विवाह के लिये ग्रह शांति के प्रयोग
विवाह – विलम्ब: एक सज्जन एक दिन अपनी बेटी के साथ हमारे घर आए। उनके चेहरे पर दुःख ही नहीं निराशा भी थी। बेटी 29 वर्ष से बड़ी होने के पश्चात भी अविवाहित थी । यह माता-पिता के लिए बहुत बड़ा दुर्भाग्य ही था कि इतनी बड़ी होने पर भी उसका विवाह नहीं हुआ था। उनके प्रयत्न में कोई कमी नहीं थी ।
समस्या यह भी थी कि जो वर लड़की या उसके माता-पिता को पसन्द आता था उन्हें लड़की पसन्द नहीं आती थी और जिन्हें लड़की पसन्द आती थी वह लड़की को नहीं भाता था। लड़की की जो जन्मपत्री उसके पिता लाए थे उसे पाठकों के अध्ययन के लिए नीचे दिया जा रहा है :-
जन्मपत्री से स्पष्ट है कि प्रेम विवाह होने की संभावना है या विवाह लड़की की पसंद से होगा। शनि सातवें भाव का स्वामी है। वह पांचवें भाव में जो प्रेम के भाव में स्थित है। यह भी सत्य है कि विवाह विलम्ब से होगा तथा इससे अनेक निराशाएं पैदा होगी।
ऐसा इसलिए कि शनि सातवें भाव का स्वामी है। इसके कारण विलम्ब होता है। इसे जो कार्य सौंपे जाते हैं वह कछुवे की चाल से किए जाते है और यह गति कभी-कभी न दिखाई देने की तरह हो जाती है। यह शनि के स्वभाव में है और इसका कोई इलाज नहीं । आप इसे ग्रह का प्राकृतिक दोष कह सकते हैं। केवल विवाह तय करने में ही विलम्ब नहीं होता बल्कि अनुभव बताता है कि ऐसे मामलों में जहाँ शनि संबंधित होता है वहाँ अंतिम क्षण तक विलम्ब तथा अनिश्चितता बनी रहती है।
कभी तो ऐसा भी देखा गया है कि तिथि तय हो चुकी थी तथा बारात लड़की के घर के लिए रवाना भी हो चुकी थी परन्तु न तो लड़की वाले और न ही लड़के वाले निश्चित हो पाते हैं कि विवाह होगा। यह एक ऐसा विलम्ब और निराशा थी जिसकी शनि के शामिल होने के कारण पहले ही भविष्यवाणी कर दी गई थी।
प्रश्न मात्र यह था कि क्या चुना गया वर निश्चित रूप से मिलेगा तथा या इस मामले में निराशा हाथ में लगेगी। प्रेम प्रसंग के मामले में विलम्ब को तो सहन किया जा सकता है परन्तु निराशा को नहीं। इस पहलु पर निर्णय के लिए पत्री पर पुनः विचार करते हुए हमने देखा कि
- शनि शुभ भाव से अपने भाव को देखता है। उसे किसी भी चीज़ के लिए बुरा-भला कहा जा सकता है परन्तु असंगति के लिए नहीं।
- दूसरे वृहस्पति चौथे भाव में है, जो घरेलू प्रसन्नता का ग्रह है और जो आठवें को देखता है, और यह जिस लड़की की बात की जा रही है उसके लिए मंगल भाव है।
- नवें तथा दसवें स्वामियों के बीच ग्रहों की राशि परिवर्तन है।
- नवें का स्वामी, जो पूर्व पुण्यों का ग्रह है, मंगल की दृष्टि वृहस्पति तथा शनि दोनों पर है । वृहस्पति मंगल की राशि में निवास कर रहा है तथा शनि वृहस्पति की तथा मंगल इन दोनों पर दृष्टि है ।
- और अधिक अध्ययन करते हुए ग्यारहवें का स्वामी, इच्छापूर्ति का ग्रह बुद्ध अष्टम में लग्नेश के साथ है। बुद्ध भी दूसरे भाव (परिवार) का स्वामी है तथा के साथ है, लग्नेश तथा दूसरे भाव पर दृष्टि है।
