मंत्र द्वारा ग्रह शांति
सबसे अधिक शक्तिशाली तथा अचूक रक्षक उपाय है भक्ति तथा ईश्वर के प्रति समर्पण की भावना, जिसके विषय में पहले विचार किया जा चुका है। यहां हम एक और समान रूप से महत्वपूर्ण तथा लगभग उसी तरह के उपाय के बारे में बता रहे हैं और वह है कार्य के लिए कुछ चुने हुए मंत्रों का जाप । मंत्र का नियमित जाप, जिसे धार्मिक भाषा में मंत्र जाप कहा जाता है, कष्टों को दूर करने का एक सुलभ उपाय है । यह एक तरह का योग है।
हमारे ऋषियों ने अनुभव किया कि संसार कुछ नहीं मात्र विभिन्न कम्पनों का मूर्तरूप है। इस तथ्य की ओर वैज्ञानिकों ने भी ध्यान आकर्षित किया परन्तु बहुत विलम्ब से । हमारे ऋषियों ने इसकी अनुभूति बहुत पहले कर ली थी । मन्त्र विभिन्न शब्दों का संयोजन है, जिनका जब उच्चारण किया जाता है तो उससे कुछ कम्पन होते हैं तथा भौतिक और आध्यात्मिक स्थलों पर कुछ प्रभाव उत्पन्न होते हैं। इन प्रभावों का यदि सही ढंग से संचालन किया जाए तो सफलतापूर्वक कष्टों का हरण होगा तथा अच्छे परिणाम उत्पन्न होंगे।
ऊर्जा को किसी भी रूप में बदला जा सकता है तथा ध्वनि की सहायता से यह महिला के गर्भाशय में प्रवेश कर सकता है तथा वह बच्चे को जन्म दे सकती है। रामायण तथा महाभारत में इस तरह की घटनाएं भरी पड़ी हैं।
पुनीत इच्छाओं के लिए इन मंत्रों की स्वीकृति देने के लिए हमारे ऋषियों ने इन्हें धार्मिक पवित्रता प्रदान की। विभिन्न कारणों के लिए उन्होंने ईश्वर को नाम दिए तथा हमारे चारों ओर जो कुछ भी हो रहा है वह किसी न किसी भगवान की अभिव्यक्ति ही है। उन्होंने खगोलीय ग्रहों तक को देवता के नाम दिए ।
सूर्य का देव अग्नि, या रुद्र है, चन्द्रमा की देवी दुर्गा है, बुद्ध, विष्णु देव द्वारा शासित होता है, मंगल देव स्वामी कार्तिकेय या हनुमान द्वारा शासित होता है। वृहस्पति के देव इन्द्रदेव हैं, शुक्र के शचि या इन्द्राणी । शनि ब्रह्मा द्वारा शासित होता है तथा राहु शेष द्वारा । उन्होंने अलग-अलग ग्रहों के लिए मंत्र आरोपित करने के साथ-साथ उनके नियन्त्रक देवताओं के लिए भी मंत्र आरोपित किए।
यहाँ यह भी कहा जाता है ये मंत्र उनके द्वारा रचित काल्पनिक पद्य नहीं हैं। उन्होंने वास्तव में इनकी अनुभूति की थी। अतः इसके नियम से हर मंत्र का एक ऋषि बन गया। शक्तिशाली गायत्री मंत्र के ऋषि, महर्षि विश्वामित्र हैं ।
मंत्र है क्या? “मंत्र अक्षरों, शब्दों, वाक्यों तथा रचना का संयोजन है। कभी कभी चुना स्त्रोत या पदबन्ध भी मंत्र कहलाता है। ये मंत्र कांतिमय ऊर्जा के पुंज हैं। ये ईश्वरीय अनुभूति के स्त्रोत हैं। हर मंत्र किसी विशेष देव या देवी से संबंधित है। यदि इन मंत्रों को सही ढंग से तथा विश्वास से किया जाये तो नियत देव या देवी प्रत्यक्ष दिखाई पड़ सकते हैं।
