विविध ग्रह शांति प्रायोग
क्या भाग्य को बदला जा सकता है? दो बहुत ही रामबाण उपाय जो किसी भी बुरे वक्त को अच्छे वक्त में बदल सकते हैं – वे हैं दान और नाम (जप) सब उपायों में दान सर्वश्रेष्ठ है और दान करने से किसी भी प्रकार का कष्ट क्यों न हो उसका निदान अवश्य निकल आता है।
उसी बात को ध्यान में रखते हुए हमारे ऋषियों ने हर ग्रह का जिन वस्तुओं में अधिकार है उनके विषय में विस्तार पूर्वक लिखा है। अंतएव कोई भी ग्रह न तो बुरा होता है न भला परन्तु कब ग्रह हानि करता है और कब ग्रह लाभ देता है यह तो दैवज्ञ ही बता सकता है। एक कवि ने कहा है-
बसे बुराई जाको तन, ताको कर सम्मान।
भले-भले ग्रह छोड़िये, बुरे ग्रह जप दान।
जिस व्यक्ति के तन में बुराई होती है भयवश कोई भी उसका अनादर नहीं करता अपितु उसे प्रणाम करता है, इसी प्रकार जो ग्रह क्रूर होते है उनसे मुक्ति के लिए दो कारगर उपाय नाम और दान बताये हैं। दान व्यक्ति के अहं को समाप्त कर उसको प्रभु की शरण में ले जाता है और फिर व्यक्ति को लाभ ही लाभ। उपाय द्वारा किस प्रकार इन व्यक्तियों को आत्म ग्लानि से मुक्ति मिली और किस प्रकार उन्हें सम्मान प्राप्त हुआ ये नीचे लिखी कथाओं से स्पष्ट होगा ।
यह कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है जो उच्च अधिकारी था। उसे रिश्वत लेने के जुर्म में फंसाया गया था और इसी के फलस्वरूप उसे निलम्बित कर दिया गया था। उसकी गलती यह थी कि वह उन व्यक्तियों के समूह में नहीं मिला जिनके लिए नैतिक मूल्य का कोई अर्थ ही नहीं था। उसका नैतिक आचरण ही उसका शत्रु हो गया। वे (अन्य कर्मचारी) सदैव अपने को असुरक्षित समझते थे तथा उसको अपने मार्ग का कांटा समझते थे और किसी भी प्रकार इस कांटे को निकालना चाहते थे।
वे (कर्मचारी) सफल हुए। उसे निलम्बित किया गया। न्यायालय में मुकदमा चला। भाग्य ने उसका कुछ साथ दिया। योग्य न्यायधीश ने उसे निर्दोष पाया और सम्मान पूर्वक उसे मुक्त कर दिया। इसके पश्चात् भी उसकी नियुक्ति नहीं हो पाई। उसने कार्यालय में बार-बार न्याय की प्रार्थना की किन्तु किसी के कान पर जूं भी न रेंगी। पहले ही उसकी काफी मानहानि हो चुकी थी। अब समस्या और भी बढ़ गई थी। निर्दोष होते हुए भी वह अब लोगों की दृष्टि में दोषी लगने लगा था। वह एक योग्य आफिसर था। उसे जीवन का कटु अनुभव था अतएव उसने न्यायालय का दरवाजा दुबारा नहीं खटखटाया।
ऐसी ही विषम परिस्थितियों में वह मेरे पास अपनी कुण्डली की समीक्षा के लिए आया। उसकी जन्म कुण्डली इस प्रकार है ।

लग्न का स्वामी मंगल पंचमेश सूर्य एवं षष्ठेश बुध के साथ पंचम में विराजमान है। दशमेश व्यय भाव में और व्ययेश और एकादशेश का राशि परिवर्तन योग है।
साथ ही गुरु और राहु का दृष्टि संबंध है ऐसी अवस्था में उस व्यक्ति पर अभिचार का प्रयोग होता है।
जिस समय वह निलम्बित हुआ उस समय राहू शनि सूर्य चल रहा था। राहू और शनि षष्ठ अष्टक योग बनाते है और शनि दुर्योग। सूर्य और शनि का भी षष्ठ अष्टक योग तथा केतू सूर्य को देख रहा है। यही कारण है कि सत्कर्म करने पर भी उसे ये सजा मिलती है।