अतः प्रेम, विवाह, इच्छापूर्ति घरेलू खुशियाँ तथा पारिवारिक जीवन की दृष्टि से जन्मपत्री इन मामलों में निराशा नहीं दर्शाती । इन सब बातों पर विचार करते हुए हमने आगन्तुक से कहा लड़की को स्वयं चुनाव करने दें तथा बाद में विवाह तय करें।
हम अपने परामर्श के बारे में बिल्कुल निश्चित थे तथा लड़की का भी मुझ पर पूर्ण विश्वास था, पिता ने शादी के लिए एक और विज्ञापन दे दिया। सभी पत्र लड़की के चुनाव के लिए उसे सौंप दिए गए। एक उम्मीदवार लड़की ने चुना तथा दो उसके माता-पिता ने चुने ।
इन तीनों पार्टियों से बात आरम्भ हुई । माता-पिता द्वारा चुनी पार्टियाँ विवाह के लिए तैयार थीं जबकि होने वाली दुल्हन द्वारा चुनी पार्टी टालमटोल कर रही थी। वह न तो हाँ कह रहे थे और न ही मना कर रहे थे और जैसा कि हमें आशा थी यह शनि के कारण था । हमने महादशा तथा अन्तर दशा की गणना की और हमें आशा थी कि विवाह वृहस्पति, शुक्र, बुद्ध की दशा में हो जाएगा। यह एक साधारण गणना थी जिसे हमने नहीं किया था।
वह अगले महीने पुनः मेरे पास आए तथा विवाह तय होने का समय पूछा। मैंने कहा कि समय जल्दी आएगा । लड़की जो साथ आई थी सन्तुष्ट नहीं हुई तथा उसने विलम्ब का कारण जानना चाहा । बारहवां भाव का स्वामी चन्द्रमा, सातवें भाव के स्वामी शनि को जो ग्यारहवें भाव से पांचवें भाव में स्थित है, को देखता है। चन्द्रमा के इस प्रभाव को काटने के लिए हमने कुछ रक्षक उपाय प्रारम्भ करने की सोची और इसके लिए हमने जन्मपत्री पर एक निगाह और डाली ।
वृहस्पति की लग्नेश को दृष्टि थी और यह पर्याप्त निश्चिंतता प्रदान करने वाला था । अब हमने सबसे प्रभावशाली उपचार पर विचार करना आरम्भ किया । चन्द्रमा के लिए कुछ करने के बजाय हमने सोचा जो हमारी सहायता कर रहे हैं उन्हें और शक्तिशाली किया जाए और ये शक्तियां थी वृहस्पति, मंगल और शनि की, वृहस्पति एक पूर्ण ब्राह्मण थोड़े मिष्ठान से ही सन्तुष्ट हो जाता है तथा शनि नमकीन चीजों से ।
- अतः हमने 13 दिनों तक हर रोज, दोनों वक्त मीठी तथा नमकीन रोटी गाय को देने की सलाह दी।
अब प्रश्न था मंगल का जो देवताओं का कमाण्डर-इन-चीफ है । यह छोटी-मोटी वस्तुओं से खुश होने वाला नहीं। भगवान हनुमान तथा देवी दुर्गा इसके स्वामी है।
- अतः हमने सिंदूर, चांदी के वर्क तथा तेल हनुमान मंदिर में अर्पण करने की सलाह दी।
- हमने इसके साथ उनसे 7 रंगों के ब्लाउज तथा एक साड़ी भी अर्पण करने को कहा। सात रंग सात ग्रहों को सन्तुष्ट करेंगे तथा पीली साड़ी गुरु महाराज (बृहस्पति) के लिए।
13 दिनों के बाद यह पार्टी मिठाई के डिब्बे के साथ आयी व बताया कि लड़के की ओर से जवाब बड़ा उत्साहजनक था तथा विवाह तय हो गया था।
विवाह के लिये ग्रह शांति के प्रयोग