हमारे पास महाभारत की कुन्ती का उदाहरण है, जिसने सूर्य, वरुण तथा इन्द्र आदि से पुत्रों की प्राप्ति की । ये मात्र धार्मिक कथाएं नहीं हैं। मनीषी जो हर मंत्र के ऋषि कहे जाते हैं, ऐसे पुरुष थे, जो वास्तव में देवताओं की आत्मा को भौतिक रूप में रूपान्तरित करते थे। वे इन सबों को देखते थे। उन्होंने मन्त्र – जाप की विभिन्न तकनीकें विकसित कीं।
जप चार तरह के हैं। आरोही सामर्थ्य के क्रम में इस प्रकार हैं (1) वैखारी (2) उपांशु (3) मानसिक तथा (4) अजपा ।
- जब मन्त्र का उच्चारण सुनाई पड़ता है तो उसे वैखारी कहते हैं ।
- जब उच्चारण सुनाई नहीं पड़ता केवल होठों की हरकत दिखाई पड़ती है तो उसे उपांशु कहते हैं।
- जब न तो उसका उच्चारण सुनाई पड़े और न होठों की हरकत तो उसे मानसिक आवृत्ति कहते हैं ।
- अन्ततः अजपा में, प्राणों के श्रवण द्वारा सांस के माध्यम से जप स्वतः जारी रहता है।
दूसरे शब्दों में हमें अपनी क्षमता तथा अन्तः शक्ति के अनुसार जप को अपनाना चाहिए। अणु जैसी शक्ति के लिए जप अजपा मंत्र के समान होना चाहिए। सभी मंत्रों के बारे में यह सत्य है।
अपने विषय पर पुनः लौटते हुए दैवज्ञ के पास हर अवसर के लिए और हर समस्या के लिए मंत्रों का कोष होना चाहिए और किसी विशेष प्रभाव के लिए व्यक्ति को उपयुक्त मंत्र देना चाहिए। मंत्र देने से भी अधिक आवश्यक है उसका सही उच्चारण। ऐसा इसलिए कि ये मंत्र आमतौर से संस्कृत में है, जो एक ऐसी भाषा है जिसे दुर्भाग्यवश हम पूरी तरह भूल चुके हैं।
हमने देखा है कि बहुत सी पत्रिकाओं तथा पुस्तकों में भी शब्दों का उच्चारण सही नहीं है, इसका कारण है लेखक में संस्कृत ज्ञान का अभाव या प्रकाशन की त्रुटि होना। यह सत्य है कि मंत्र दूसरी भाषाओं में भी हो सकते हैं पर उनकी संरचना के लिए हमें पुराने समय जैसे महिमामय गुरु महर्षि चाहिए।
मंत्र द्वारा ग्रह शांति
संस्कृत के अलावा अन्य भारतीय भाषाओं के कुछ मंत्रों की हमें जानकारी है और जब हमें ऐसा अनुभव होता है कि ये व्यक्ति की कार्य सिद्धि के योग्य होंगे तो हम उनका अनुमोदन करते हैं। पंजाबी में हमारे पास सुखमणि साहब तथा जपजी साहब. हैं । हिन्दी में सन्त तुलसीदास द्वारा रचित कई मंत्र हमारे पास हैं । यहाँ कुछ ऐसे मंत्र दिए जा रहे हैं जिन्हें तुलसीदास कृत रामचरितमानस से लिया गया है :-
- जीवन–यापन के लिए:
विस्व भरन पोषन कर जोई, ताकर नाम भरत अस होई ।
- सम्पत्ति प्राप्ति के लिए:
जे सकाम नर सुनहिं जे गावहिं, सुख सम्पत्ति नाना विधि पावहिं ।
- मुकदमा जीतने के लिए:
पवन तनय बल पवन समाना, बुधि विवेक विग्यान निधाना।
- ज्ञान प्राप्ति के लिए:
छिति जल पावक गगन समीरा, पंच रचित अति अधम सरीरा।
- आत्म रक्षा के लिए:
मोरे हित हरि सम नहिं कोऊ, एहि अवसर सहाय सोई होऊ।
- भूत–प्रेतों तथा दुष्ट आत्माओं को भगाने के लिए
भूत-पिशाच निकट नहीं आवे, महावीर जब नाम सुनावे।