इसी आधार पर उसे बताया गया कि उस पर “अभिचार” का प्रयोग किया गया है। और जब तक उसका दोष दूर नहीं होगा उसकी पुनः नियुक्ति सम्भव नहीं है। विज्ञान ने आश्चर्यजनक उन्नति की है। हर पढ़ा-लिखा व्यक्ति इस पर आसानी से विश्वास नहीं कर सकता। उसे भी विश्वास नहीं हुआ। वह मेरे सम्मान का ध्यान रखते हुए चुपचाप चला गया।
यदि व्यक्ति के पुण्य का उदय न हो तो वह किसी का उचित परामर्श भी अनुचित मान कर उसकी अवहेलना करता है। उसे वक्त ने भटकने पर मजबूर किया। वह कुण्डली की समीक्षा के लिए विभिन्न दैवज्ञों के पास गया। सभी ने सुखद भविष्य की भविष्यवाणी की लेकिन उसकी कार्य सिद्धि न हो पाई। परिस्थितियों ने उसे पुनः मेरे के पास आने पर विवश किया। उसे निम्न उपाय बताये गये :
- श्री हनुमान मन्दिर में 250 ग्राम सिन्दूर, 25 चांदी के वर्क तथा 200 मि.ली. आंवले का तेल अर्पित करें।
- सप्ताह में एक बार गरीबों को हलवा बांटें।
- छौंक लगा कर उबले काले चने गरीबों को बांटें।
फाईल आगे बढ़ी तथा फिर रुक गई। आगन्तुक को समय-समय पर कार्यालय में होने वाली कार्यवाही से अवगत कराने को कहा। दशा देखी तो वह राहु/बुद्ध/केतु की थी। उसे 5 दिन लगातार गरीबों को हलवा बांटने का कहा गया। मामला फिर स्पष्ट हुआ ।
उसके निलम्बन के पश्चात् किसी अन्य व्यक्ति की पदोन्नति की गई थी। वह नवम्बर में सेवा निवृत होने वाला था। वह विशेष प्रभावशाली व्यक्ति था और उसके प्रभाव से अध्यक्ष महोदय अपने आप को असहाय पा रहे थे। इस व्यक्ति की पुनः नियुक्ति का अर्थ था उसकी अवनति ।
भगवान की पूजा ने चमत्कार दिखाया। उसके (अन्य व्यक्ति) के साथ-साथ ये भी रहेंगे तथा कुछ समय के लिए दो पद रहेंगे ऐसा निर्णय लिया गया। उसके सारे कार्य सिद्ध हो गए। उस समय राहु/बुद्ध/ शुक्र की दशा चल रही थी। भगवान की आराधना ने उसको बुरे समय में धैर्य और आत्मविश्वास प्रदान किया ।
रिहाई
यह एक युवा की कहानी है। किन्हीं कारणों से इसे हिरासत में ले लिया गया। यह युवा व्यक्ति भाग्य के शिकंजे का शिकार हुआ। भाग्य व्यक्ति को इस प्रकार पीड़ित करता है कि उसको उसका प्रभुत्व मानना ही पड़ता है। अभिभावकों ने दो बार उसे छुड़ाने का प्रयत्न भी किया किन्तु भाग्य का लिखा टाला न जा सका।
ऐसी विकट समस्या के समय इस युवा की जन्मपत्री समीक्षा के लिए लाई गई । लाने वाला माता-पिता से कम चिन्तित नहीं था । उनकी चिन्ता का मुख्य कारण यह था कि युवा एक विशेष तिथि को व्यस्क हो जायेगा तथा उस वक्त उस पर कानून की सख्ती भी बढ़ जायेगी ।

- अष्टमेश मंगल लग्न में चन्द्रमा के साथ स्थित है। जब उसे बन्दी बनाया उस समय उसकी मंगल महादशा में चन्द्र का अन्तर चल रहा था।
- चन्द्रमा एकादशेश है तथा मंगल से आक्रान्त है।
- नवम का स्वामी शुक्र अस्त है किन्तु नवम भाव पर उसकी दृष्टि है।
उन्हें निम्नलिखित उपाय बतायें गये।
- श्री हनुमान मन्दिर में दें 250 ग्राम सिन्दूर, 35 ग्राम चांदी के वर्क, 175 मि.ली. आवले का तेल ।
- 40 दिन तक प्रतिदिन गरीबों को उबले काले चने । सरसों के तेल में छौंक लगाकर बांटे।
- 40 दिन तक गरीबों को हलवा बांटे।
- मन्त्र जाप मैं करुंगा।