मानसिक संताप: एक गरीब पुरुष एक समय अपने बेटे की जन्मपत्री लेकर मेरे पास आया। पिता पुत्र के विवाह के लिए चिन्तित था। विवाह तय हो चुका था परन्तु उसे सूचनाएं मिल रही थी कि वधू पक्ष और अच्छे वर की तलाश में है। उसकी जन्मपत्री इस प्रकार थी:-
जन्म की शेष दशा सूर्य 1 वर्ष तथा 7 दिन जन्मपत्री पर दृष्टि डालने से पता लगेगा कि शनि लग्न में है तथा सातवें भाव पर दृष्टि है। जिस भाव में भी शनि की दृष्टि हो, उस भाव के कार्य बिना विलम्ब के पूरे नहीं हो सकते। यहाँ तक कि अत्याधिक निराशा भी देता है। अतः पिता को तंग करने वाली जो अफवाहें मिल रही थीं उससे हमें कोई चिन्ता नहीं थी।
हमें यह बात कचोट रही थी कि मात्र 26 साल का होने पर उसका विवाह तय कैसे हुआ ? हमारा विशेष लम्बा अनुभव यह बताता है कि जहाँ कहीं भी शनि शामिल हो वहाँ व्यक्ति का विवाह आमतौर से 29 वर्ष से पहले नहीं होगा। केवल जब शनि व्यक्ति की जन्म स्थिति में आता है या उसके आसपास आने पर वह विवाह तय होता और आयोजित होता है। उसके अतिरिक्त भी अन्य पहलू होते हैं। इससे पहले नहीं।
जब हम विवाह के विषय पर विचार कर रहे थे तो हमने पांचवें भाव से भी यह देखने के लिए जांच की कि विवाह तय किया गया है या प्रेम संबंध है । बुद्ध पांचवें भाव में था। वह मीन में नीच था। नीच बुद्ध विलक्षण तरह का प्रेम संबंध बनाता है कि समाज का पागल व्यक्ति भी उसे न माने।
हम और गहराई में गए तथा हमने सातवें भाव को देखा। उच्च का चन्द्रमा एक ओर छठे स्वामी मंगल द्वारा और दूसरी ओर तीसरे भाव के स्वामी शनि द्वारा दृष्ट था। ये दृष्टियाँ कष्टकारी ही नहीं अपितु एक दूसरे के विरोधी हैं। मंगल क्रोधी और व्यग्र स्वभाव का हैं शनि शांत, विवेकशील तथा उपयुक्त स्वभाव का है । चन्द्रमा बुद्धिमान और प्रेरणादायक है। बुद्धि और बुद्ध पहले ही नीच है ऐसी परिस्थितियों में मामले की कल्पना करना आसान नहीं है।
इन सब को देखते हुए राहू की महादशा में, बुद्ध की अन्तर्दशा शीघ्र आ रही थी । दशानाथ और भुक्तिनाथ एक दूसरे से 6/8 थे और शनि की शेष दशा मात्र कुछ मास थी।
ऐसी स्थिति में हमने पिता से कहा कि वह शादी की बात भूल जाए और अपने बेटे के कल्याण की बात सोचें। हमने कहा “कुछ महीनों में बेटे को मानसिक सन्ताप होगा।” पिता कुछ घबराए से थे। उन्होंने अपने पुत्र के बचपन के दिनों को स्मरण करते हुए कहा कि एक साधु ने भविष्यवाणी की थी कि 27 वर्ष की उम्र में लड़का पागल हो जाएगा।
हमने उनको विश्वास दिलवाया कि यदि कुछ रक्षक उपाय कर लिए जाएं तो काफी हद तक अनर्थ नहीं हो पाएगा। लग्नेश पर बृहस्पति की दृष्टि काफी सुनहरी किरणें थी । यहाँ तक कि नवां स्वामी चन्द्रमा भी लग्न को देख रहा था। यह भी सन्तोष जनक था । दैवीकृत योजना द्वारा प्रदत्त इन दो बचाव रास्तों के बल पर हिम्मत की, और कहा कि ईश्वर उनके साथ है।