बहुत से मंत्रों में से ये कुछ हैं जिनका पाठ अपेक्षाकृत कम पढ़े-लिखे व्यक्ति भी कर सकते हैं। इन मन्त्रों की कार्य प्रणाली के विषय में कोई संदेह नहीं । हमें इन सब का अनुभव करने के हजारों अवसर प्राप्त हुए हैं। कठिनाई यह है कि कुछ मामलों में फल प्राप्ति में विलम्ब होता है। ये समयबद्ध हैं पर प्रभाव दिखाने में इन्हें ज्यादा समय लगता है।
आज हम पराध्वनिक युग से गुजर रहे हैं। सबको हर विषय में शीघ्रता है। शीघ्र फल प्राप्ति के लिए हमें कठिन श्रम करना पड़ेगा। तंत्र द्वारा शीघ्र फल प्राप्त किया जाता है। तांत्रिक मंत्र भी होते हैं ।
श्री हनुमान के कुछ विशेष मंत्र निम्न हैं :-
श्री हनुमान चालीसा: जो भक्त श्री हनुमान जी की आराधना करते हैं उन्हें रोज हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए। हनुमान चालीसा, हनुमान अष्टक तथा श्री बजरंग बाण आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। हम उन्हें जानबूझ कर यहाँ नहीं दे रहे। इसका पाठ नित्य सुबह और शाम करना चाहिए। मन्त्र का पाठ करने के सामान्य नियमों पर अन्यत्र और प्रकाश डाला गया है।
श्री हनुमान अष्टक या संकट मोचन: जब व्यक्ति के पास आशा की कोई किरण न रह जाए तो संकट मोचन का पाठ एक दिव्य अस्त्र सिद्ध होता है। अष्टक से विदित है कि संबंधित व्यक्ति बहुत दुःख में है और वह श्री हनुमान के कार्यों की प्रशंसा करता है।
यह बहुत प्रभावशाली है परिस्थितियों के अनुसार संख्या को बढ़ाया या घटाया जा सकता है। इसका पाठ दिन में 101 बार कर सकते हैं। बड़ी समस्याओं के मामले में, परिवार के सभी सदस्यों को एक साथ या अलग–अलग इसका पाठ करना चाहिए। इसका प्रभाव हमेशा होता है। यह मेरा बीस वर्ष से भी अधिक का अनुभव है। मंगलवार का व्रत रखने से व्यक्ति को और अधिक तथा शीघ्र फल मिलेगा ।
श्री हनुमान का बीज मंत्र इस प्रकार है :-
- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं श्री महावीराय नमः
एक बार पुनः परामर्श दिया जाता है कि मंत्र का पाठ करने से पहले, मंत्र पाठ की सामान्य प्रक्रिया को ध्यान में रखना चाहिए । हम इसकी संख्या सीमित करना नहीं चाहते। इसका पाठ अजपा मंत्र की तरह किया जाए।
रोगों के लिए मंत्र
महामृत्युंजय मंत्र 6 प्रकार के हैं। धनेश एवं सप्तमेश मार्केश है तथा इनका पाठ उन की अर्न्तदशा के समय करना चाहिए। इन ग्रहों से सम्बन्धित ग्रह भी मार्केश की तरह कार्य करते हैं। अतः जब विपरीत समय चल रहा हो, और स्वास्थ्य को हानि कर रहा हो तो ऐसी स्थिति में पहले से ही मंत्र का पाठ करना चाहिए। मंत्र इस प्रकार है :-
- ऊँ जूँ सः
- ॐ हौं जूं सः
- ॐ जूं सः मा पालय पालय
- ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धि पुष्टि वर्धनम, उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात । ऊँ स्व भुवः भू. ॐ सः जूँ हौं ॐ
- ॐ हौं ॐ जूँ ऊँ सः ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ त्र्यंम्बकं यजामहे सुगन्धि पुष्टि वर्धनम उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात, ऊँ स्वः ॐ भुवः ॐ भूः ॐ सः ऊँ जूँ ऊँ ह्रौं ऊँ