उन्होंने अपील की, अभी उपायों का प्रभाव पूरा नहीं था । अपील दुबारा की गई। उन्हें ये बताया गया कि उपाय का प्रभाव रंग लायेगा। थोड़ा धीरज रखें। प्रभू दयालू हैं। श्री हनुमान जी पर सिन्दूर चढ़ाना एक तन्त्र क्रिया है और मन्त्र का जाप दोनों रंग लाये । युवा को सम्मान सहित बरी कर दिया गया।
मकान खाली
एक भद्र पुरुष हमारे पास आए। उसने मकान ऐसी महिला को किराए पर दिया जो एक अच्छी महिला प्रतीत हो रहा थी। मकान को किराये पर लेने के बाद वह अपने सही रंग में आ गई। वह अच्छी महिला नहीं थी बल्कि हीन चरित्र की महिला थी।
उसके ऊँचे संपर्क थे तथा मकान में कब्जा जमाने के बाद उसने मकान मालिक के साथ शरारतें शुरु कर दीं। उसने स्पष्ट रूप से कहा कि वह मकान खाली नहीं करेगी, मकान मालिक के जो जी में आए करे। किराया देने का तो प्रश्न ही नहीं उठता था । जले पर नमक छिड़कने के लिए उसने अपने ऊँचे संपर्कों का प्रयोग आरम्भ कर दिया।
ऐसी परिस्थितियों में वे भद्र पुरुष अपनी जन्मपत्री के साथ हमारे पास आए, जिसे नीचे दिया गया है। उस समय सूर्य-चन्द्र की दशा चल रही थी।

- सातवां भाव किरायेदार का प्रतिनिधित्व कर रहा है। सप्तमेश शनि सातवें भाव से पांचवें बैठा है। यह किरायेदार के लिए बहुत अच्छी स्थिति है।
- शनि चन्द्रमा के साथ है जो व्यक्ति के लिए द्वादशेश है।
- अष्टम भाव शनि से दृष्ट है जो कि सातवें भाव से दूसरा है जो किरायेदार के लिए अच्छा है।
- शनि की पांचवें भाव पर दृष्टि है तथा पंचमेश वृहस्पति है। ये सब विरोधी दल की अच्छी स्थिति दर्शाता है।
अगर उस व्यक्ति की दृष्टि से परीक्षण करें तो
- लग्नेश सूर्य ग्यारहवें स्वामी बुद्ध के साथ चौथे में है तथा मंगल से दृष्ट है, जो व्यक्ति के लिए योग कारक है। यह परमात्मा की बचाने की कृपा है।
- वृहस्पति लग्न में आठवें स्वामी के रूप में है जो किरायेदार के लिए लाभप्रद है। वह पांचवें, सातवें तथा नवें भावों को देख रहा है। उसकी दृष्टि पांचवें भाव ग्यारहवें से सातवें (किरायेदार) तथा नवें (या) विरोधीदल के लिए मकान की प्रगति के लिए उपलब्ध है ।
अतः इन सभी दृष्टियों से मालिक के मुकाबले किरायेदार ज्यादा शक्तिशाली दिखाई पड़ता है। इस सारे मामले में महत्वपूर्ण चीज़ है ग्रहों का स्वरूप । जन्मपत्री के ग्रहों के संबंध में सभी ग्रह अपना निर्धारित कार्य अच्छी तरह कर रहे हैं परन्तु साथ-साथ हर ग्रह मानव की तरह, अपने स्वभाव से जुड़ा है। यहाँ ग्रह या ग्रह का स्वरूप महत्वपूर्ण कार्य करते हैं, जो इस तरह का विश्लेषण अच्छी तरह कर लेता है उसे सफलता मिलती है।
शनि विरोधी दल के लिए हितकारी है । वह छठे भाव का स्वामी भी है जो भाव उसके लिए हानिकारक है। यह दोनों तरह से काम करेगा। यह एक बात है। एक अन्य तथा महत्वपूर्ण नोट करने योग्य बात यह है कि शनि विलम्ब करने वाला ग्रह है । यह विलम्ब प्राय निराशा दिलाती है या कभी-कभी निराशा की सीमा को तोड़ देती है।
चन्द्रमा घटता हुआ है इसलिए अहितकारी है। वह किरायेदार के लिए छठे का स्वामी है तथा मकान मालिक के लिए लाभ पहुंचाने वाला है।
इसमें कोई शक नहीं कि वृहस्पति सातवें भाव में अपनी कृपा बिखेर रहा है परन्तु इसकी विशेष दृष्टि पांचवें तथा नवें में भी है जो व्यक्ति के लिए शुभ है।
लग्न में वृहस्पति की उपस्थिति अपने आप में, ग्रहों के आक्रमणों के विरुद्ध एक वरदान है।