जब मामलों में दशा ग्रह एक दूसरे से 6/8 की स्थितियों में होते हैं, प्रायः वे आधी दशा अवधि समाप्त होने तक सफलता नहीं मिलती। परन्तु उपचार जितना शीघ्र हो सके करना चाहिए। पहली अपेक्षित वस्तु थी परम-शक्तिवान ईश्वर की अपार कृपा जो बृहस्पति की दृष्टि से प्राप्त थी । अगली ज़रूरत है बुद्ध की सुरक्षा जो बुद्धिमत्ता के लिए कारक है। ईश्वर करे वह कुछ न हो। शनि और मंगल की चन्द्रमा पर दृष्टि के कारण भावात्मक पहलु भी अत्याधिक शक्तिशाली था ।
पिता इतना गरीब था कि पैसे खर्च होने वाले छोटे-छोटे उपाय करने में भी असमर्थ था, परन्तु अपने बेटे की रक्षा के लिए वह सब कुछ गिरवी रखने को तैयार था। हमने उससे कहा कि जप तप तथा दान का सहारा लेकर वह सब कुछ सर्वशक्ति मान ईश्वर पर छोड़ दे जो सबका रक्षक है।
पिता से कहा कि वह 40 दिनों तक दिन में दो बार तेरह-तेरह बार हनुमान चालीसा तथा संकट मोचन का पाठ करे। यह मंगल की क्रूरता से उसकी रक्षा के लिए तथा भगवान हनुमान के रूप में विश्व नियन्त्रक परम शक्तिवान ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए था।
क्योंकि चन्द्रमा पीड़ित था इसलिए माँ से 40 सोमवारों का व्रत रखने के लिए तथा पिता से 40 मंगलों का व्रत रखने के लिए कहा गया। शनि की देखभल भगवान हनुमान को करनी थी ।
दशा की पहली आधी अवधि तक हमें बेचैन करने वाले समाचार मिलते रहे। लड़के ने अपने पिता का घर छोड़कर उस महिला के संग रहना शुरू कर दिया था जो भाई के रूप में उसके राखी बांधती आई थी। महिला विवाहित थी। महिला लड़के से काफी बड़ी थी परन्तु वे दोनों एक दूसरे को पसन्द करते थे। वे शादी करना चाहते थे जिसे शायद कोई पागल भी न माने ।
हमने माता-पिता को पहले ही बता दिया था कि लड़का आत्महत्या करना चाहेगा पर वह ऐसा कर नहीं पाएगा। हमारा विचार एक दम स्पष्ट है । जो व्यक्ति बरसात आरम्भ होने से पहले ही अपने घर की मरम्मत कर लेता है उसका घर बरसात में टपकता नहीं।
तप यानी व्रत के अलावा जो भाग्य के एक पहिए को नियंत्रित करते हैं, हमने दूसरे पहिए की परवाह भी शांति द्वारा करनी है। नेगेटिव और पोजिटिव दोनों हमेशा साथ-साथ काम करते हैं । चाहे ये पति-पत्नी, स्त्री और पुरुष हो तथा प्रशासन और वित्त के रूप में सरकारी कार्यालय हो।
हमारी परिकल्पना एक दम साफ है। यदि हम दोनों पहियों में ठीक से हवा भर कर रखेंगे तो गाड़ी ठीक से चलेगी ही । अतः उत्तम परिणामों के लिए हमें व्रत तथा दान दोनों को एक साथ करना होगा।
पालक बुद्ध द्वारा शासित है जो कि पांचवें भाव में नीच है। नीच ग्रह से नीच भंग हो सकता है परन्तु नैसर्गिक विशेषताएं नहीं बदलती है। बुद्ध सामान्य ज्ञान का ग्रह है तथा वह पांचवें भाव में स्थित है और पुनः मानसिकता का प्रति निधित्व करता है। इस दशा के समय दुर्बल बुद्ध व्यक्ति के मस्तिष्क पर प्रभाव डालता है। यह राजयोग भी देता है। क्या लंगड़ा व्यक्ति धनवान नहीं बन सकता और क्या जीवन के विभिन्न भोग-विलासों का भोग नहीं कर सकता ?
