व्रत द्वारा ग्रह शांति

आजकल जीवन की गति बहुत तेज है। हमारे पास बहुत से काम करने का समय ही नहीं होता और हमें समय की कमी के कारण इन्हें स्थगित करना पड़ता है। ऐसी परिस्थितियों में व्यक्ति के पास मंत्र के पाठ के लिए समय नहीं हो सकता और इस कारण वह बहुत से लाभों से वंचित रह जाता है।

मंत्रोच्चारण के समान ही एक और अस्त्र है, व्रत । ग्रह द्वारा शासित दिन में व्रत रख कर ग्रहों को शांत किया जा सकता है। कोई भी इसे कर सकता है क्योंकि इसमें समय का कोई बंधन नहीं है। ग्रहों द्वारा शासित दिन इस प्रकार हैं :-

सूर्य                          रविवार

चन्द्र                   सोमवार

मंगल                   मंगलवार

बुद्ध                    बुद्धवार

वृहस्पति        वृहस्पतिवार

शुक्र                         शुक्रवार

शनि                        शनिवार

राहू                           शनिवार / शुक्रवार

केतू                          मंगलवार

व्रत की प्रक्रिया इस प्रकार है :-

रविवार का व्रत : चंद्र राशि से या महादशा तथा अन्तर्दशा अवधि के समय सूर्य के चौथे, आठवें या बारहवें ग्रह में संक्रमण के कारण आए अनिष्टकर परिणाम से रक्षा के लिए व्यक्ति रविवार का व्रत रख सकता है। इस समय अपने त्रिक स्थान तथा अन्य ग्रहों से आक्रान्त होने के कारण सूर्य कमजोर होता है। महीने के शुक्ल पक्ष से व्रत आरम्भ किया जाए तथा अधिक से अधिक 16 रविवारों तक का व्रत रखा जाए। शाम को सूर्य अस्त होने से पहले गेहूँ का बना मीठा पकवान खाकर व्रत खोलना चाहिए। नमक वर्जित’ है। सूर्य मंत्र का पाठ इसकी एक और उपलब्धता है। मंत्र तांत्रिक या वैदिक कोई भी हो सकता है। इसका पाठ एक घन्टे तक किया जाए। 17वें रविवार को हवन किया जाए तथा प्रसाद का वितरण करना चाहिए।

सोमवार का व्रत : जब चन्द्रमा आक्रान्त हो या कमजोर हो और उसकी महादशा / अन्तर्दशा हो तो व्यक्ति सोमवार का व्रत रखे। जैसा कि ऊपर सुझाव दिया गया है, व्रत का प्रारंभ शुक्ल पक्ष से किया जाए। व्रत 16 सोमवारों तक का किया जाए। सोमवार को सफेद वस्त्र पहने जाएं। माथे पर चंदन का टीका लगाया जाए। व्रत खोलने से एक घन्टे पहले चन्द्रमा के बीज मंत्र या तांत्रिक मंत्र का पाठ किया जाए।

चन्द्रमा चावल, घी, दही तथा खीर का कारक है। अतः इन वस्तुओं के बने पदार्थों का सेवन किया जाए। व्रत शाम को खोला जाए। 17वें सोमवार को हवन किया जाए तथा प्रसाद के रूप में खीर बाँटी जाए। हवन के दौरान चन्द्र मंत्र का पाठ किया जाए।

मंगलवार का व्रत : जैसा कि हम पहले भी बता चुके हैं कि व्रत का प्रारंभ शुक्ल पक्ष के पहले मंगल से किया जाए। व्रत 16 किए जाएं और यदि व्यक्ति और भी अच्छे परिणाम प्राप्त करना चाहता है तो वह सत्रहवें मंगल को हवन कर सकता है तथा गेहूँ, गुड़ तथा अन्य मीठे पदार्थों का प्रसाद बांट सकता है।

व्रत शाम को खोला जाए तथा मीठे पकवान खाए जाएं। इससे एक घंटा पहले व्यक्ति मंगल मंत्र का पाठ करे मंगल के आक्रांत होने पर दुर्घटना या आपरेशन इत्यादि हो सकते हैं जब जन्मपत्री में यह सही स्थिति में न हो तो वह व्यक्ति के लिए समस्या ला सकता है। जब मंगल नीच हो या शत्रु राशि में इसके संक्रमण के दौरान, चन्द्र लग्न से चौथे, आठवें या बारहवें हो ।

