है। यह ग्रह व्याख्यानों तथा भाषण का है। यह ग्रह ज्योतिषियों, अंतरिक्ष यात्रियों, इंजिनियरों तथा गणितज्ञों का हैं ।
जब बुद्ध अपनी स्थिति के कारण आक्रान्त तथा कमज़ोर होता है तो वह उन बीमारियों के लिए जिम्मेदार होता है जो इसके द्वारा फैलती हैं और उन्हें नीचे दिया जा रहा है। बुद्ध नीच हो तथा उसका प्रतिकूल समय चल रहा हो तो बुद्ध द्वारा शासित वस्तुएं दान में देनी चाहिए । यह प्रतिनिधित्व करता है :-
सामान्य : बुद्धिमत्ता, तीक्ष्ण समझ, तीक्ष्ण स्मरण शक्ति, तार्किकता, तंत्रमंत्र, वाचाल, उत्तर दिशा, उर्वरक, कल्पनाएं, धारा प्रवाह अभिव्यक्ति, अनुसंधान, विश्वसनीयता, छोटी-छोटी यात्राएं, दृढनिश्चय, वक्ता, व्यापारी ।
आक्रान्त होने पर : होशियारी, चालाकी, शैतानी, झूठा, जुआरी, पथभ्रष्ट ।
शरीर के अंग : सौर जालिका, केन्द्रीय तान्त्रिक व्यवस्था, पेट, फेंफड़े, पित्तदोष पेशिय-तन्तु, त्वचा, हाथ ।
रोग : मानसिक कमज़ोरी, अधीरता, बेहरापन, हकलापन, दमा, उत्तेजना, रक्तकैंसर ।
खनिज : कांसा, सोना, चांदी, पन्ना, चूना पत्थर आदि
फल, सब्जियाँ अनाज, अन्य पदार्थ : पान की पत्तियाँ, गिरीदार फल, पालक, हरे रंग की दालें, हरी सब्जियां, हरे रंग के कपड़े, बकरी ।
बृहस्पति
बृहस्पति देव-गुरु है । गुरु अज्ञान तथा अंधकार का विनाश कर ज्ञान प्रदान कराता है। शक्तिशाली वृहस्पति उचित समय पर दैविक सहायता प्रदान करता है। कठिनाईयों को बांध कर रखता है तथा कष्टों से मुक्ति में सहायता प्रदान करता है।
वृहस्पति सामाजिक न्याय-धर्म तथा ईमानदारी का प्रतिनिधित्व करता है। यह न्याय प्रिय, सच्चा ईमानदार तथा कर्तव्य परायण होता है। यह विस्तार करने वाला ग्रह है। इसकी दशा के समय में विस्तार होता है और विस्तार के परिणामस्वरूप हमें पदोन्नति मिलती है ।
जन्मपत्री में अपनी स्थिति के कारण यदि वृहस्पति कमजोर, नीच या आक्रान्त हो तो वह बीमारी देता है। अतः वृहस्पति के दुष्परिणाम से बचने के लिए, वृहस्पति के पदार्थो को भिखारियों में बाँटना चाहिए । यह प्रतिनिधित्व करता है:-
सामान्य : धर्म, शिक्षा, शिक्षक, तंत्र, मंत्र, विधि, आदर, सच्चाई, सम्पन्नता, शांति, धन, तीर्थयात्रा, नैतिकता, बुद्धिमानी, उत्तर पूर्व दिशा, ज्योतिष शास्त्र ।
जब आक्रान्त हो : उदार, अतिवादी, खर्चीला, लापरवाह, अत्याधिक आशावाद, जुआ, अविवेकी, गरीबी, अलोकप्रिय ।
शरीर के अंग : जिगर, टयूमर, धमनियों में रक्त संचरण, शरीर में वसा, गुर्दे, जंघा, पैर, दांया कान।
रोग : जिगर की बीमारी, पीलिया, जलधर, वातग्रस्त, फोड़ा, रक्त संकुलता, नजला, मधुमेह, कूमड़ा।