- ऊँ ह्रौं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं ॐ सुगन्धि पुष्टि वर्धनम् ॐ भर्गो देवस्य धीमहि ऊँ उर्वारूकमिव बन्धनान् ऊँ धियो योन प्रचोदयात ॐ मृत्यो र्मुक्षीय माऽमृतात ऊ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूँ हौं ऊ ।
उपयुक्त में से किसी भी मन्त्र का एक लाख बार पाठ किया जाए। यह नोट किया जाए कि पाठ की समाप्ति पर हवन अवश्य किया जाए। जप किसी अन्य द्वारा पैसा दे कर भी कराया जा सकता है, जिनके पास पर्याप्त समय न हो। अंतिम मंत्र बहुत प्रभावशाली है, परन्तु यदि हम तीसरे मन्त्र का पाठ भी नित्य करें तो पाठ करने वाले को लाभ पहुँचेगा। निम्न दोहे का जाप भी बहुत प्रभावशाली है:-
नाशै रोग हरे सब पीड़ा, जपत निरन्तर हनुमत वीरा।
लक्ष्मी, कुबेर की कृपा प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित में से किसी मन्त्र का जाप करना चाहिए :-
- ॐ महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्नयै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ।
- ॐ नमो धन दायै स्वाहा
- ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नमः
कार्तिक पूर्णिमां के मास में उपर्युक्त में से किसी एक मन्त्र का जाप करना चाहिए। इसका एक लाख बार जाप करना चाहिए और इसके बाद नियमित रूप से। मंत्रों के पाठ की विधि को आगे दिया गया है। इसका पालन किया जाए।
तनावयुक्त वैवाहिक संबंध: तनावयुक्त वैवाहिक संबंध के मामले में, निम्न मन्त्र बहुत प्रभावशाली होता है :
ॐ क्लीं त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धि पतिवेदनम ।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात ।। क्लीं ॐ
महिलायें इस मन्त्र का पाठ नित्य करें। जो इसका पाठ करेंगे उन्हें इसके प्रभाव का पता लगेगा। यदि इस विषय में सास या कोई अन्य व्यक्ति हो तो पति के स्थान उसका नाम जोड़ दिया जाये ।
मन्त्र कैसे कार्य करता है
प्रसारक से तरंग ज्यों-ज्यों दूर होती जायेगी तरंग की शक्ति कम होती जायेगी । तरंग प्रसारण तल भी कई प्रकार के होते हैं जैसे क्षितिजीय (Horizontal), वृत्तीय (Circular), दीर्घ वृत्तीय (Elliptical) | वृत्तीय प्रसारण में रेडियो तरंग के आधार पर तरंग दो गुनी प्रवर्धित होकर प्रसारित की जाती है और दीर्घ वृत्तीय प्रसारण में तरंग आधी रह जाती है। क्षितिजीय प्रसारण में जैसी तरंग हो वैसी ही रहती है। मन्त्र तरंगो में कुछ विरोधी ग्रहों के बीच में आने से दीर्घवृत्तीय (Elliptical) प्रभाव हो जाता है तथा तरंग का प्रभाव आधा रह जाता है ।
परन्तु जिस क्षेत्र में दो ग्रहों का ग्रहण प्रभावित हो वहां मन्त्र तरंगे वृत्तीय प्रसारण नियम को अपनाती है और द्विगुणित हो जाती हैं। प्रवर्धन के कम या अधिक होने के नियम क्षयीकरण के अन्तर्गत आते हैं।