वृहस्पति का व्रत : वृहस्पति का व्रत वृहस्पतिवार को रखा जाए। शुक्ल पक्ष में वृहस्पति का व्रत आरम्भ किया जाए। व्रत 16 वृहस्पतिवारों का रखा जाए। उस दिन पीले वस्त्र धारण किए जाएं तथा शाम को वृहस्पति संबंधी वैदिक या तांत्रिक मंत्रों का पाठ किया जाए। पूजा के बाद बेसन की बनी मीठी वस्तु ली जाए। केला या अन्य फल भी लिए जा सकते हैं। 17वें वृहस्पतिवार को हवन किया जाए तथा बेसन से बनी मीठी वस्तु प्रसाद के रूप में बाँटी जाए। जिन्हें धन की कमी है या जिनका वैवाहिक जीवन तनावपूर्ण है उन्हें वृहस्पतिवार का व्रत रखना चाहिए तथा पीले वस्त्र पहनने चाहिए।

शुक्रवार का व्रत : शुक्लपक्ष के पहले शुक्र से व्रत आरम्भ करना चाहिए। व्यक्ति शुक्र को सफेद वस्त्र धारण करे। मंत्र अध्याय में दिए गए शुक्र संबंधी वैदिक या तांत्रिक मंत्रों के बाद व्रत खोला जाए। वैदिक मंत्रों के पाठ के बाद चावल के बने मीठे पदार्थ या खीर खाई जाए। 16 शुक्रवारों तक ऐसा किया जाए तथा खीर तथा खोए के बने अन्य पदार्थ प्रसाद के रूप में अंधविद्यालय को दिए जाएं।

शनिवार का व्रत : शनि के प्रभाव देर तक चलने वाले होते हैं तथापि वे धीमें होते हैं। जिस व्यक्ति पर शनि का अशुभ प्रभाव होता है उसे शनिवार का व्रत रखना चाहिए। व्रत चन्द्र मास के शुक्ल पक्ष में प्रारंभ करना चाहिए तथा कम से कम 40 हफ्तों तक रखना चाहिए। नीले या काले वस्त्र धारण किये जायें। शाम को एक घंटे तक शनि मंत्र का पाठ करना चाहिए तथा उसके बाद उड़द दाल का मीठा प्रसाद चढ़ाया जाए। या तिल लिए जाएं। पूर्ण आहूति के समय हवन किया जाए तथा निर्धनों को मीठा हलवा तथा तिल का प्रसाद बाँटा जाए। सरसों के तेल का दीपक पीपल के पेड़ के नीचे जलाया जाए।

राहु तथा केतु के लिए व्रत : राहु तथा केतु के लिए शुक्रवार या शनिवार का व्रत रखा जाए। राहु तथा केतु को शांत करने के लिए सलेटी रंग के वस्त्र व्यक्ति को धारण करने चाहिए। चन्द्र मास की पहली पूर्णिमा के पहले शुक्रवार या शनिवार का व्रत रखना चाहिए । शाम को एक घंटे तक राहू या केतू के मंत्र का पाठ किया जाए। हरी घास को सरसों के तेल के साथ पीपल या बड़ के पेड़ के नीचे रखा जाना चाहिए। व्रत खोलने के लिए मीठे पदार्थ का प्रयोग किया जाए। राहु के प्रभाव का समय ज्यादा होता है, अतः 40 शुक्रवारों या शनिवारों के व्रत की सलाह दी जाती है। हवन किया जाए तथा मीठे पदार्थ जैसे हलवा, जलेबी तथा सलेटी रंग के अन्य मीठे पदार्थों को प्रसाद के रूप में बाँटा जाए।

व्रत द्वारा ग्रह शांति

भारत में, वर्ष के हर दिन के लिए व्रत हैं । बहुत से ज्योतिषी अपने यजमानों को चंद्र को शान्त करने के लिए सोमवार का व्रत रखने की राय देते हैं तथा खोलने के लिए उन पदार्थों की राय देते हैं जो उन ग्रहों से संबद्ध हों। अब कभी कोई व्यक्ति सोमवार को व्रत रखता है और कभी मंगल का तथा व्रत के दिनों में प्राय परिवर्तन करता रहता है।

जैसा कि हमने अन्यत्र आपको बताया है कि व्रत नए चन्द्र मास को प्रारंभ करना चाहिए। अतः यदि जब दो से अधिक ग्रह व्यक्ति को आक्रान्त कर रहे हों तो उसे कई दिनों का व्रत रखना होगा जिससे कभी-कभी उसका स्वास्थ्य खराब हो सकता है। अतः हमारे पास सोमवारों या मंगलवारों के व्रत रखने का एक सुनहरा नियम है । प्रायः हम मंगलवार का व्रत रखने की सलाह देते हैं। हमारा सिद्धान्त एकदम स्पष्ट है, व्रत के दिनों में जल्दी जल्दी परिवर्तन करने से अच्छा है कि किसी विशेष दिन का व्रत नियमित रूप से किया जाए। यह सही ही कहा गया है