खनिज पदार्थ : सोना, पुखराज, प्लाटिनम ।
फल, सब्जियाँ अनाज, अन्य पदार्थ : संतरा, केला, रबर, पीपल का पेड़, सभी पीले रंग के फूल तथा सब्जियां, चने की दाल, सभी मीठे स्वाद के खाद्यान्न, साधारण वस्त्र, पीली वस्तुएं, घोड़ा, हाथी, बैल ।
शुक्र
शुक्र को दानवों का गुरु माना जाता है। इसे सम्भोग तथा सभी भौतिक सुखों का, प्राय शय्या सुख का देव माना जाता है। शुक्र को अंधा मानते हैं। तभी तो कहा जाता है “प्यार अंधा होता है।” शुक्र मनोवेगों को शासित करता है तथा मुख्य रूप से भावनात्मक तथा चरित्र से संबंधित होता है
यह स्त्री ग्रह है। कलात्मक सुन्दरता तथा इलेक्ट्रानिक वस्तुओं के लिए यह कारक है। यह प्रसन्न चित्त व्यक्तित्व, शांति, धैर्यवान, श्रोता, शालीनता आचरण, व्यवस्थित आकृति, परिपक्व स्वभाव तथा मृदु भाषी की दृष्टि से महत्वपूर्ण है ।
- यदि शक्तिशाली हो तो विपरीत लिंग से सहायता प्राप्त होती है।
- ऐसे ही ज़ब भी मंगल शुक्र को आक्रान्त करता है तो व्यक्ति अत्यधिक कामुक हो जाता है। मंगल ऐसे अवसरों की तलाश में रहता है और उसे ऐसा अवसर मिल भी जाता है क्योंकि इसमें अवसर से लाभ उठाने की शक्ति और हिम्मत होती है।
- शुक्र विवाह का कारक होता है। वह इन्हें बना सकता है तथा बिगाड़ भी सकता है।
- यह मोटरकारों तथा धनिकों के क्षेत्र में संपत्ति के लिए महत्वपूर्ण है ।
यह प्रतिनिधित्व करता है :-
सामान्य : प्रेम संबंधों, शय्या सुख, पति तथा पत्नी, परिवारिक सुख, पहनावा, ललितकला, नेत्र, कांति, चापलूसी, आलसी, श्रृंगार, शयनकक्ष, वैश्याओं के अड्डे, आवेश, मांस तथा नशीले पेय, सौम्य, दयालु, सामाजिक, सुन्दर, सौम्य व्यवहार, शांति-प्रिय, मैत्रीपूर्ण, दक्षिण पूर्वी दिशा, मधुर आवाज ।
शरीर के अंग : ठोडी, गाल, गला, आँखें, प्रजनन व्यवस्था, गुर्दे, घुंघराले बाल ।
रोग : यौन रोग, सूजाक, गरमी, त्वचा रोग, एग्ज़ीमा, कोढ़, त्वचा कैंसर, आंखे, सूजन, अनीमिया, डिम्बग्रन्थि रोग, श्लेष्मा तिल्ली, अति सम्भोग, आंख की पुतली के रोग |
फल : अंजीर, अनार, शहतूत, चेरी, सेब, रसीले तथा स्वादिष्ट फल ।
वस्त्र तथा अन्य : सिल्क तथा रेयन, महिलाओं के लिए होज़री, कढ़ाई, सिलाई, रंग-बिरंगी वस्तुएं, सुगन्ध, सौंदर्य प्रसाधन, फोटोग्राफी, चीनी, रसायन, मिठास युक्त पदार्थ, चांदी, तांबा, शीशा, चंदन-लकड़ी, रबर, पेंट, प्लास्टिक, पेट्रोल, दूध, काफी, चाय, फूल, कार, जलयान, वायुयान, चमेली, काजू, जायफल ।
ग्रहों की विशेषताए
शनि