चौथे भाव में लग्नेश है जो केवल व्यक्ति ही नहीं अपितु सरकार का भी कारक है और मंगल जो पुलिस तथा उपद्रव का कारक है स्वयं भी राजसी ग्रह सूर्य से कमज़ोर है।
इतना होने पर भी उसे दूसरे तथा ग्यारहवें स्वामी बुद्ध से सहायता प्राप्त है जो किरायेदार की सहायता करने में कोई शरारत नहीं कर सकते क्योंकि वह अस्त है यह सही है कि बुद्ध की अस्तता को प्रायः महत्व नहीं दिया जाता पर तथ्य तो यह है कि वह अस्त है।
सूर्य तथा बुद्ध मंगल के भाव में स्थित है जो एक और महत्वपूर्ण पहलू है । दशा भी सूर्य की थी।
पत्री द्वारा किए गए विश्लेषण द्वारा यह निष्कर्ष निकाला गया कि तेज कार्रवाई की आवश्यकता थी जो कि मंदगतिदार शनि के लिए संभव नहीं थी । व्यक्ति से मामले को शीघ्र आगे बढ़ाने की सलाह दी गई तथा पुलिस तथा वरिष्ठ अधिकारियों तक पहुंचने के लिए कहा गया ।
ग्रहों की स्थिति दोनों ओर से क्रूर थी अतः उनकी प्रसन्नता को उद्दीप्त करना तथा व्यक्ति के साथ उन्हें सम्बद्ध करना ज़रूरी समझा गया। शनि, तीसरे और दसवें स्वामी शुक्र को वृहस्पति के साथ-साथ सन्तुष्ट किया जाये।
पहली आक्रामक कार्रवाई तो यह है कानून से सम्बन्धित व्यक्तियों से संपर्क किया जाए ताकि वे विरोधी पर सख्ती कर सकें। दूसरी दुश्मन के पीछे किसी शक्तिशाली दुश्मन को लगा दिया जाए, शक्तिशाली भगवान श्री हनुमान की शनि का मुकाबला करने के लिए आराधना की जाये। उस भद्र पुरुष से कहा गया कि वह कम से कम 40 दिनों तक हर रोज 31 बार हनुमान अष्टक का पाठ करे।
तीसरे तथा दसवें स्वामी शुक्र को भी इस महान कार्य में लगा दिया गया। अंधों तथा गरीबों को हलवा बांटने की भी सलाह दी गई। गरीबों में नमकीन चावल बांटने की सलाह भी दी गई। भगवान हनुमान के लिए हमने शनिवार को सिंदूर चढ़ाने का भी परामर्श दिया।
उसने इन उपायों का 15 दिनों तक पालन किया और फिर एक दिन भागा हुआ हमारे पास आया ओर बताया कि हमारे उपायों को काटने के लिए महिला द्वारा क्या कदम उठाए जा रहे हैं और यह उपाय उसे अपने उपायों से ज्यादा मज़बूत लगे क्योंकि सरकार की ओर से कोई भी उत्साहजनक उत्तर प्राप्त नहीं हो रहा था।
हमने उसे इन उपायों पर विश्वास करने तथा धैर्यपूर्वक परिणामों का प्रतीक्षा करने को कहा और क्योंकि सरकार की कार्रवाई उसे सन्तुष्ट नहीं कर रही थी अतः उसे गेहूं दान करने को कहा गया। यह सूर्य को संतुष्ट करने को था जो सरकार का सबसे बड़ा प्रतिनिधि है। इन सभी उपायों से इच्छित फल प्राप्ति हुई। नवम्बर के पहले सप्ताह में महिला ने मकान खाली कर दिया ।
यहां ध्यान इस बात पर दिया जाए कि, मकान खाली करने के लिए महिला को दी गई राशि तथा उसे किराए पर दिया गया मकान दोनों दाव पर थे। पत्री में ग्रहों की स्थिति देखकर हमने उस सज्जन से स्पष्ट रूप से कह दिया था कि उसे मकान तथा राशि में से किसी एक को चुनना है तथा बिना उपचार के वे दोनों दाव पर थे ।
उसने मकान लेना चाहा और इस प्रकार उसने उस महिला को पैसे दिये तथा वह चली गई। जाते जाते वह यह भी कह गई कि तुमने मुझे बहुत मूर्ख बनाया। मैं तो मकान खरीद ही लेती। लगता है तुम्हारा भगवान ने बहुत ही साथ दिया है।
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