एक ही साधे सब सधे, सब साधे सब जाये

जो तू सींचे मूल को, फूले फले अघाये

यदि आप एक देवता की पूजा करते हैं तो मानों सभी की करते हैं। पेड़ की पत्तियों को पानी देने से अच्छा है उसकी जड़ को सींचा जाए।

अतः हम व्यक्ति को किसी विशेष दिन का व्रत रखने का परामर्श देते हैं पर हम मंगलवार का परामर्श ही क्यों देते हैं? क्योंकि हिन्दी में मंगल से आशय है शुभ या मांगलिक । अतः मंगल का दिन व्रत रखने के लिए मांगलिक है। इसके अलावा मंगल एक ऐसा ग्रह है जो किसी भी ग्रह या जीवन को बिगाड़ सकता है तथा व्रत से शांत रहता है। व्रत के दौरान हम निम्नलिखित नियमों की राय देते हैं:-

  • सुबह दूध का एक गिलास लिया जाए।
  • जितना हो सके पानी पिया जाए ।
  • विभिन्न प्रकार के फल तथा सब्जियाँ ली जाएं यानि 2 केले, एक संतरा तथा एक सेब और टमाटर तथा गाजर जैसी सब्जियाँ शाम को ली जाएं।
  • सुबह या शाम हनुमान चालीसा का पाठ कम से कम दो बार किया जाए।

अतः व्रत का दोहरा प्रभाव पड़ता है। हमारी भक्ति बढ़ने के साथ-साथ यह हमारे पेट को भी आराम पहुंचाता है। प्रायः हम अपने पेट को छोड़कर शरीर के सब अंगों को विश्राम देते हैं, जिसमें हमेशा अतिभार रहता है । अतः व्रत अगले छः दिनों तक हमारे पाचन में हमारी सहायता करता है। अतः प्रकृति ने हमें हमारी इच्छाओं की पूर्ति के लिए, व्रत जैसा प्रभावशाली हथियार प्रदान किया है।

व्यक्तियों में एक और गलत धारणा प्रचलित है कि मंगल का व्रत स्त्रियों को नहीं रखना चाहिए। इस बारे में हमारा अनुभव भी लिखने योग्य है। हमने अनुभव किया कि व्रत से पति-पत्नी, माता-पिता तथा अन्य संबंधियों के बीच के संबंध सौहार्दपूर्ण हो जाते हैं। इससे व्यक्ति का रक्त चाप भी ठीक हो जाता है। हजारों स्त्रियाँ मंगल का व्रत रखती हैं और हमने उन पर कोई भी प्रतिकूल प्रभाव होते नहीं देखा, वास्तव में इससे तो उन्हे अत्यधिक सहायता मिली। हमारी विचारपूर्ण राय स्पष्ट है।

हमारे मतानुसार स्त्रियां श्री हनुमान की आराधना एक ईश्वरीय देवता के रूप में करती हैं। अपने पति के रुप में नहीं। क्या हमारी बहिनें, बेटियां तथा माताएं अपने भाईयों, पिताओं तथा पतियों के एक साथ नहीं रहती ? अतः हमने देखा है इस तरह के व्रत से उन्हें आश्चर्यजनक लाभ प्राप्त हुए। फिर भी हम स्त्रियों से कहते हैं कि वे मासिक धर्म के समय व्रत न रखें । हमारा यह अनुभव है कि जो स्त्रियाँ मंगलवार का व्रत रखती हैं, मंगलबार उनको मासिकधर्म नहीं होता इसका बहुत अच्छी तरह हमने अनुभव प्राप्त किया है।

व्रत रखने की एक और उल्लेखनीय बात यह है कि जो व्यक्ति प्रतिकूल समय से नहीं गुजर रहा है वह भी व्रत रख सकता है। हमें नहीं भूलना चाहिए :

दुःख में सुमिरन सब करें, सुख में करे न कोय।

जो सुख में सुमिरन करें, तो दुःख काहे को होय ।।

यानी हर व्यक्ति प्रतिकूल समय में तो ईश्वर को याद करता है पर सुख के समय नहीं । परन्तु यदि हम सुख के समय उसे याद करें तो हमें जीवन में प्रतिकूलता का सामना ही न करना पड़े।


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