शनि को यम कहा जाता है। इसका रंग काला या नीला है। सभी वकील तथा न्यायाधीश काला कोट तथा काली टाई पहनते हैं। यह शनि का कार्य है कि वह पिछले कर्मों के आधार पर हम को फल देता है। जब हम दूसरों को हानि पहुँचाते हैं तो न्यायाधीश उसके आधार पर निर्णय देते हैं। पर इसका हमारे पिछले कर्मों से निश्चित रूप से संबंध है। शनि दीर्घ आयु का कारक है ।
ऐसा कहा जाता है कि यह लंगड़ा है। हमारे ऋषियों ने इसकी विशेषताओं को बहुत सी कथाआ के साथ जोड़ दिया है क्योंकि कथाओं को स्मरण रखना सुलभ होता है। ऋषियों के विचारानुसार शनि की गति बहुत धीमी है। शनि सूर्य का पुत्र है । यदि हम शनि और सूर्य की विशेषताओं का विश्लेषण करें तो दोनों को एक दूसरे के विरोधी पाएंगे। मेष में सूर्य उच्च होता है जबकि शनि नीच का, इसी तरह शनि और सूर्य कुंभ तथा सिंह के स्वामी हैं जो कि एक दूसरे के सामने राशियाँ पड़ती हैं।
शनि को नीलन तथा भगवान शिव कहा जाता है, जिनमें विनाश की शक्ति निहित है और जिन्हें नीलकंठ कहा जाता है। शनि का रत्न नीलम है । यह प्रतिनिधित्व करता है :-
सामान्य : विलम्ब, कपटी, प्रतिवाद, उत्साहहीन, त्रुटियाँ, संदेह, असामंजस्य, कठिनाई, झगड़ा, अरूचि, अवसाद, विषाद, विचारो में भेद, नीरस, निराशवादी, दूरदशिर्तता, सन्तोषी, दृढ़, आलसी, अकर्मण्यता, मेहनत, रुकावट, हीन भावना, पश्चिम दिशा ।
जब आक्रान्त हो :मदहोशी, जुआ, तूफान ।
शरीर के अंग : दांत, पैर, हड्डियां, घुटने, पसली, नाखून, गुप्त अंग, बाल ।
रोग : लकवा, पागलपन, हाथ पांव की चोट, कैंसर, ग्रन्थीय बीमारी, हृदय-वेदना, जोड़ों का दर्द ।
खनिज पदार्थ : रांगा, कोयला, नीलम, खनिज पदार्थ ।
फल और सब्जियाँ आदि : आलू, काली दाल, जौ, राई, सरसों का तेल, कच्चा तेल, शराब, काली नीली वस्तुएं, नील, ऊन, चमड़ा, पटसन, गाय, भैंस ।
राहु तथा केतु
यह छायादार ग्रह है तथा मूल रूप से ये आकाशीय पिण्ड नहीं हैं, जिन्हें किसी भी अन्य ग्रहों के आकार या पिण्ड की तरह देखा जा सके। यह प्रतिनिधित्व करते है :-
सामान्य : प्रणय क्रियाएं, बुरे विचार, नाना, स्वास्थ्य हानि, शरीर के अंग का कटना, गृह परिवर्तन, दो बार विवाह, बहिष्कृत, कीड़े, सांप, मच्छर, खटमल, कीड़े-मकोड़े, परित्याग, ईसाई, मुसलमान, कीचड़, आक्रमणकारी, ज्योतिषी, जासूस, रेडियो, बेतार पश्चिम दिशा, राजनीति, पनडुब्बी
शरीर के अंग : कूल्हे ।
रोग तथा अन्य : खांसी, पागलपन, पेट में छाले, आंतों की बीमारी, फुंसियां, गैसीय बीमारी, अत्यधिक दर्द ।
खनिज पदार्थ : लोहा, गोमेद, लहसुनिया ।
सब्जियाँ : मूली, नारियल ।
अन्य : मांस, शराब, अण्डे, पशुओं की बलि ।
राहु और त्रुटिपूर्ण रोग निर्धारण