क्षितिजीय प्रसारित (Horizontally Polarised) तरंग पृथ्वी (क्षितिज) के समान चलती हैं, जो प्रसारित किया गया था । मन्त्रों में इन्हीं तरंगो का प्रयोग किया जाता है। वृत्तीय तरंग पृथ्वी धातु अथवा ग्रह से बिना प्रभावित हुए पार जाती है।
स्कूटर का पहिया एक मिनट में कई हजार चक्कर लगा सकता है लेकिन गियर पद्धति के द्वारा वह मात्र कुछ चक्कर भर लगा पाता है इसे भी क्षयीकरण कहते हैं।
रेडियो में छोटी तरंग तथा बड़ी तंरग की बात आती है । छोटी तरंग की आवृत्ति बहुत अधिक होती है। ज्यों-ज्यों तरंग छोटी होती जाती है, आवृत्ति बढ़ती जाती है। इस प्रकार आवृत्ति सामान्य, मध्यम तथा सबसे अधिक हा जाती है। ज्यों-ज्यों आवृत्ति बढ़ती है है तरंग दैर्ध्य (Wavelength) की लम्बाई घटती जाती है। इसी आधार पर जिस प्रकार ये तरंगे अपना कार्य करती है उसी प्रकार मन्त्र की तरंगे अपना कार्य करती हैं तथा ग्रहों के तरंगो को पुनः आकाश की ओर वापिस भेज देती हैं।
तंत्र तथा तांत्रिक दोनों ही शब्द अत्याधिक भयानक तथा अपशब्द के रूप में प्रयोग होते हैं। तांत्रिक आमतौर से उन्हें कहा जाता है जो 5 मकार अर्थात 1. मद्य 2. मत्स्य 3. मांस 4. मुद्रा तथा 5. मैथुन की कामना करते हैं। वास्तव में यह सही नहीं है। तंत्र का सीधा-सादा अर्थ है। तंत्र वह व्यवस्था है जो हमें रूकावटों को हटाने के लिए शक्ति को जागृत करने की विस्तृत जानकारी देती है। तंत्र में मंत्र भी शामिल होते हैं तथा यह अनुष्ठानों के व्यवस्थित रूप का समूह है। तंत्र तथा तांत्रिक के सही बोध के लिए पाठकों को परामर्श दिया जाता है कि तंत्र कौमुदी, शक्ति संगम, रुद्रयमा, तंत्र तत्व, महानिर्वाण आदि पढ़ें। तांत्रिक मंत्रों तथा अन्य मंत्रो में अन्तर होता है कि पहले वाले मंत्र के बीज होते हैं जबकि दूसरे वाले में बीज नहीं होते। इसे इस तरह समझाना अधिक आसान होगा कि एक मामले में हम बीज लगाते हैं तथा दूसरे में हम पौध लगाते हैं। दोनों ही विशाल वृक्ष बन जाते हैं पर इनमें अन्तर होता है।
तांत्रिक मंत्र साधारण मंत्र के मुकाबले कम समय में वृक्ष के रूप में बढ़ जाएगा। तांत्रिक मंत्रों को गुरु से सीखना चाहिए तथा इनका अभ्यास, पाठ तथा जाप सही ढंग से गुरु के मार्ग दर्शन में करना चाहिए परन्तु यहां हम पाठकों के लाभ के लिए जिन्होंने तांत्रिकों का सूत्रपात नहीं किया है सब ग्रहों के मंत्र दे रहे हैं। इन मंत्रों के सही उच्चारण का अभ्यास आवश्यक है। कुछ मिनटों तक, एक बार बैठ कर पूरा किया जा सकता है। उच्चारण के अलावा इन मंत्रों के लिए अन्य अनुष्ठानों की ज्यादा जरुरत नहीं है।
ये बहुत ही नाजुक मंत्र हैं तथा पूरी सावधानी तथा सतर्कता से इनका प्रयोग होना चाहिए। उदाहरण के लिए सरसरी तौर से किए जप से लाभ के स्थान पर हानि की अधिक आशंका है।
मंत्रों के जाप की प्रक्रिया
मंत्रों के बारे में और अधिक बताने से पहले इनके जाप की प्रक्रिया के बारे में कुछ बताना जरुरी है। मंत्रों के उचित जाप से अद्भुत तरंगें उत्पन्न होती हैं। इन तरंगों का स्वरूप बिजली के करन्ट की तरह होता है। जो व्यक्ति इनका पाठ करता है, उसके शरीर के माध्यम से सांस की गति के परिवर्तन तथा अन्य शुद्धिकर विधियाँ घटित होती हैं।
जैसे हम बिजली के करन्ट को अर्थ दिए बिना सर्किट को पूरा नहीं मानते तथा सतर्कता बरतते हैं कि यह करन्ट पृथ्वी में न जाये वैसे ही हमें पद्मासन या सुखासन में ही उनके जाप करने के बारे में सावधानी बरतनी चाहिए। हमें नगे फर्श पर नहीं बैठना चाहिए। यदि हम नंगे जगह में बैठ गए तो कोई भी लाभदायक फल प्राप्त नहीं होगा क्योंकि मंत्रों द्वारा उत्पन्न करन्ट पृथ्वी में चला जाएगा। अतः साधक तथा पृथ्वी के बीच रोधक रखना जरुरी है। लकड़ी की चौकी, पशु-चर्म या कंबल आदि पर बैठ कर मंत्र जाप किया जा सकता है। विभिन्न वस्तुओं पर बैठने से एक ही मंत्र के अलग-अलग परिणाम निकलते हैं।
मोहन (सम्मोहन) को प्राप्त करने के लिए तथा वश्य (दूसरों को अधीन रखना) व्यक्ति को कुशा (घास) पर या सफेद कंबल पर बैठना चाहिए। वश में करने के लिए लाल रंग का प्रयोग करना चाहिए तथा सभी कार्यों के लिए सफेद चादर की अनुमति दी जाती है। इसे पद्मासन की मुद्रा में करना चाहिए ।
देखा गया है कि विभिन्न आसनों पर बैठ कर एक ही पाठ के विभिन्न फल मिलते हैं। जहां तक हमारे सुझाव का प्रश्न है हम यहां स्पष्ट कर दें हमारी मुख्य धारणाएं हैं
- व्यवहारिकता तथा
- जहां तक संभव हो सके मंत्र के दुष्ट परिणामों से बचना।
इस काम के लिए हिरण की खाल सबसे उत्तम होती है। हमें पता है कि हिरण की खाल को प्राप्त करने के लिए भाग-दौड़ करनी पड़ती है। सभी इसे प्राप्त नहीं कर सकते। सामान्य शिकारियों के लिए भी इसे प्राप्त करना बहुत कठिन है क्योंकि सरकार द्वारा वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए बहुत से उपाय किए गए हैं।
हम कंबल के सामान्य आसन का परामर्श करते हैं। सभी तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए यह सुन्दर चुनाव है। यदि साधक-गण कंबल के आसन पर बैठ कर मंत्रों का पाठ करें तो इसके उत्तम परिणाम निकलेंगे ।
आसन के चुनाव के बाद प्रश्न उठता है दिशा का । जो आसन के मामले में सत्य है वही दिशा के मामले में भी। वही गुरु गीता कहती है विभिन्न दिशा की ओर किए गए मुख से परिणाम भी विभिन्न होते हैं। इस आशय के लिए एक श्लोक यहां प्रस्तुत किया जा रहा है :-
उत्तरे शान्ति कामस्तु वश्ये पूर्वमुखो जपेत
दक्षिणं मारणं प्रोक्तं पश्चिमे च धनागमः
इस श्लोक का शब्दार्थ है उत्तर दिशा में मुख कर जप करने से शांति प्राप्त होती है, पूर्व दिशा की ओर करने से व्यक्ति दूसरे को आकर्षित करता है, दक्षिण दिशा की ओर करने से व्यक्ति दूसरों को चोट पहुंचा सकता है तथा पश्चिम दिशा की ओर करने से व्यक्ति को अपार संपत्ति की प्राप्ति होती है।