राहु छाया ग्रह है तथा यह अदृश्य ग्रह है। इसकी इस अदृश्यता के कारण ही इसे भूत, पिशाच, गुप्त भेद, गुप्त मन्त्रणा धोखेबाजी, रेडियो तथा बेतार ध्वनि का कारक माना जाता है। ये पेट के कीड़ों का भी कारक है।
विद्युत तरंगे तथा वायु मण्डल की अन्य तरंगे दृष्टिगोचर नहीं होती तथापि उसका प्रभाव तो सर्वविदित है । अदृश्य तरंगो द्वारा किसी भी व्यक्ति की शरीर के भीतर के रोग का फोटो द्वारा पता चलाना आज आम बात हो गयी है। यदि हम सूर्य किरणों की ओर ध्यान दें तो दो किरणें जो दृष्टि गोचर नहीं होती उनका प्रभाव काफी समय से सिद्ध किया जा चुका है।
हिन्दु धर्म के अनुसार सूर्य के सात घोड़े है इन्हीं सात घोड़ों का प्रयोग न्यूटन ने अपनी पुस्तक में किया और नोबल – पुरस्कार प्राप्त किया। न्यूटन के अनुसार
यदि हम इसकी और ध्यान दें तो दो रंग अदृश्य लाल तथा अदृश्य नीला अदृश्य होने के कारण नहीं देखे जा सकते। किन्तु फोटोग्राफी तथा अदृश्य किरणों द्वारा व्यक्ति के भीतरी भागों का फोटो लेना इन्हीं किरणों द्वारा सम्भव है। सूर्य किरण पद्धति के अनुसार जो भी वस्तु जिस रंग की होती है वह अन्य रंगो को अपने में सोख लेती है लेकिन उस रंग को वापिस कर देती है। वह रंग हमारी और आता है और हम उस वस्तु का वही रंग मानते हैं।
इस प्रणाली का ध्यान रखते हुए यदि हम अदृश्य किरणों का अध्ययन करें तो जब व्यक्ति की राहु केतु की अन्तर दशा/प्रत्यन्तर दशा चल रही हो तो उस समय उसके शरीर में राहु या केतु की अदृश्य किरणें पहले ही से विद्यमान होती हैं तथा जब इन्ही अदृश्य किरणों की सहायता से हम पेट या अन्य अंगो का फोटो लेते हैं तो यह किरणें उन किरणों को वापिस कर देती हैं अतएवं वह फोटो शरीर के अदंर की ठीक वस्तु स्थिति को नहीं बता पाता और हमारी चिकित्सा प्रणाली कहती है कि सभी ठीक है लेकिन सभी सामान्य है तो फिर व्यक्ति रुग्ण क्यों? यही स्थिति अन्य परीक्षणों की भी होती है।
अतएव यदि राहु या केतु की अन्तरदशा प्रत्यन्तर दशा चल रही हो तो उस समय सभी परीक्षण सही वस्तु स्थिति नहीं दर्शाते और व्यक्ति रूग्ण रहता है। ऐसी अवस्था में यदि हम पहले राहु या केतु की शान्ति करे तो रोग का सही निदान सामने आ सकता है ।
क्या इसका प्रभाव दैवज्ञ पर भी पड़ता है? हाँ उतना ही । दैवज्ञ की अवस्था भी चिकित्सक की भांति हो जाती है और वह जन्मपत्री की समीक्षा ठीक नहीं कर पाता है। ऐसे में मेरा अनुभव है कि हमें पहले राहु या केतु की शान्ति करानी चाहिए उसके पश्चात उसकी भविष्यवाणी की जानी चाहिए।
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