यह भी कहा जाता है जब तांत्रिक तरीके से कुछ मंत्रों का पाठ किया जाता है तभी उपर्युक्त में अच्छाई रहती है। जहां तक हमारा प्रश्न है, हमें पता है बहुत से लोगों को पूर्व और पश्चिम के अलावा अन्य दिशाओं के बारे में जानकारी नहीं होती। उन्हें इन दिशाओं का ज्ञान इसलिए होता है कि सूर्य पूर्व से निकलता है और पश्चिम में छिपता है। यदि वे पूर्व की ओर मुख कर खड़े हो जाएं तो उन्हें पता नहीं लगेगा कि उनके दाएं और बाएं कौन सी दिशाएं हैं। हमने अपना ही आधार अपनाया है। क्योंकि सूर्य में जीवन दायक शक्ति है अतः जिस ओर भी वह है उस ओर होने से निश्चय ही लाभ प्राप्त होगा।
अतः हम पूर्वाह्न में पूर्व दिशा की ओर तथा अपराह्न में पश्चिम दिशा की ओर मुख कर मंत्रों के पाठ की अनुमति देते हैं। मंत्रों से हमारा तात्पर्य विभिन्न उपग्रह तथा ग्रहों के रूप में हमारे सम्मुख आए परमेश्वर को संतुष्ट करना है। इन मामलों में उपर्युक्त श्लोक से इंगित दिशाओं का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। पाठ के लिए उत्तर दिशा तक को अपनाया जा सकता है।
मंत्रों के जाप या पाठ के लिए एक और आवश्यक वस्तु है, उनका समय। हमारे पुरातन ऋषि और महर्षि कोई भी समय अपना सकते थे और इस बारे में पूर्णतः सन्तुष्ट थे । उनका जीवन साधारण था समस्याएं ऐसी थीं जिनका सहज हल हो सके।
आजकल जीवन की गति तेज या कहना चाहिए अत्यधिक तेज है। यदि हम जप के लिए निश्चित तथा सही समय निर्धारित करना चाहें तो बहुत ही कम लोग ऐसा कर पाएंगे। ग्रहों को शांत करने के लिए हम सामान्यतः वृहद् पराशरी से मंत्रों के जप के लिए मार्ग दर्शन प्राप्त करते हैं।
सूर्य दिन में सबसे अधिक शक्तिशाली होता है। यदि हम किसी से सूर्य का पाठ दोपहर में करने के लिए कहें तो वह कर नहीं पाएगा क्योंकि इस समय वह अपने साथियों के साथ अपने कार्यालय के काम में व्यस्त होगा। वहां वह पाठ नहीं कर सकता। इन सब कठिनाईयों को ध्यान में रखते हुए हमारा सुझाव है कि सूर्य मंत्र का पाठ प्रातः करना चाहिए । प्रातः से तात्पर्य है 3 बजे से सूर्योदय तक के बीच का समय या सूर्योदय के बाद तक का समय।
हम कहना चाहते हैं कि पूर्वाह्न का समय निर्धारित करने में हम गलत नहीं हैं। यह वह समय होता है जब सूर्य शक्ति अर्जित करना शुरू करता है। यह विश्वास करने योग्य है कि हर क्षण के साथ सूर्य के मंत्र का पाठ, शक्ति ग्रहण करना प्रारम्भ कर देगा। महर्षि पराशर ने कहा है :
निशायां बलिश्चन्द्र कुज सौरा भवन्ति हि
सर्वदाज्ञो बलो ज्ञेयो दिन शेषा द्विजोत्तम
शाब्दिक अर्थ है चन्द्रमा, मंगल तथा शनि रात्रि में शक्तिशाली होते हैं, सूर्य, वृहस्पति तथा शुक्र दिन के समय और बुद्ध सदैव ।
उपर्युक्त के अनुसार ग्रहों के अनुसार उपयुक्त अवधि प्रातः या संध्या की होती है।
हम घड़ी के समय के अनुसार नहीं चलना चाहेंगे क्योंकि बहुत से व्यक्ति ऐसा नहीं कर पाएंगे। अधिक से अधिक परामर्श इस संबंध में हम यही दे सकते हैं, प्रातः सूर्योदय से पहले तथा शाम को सूर्य अस्त होने के बाद। हम यह नहीं कहते कि सूर्योदय से पहले या बाद इतने घड़ी या रात्रि के दौरान इतने घड़ी। निश्चित समय कि तर्कसंगति या शुचिता के बारे में हम कोई तर्क देना नहीं चाहते। साधारण व्यक्ति के लिए साधना को सुलभ बनाना ही अभिप्राय है ।
एक और प्रश्न उठता है मंत्र जाप के प्रारंभ करने के समय के बारे में। दूसरे शब्दों में साधना प्रारम्भ करने के लिए शुभ समय की आवश्यकता होती है और अधिक स्पष्ट रूप से कहा जाए तो हम उन्हें साधना आरम्भ करने के लिए विशेष मुहूर्त बताते हैं। इन विषयों में प्रायः लोग नक्षत्र के अनुसार काम करते हैं यानी रोहिणी नक्षत्र में हमें यह करना चाहिए तथा आर्द्रा नक्षत्र में यह नहीं करना चाहिए। यहां चुनौती देने के लिए हमारे पास कोई प्राधिकार नहीं हैं। प्रश्न सिर्फ आज की परिस्थितियों के अनुसार व्यवहारिकता का है। यदि हम कहें कि किसी विशेष मास के किसी विशेष नक्षत्र में तथा किसी विशेष पक्ष ( पखवाड़ा) तथा तिथि को जप प्रारंभ करना चाहिए तो कितने लोग इसे समझ पाएगें।
ऐसी परिस्थितियों में हमारा परामर्श है कि महीने के शुक्ल पक्ष या बढ़ते चाँद के समय जप आरम्भ करना चाहिए। जहां निश्चित समय आवश्यक होता है हम उन्हें पचांग के गणित से घर में अध्ययन कर बताते हैं ।
अंतिम रूप से इस विषय पर बात समाप्त करने से पहले उस व्यक्ति या पात्र के बारे में अभीष्ट होगा जिसके द्वारा इस साधना को प्रारंभ किया जाना है। पात्र से हमारा तात्पर्य जाति या धर्म मत या किसी और वस्तु से नहीं है। जिस व्यक्ति द्वारा मंत्रों का पाठ किया जाना है उसकी क्षमता तथा योग्यता की परख मार्ग दर्शक या अध्यापक या शिक्षक या गुरु द्वारा की जानी चाहिए।
यदि किसी अशिक्षित व्यक्ति को संस्कृत में मंत्रों के पाठ का काम दे दिया जाए तो वह मंत्रों का उच्चारण सही नहीं कर पाएगा। ऐसे मामलों में संस्कृत के श्लोकों के पाठ का काम ऐसे व्यक्ति को नहीं देना चाहिए।
संस्कृत के श्लोकों की बात छोड़िए इनमें से बहुत से तो हनुमान चालीसा तथा संकट मोचन का पाठ भी सही ढंग से नहीं कर पाएंगे। ऐसे मामलों में हमें कोई न कोई तो निष्कर्ष निकालना होगा।
ऐसे मामले में उस विशिष्ट देवता की आरती गाने के लिए कहा जाता है। आजकल हर देवता की आरती हिन्दी में मिलती है। उसे प्रतिदिन नियमित रूप से कई बार आरती गाने के लिए कहा जाता है। यह सत्य है कि यह मंत्र के समान कारगर नहीं हैं किन्तु यह भी प्रभावी है जिसे हमें मानना चाहिए।
मंत्रों के पाठ का लक्ष्य है शक्ति तथा तरंगें। यदि किसी कारण से तरंग लाभ नहीं हो तो भक्ति काम कर सकती है पर कठिनाई यह है कि यह एक बहुत ही धीमी प्रक्रिया है और इससे जल्दी काम नहीं किया जा सकता। “सहज पके सो मीठा होये ।” उसे उसकी सीमाओं के बारे में साफ-साफ बता देना चाहिए ताकि वह प्रारम्भ में ही उच्च सफलता के सपने न संजोने लगे ।
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