अतः हमने उसे हर रोज़ गाय को एक किलो पालक खिलाने को कहा । हमने उनसे यह भी कहा गाय कूड़ा खा सकती है पर वह पालक नहीं खाएगी। लेखक का यह बीस वर्ष से भी अधिक का अनुभव है। गाय ने एक महीने तक पालक नहीं खाया। गरीब माँ-बाप के मानसिक कष्ट बढ़ते ही गए।
हमने पिता से कहा कि वह लड़के के पास न जाए परन्तु माँ (चन्द्रमा का कारक है तथा उच्च है और लग्न का देखता है) को परामर्श दिया कि वह हर बुद्धवार को पुत्र के पास जाए तथा पालक, भिन्डी, सरसों का साग जैसी हरी सब्जियाँ अपने बेटे को पका कर खिलाये जो किसी की पत्नी के साथ अलग रह रहा था।
उसने माँ को बताया कि वह आत्महत्या करना चाहता था पर किसी ने ऐसा करने से रोक दिया। उसने यह कई बार कहा। ऐसे समय में माँ-बाप की दशा का अन्दाजा लगाया जा सकता है। हर बार उसे कहा गया कि उनके बेटे का कुछ नहीं बिगड़ेगा ।
उन्हें राहु की शांति की भी सलाह दी गई। राहु बारहवें भाव में बृहस्पति के साथ है, जो नीतिशास्त्र का ग्रह है तथा जिसके कारण गुरू-चंडाल योग होता है। व्यग्र कर देने वाले इन समाचारों से हम बिल्कुल व्याकुल नहीं हुए कि बेटा उस महिला से शादी करना चाहता था।
हमें पूरा विश्वास था कि भुक्तनाथ की आधी दशा समाप्त हो जाने पर लड़का पुनः अपनी माँ की गोद में वापस लौट आएगा तथा भाग्य की धारा में भी बदलाव आएगा। न्यूटन ने कहा था कि हर क्रिया की कोई प्रतिक्रिया होती है। रक्षा बन्धन के पर्व पर लड़का पुनः अपने माँ-बाप के घर आया तथा फिर वापस नहीं गया।
हमारे रक्षक उपाय जारी थे। बुद्ध की अन्तर दशा में उसका विवाह हुआ तथा अफसर के रूप में उसकी पदोन्नति हुई। पहले दो मौकों पर वह फेल हो गया था।
संतान प्राप्ति: एक दंपति थे जो अपने सुखपूर्ण वैवाहिक जीवन के कई वर्ष व्यतीत कर चुके थे परन्तु शायद ईश्वर ने उन्हें कोई सन्तान सुख नहीं दिया था । इस समय वह अपने आंगन में एक खूबसूरत पुष्प के खिलने की कामना करते रहे परन्तु ऐसा हो नहीं पाया। उन्हें संतान प्राप्ति नहीं हुई। वह मंदिरों में गए और वरदान मांगा। परन्तु किसी भी मंदिर का संचालक देवता उनसे प्रसन्न नहीं दिखाई पड़ रहा था ।
परमात्मा से निराश होकर उन्होंने डाक्टरों, वैद्यों तथा हकीमों के पास जाना शुरू कर दिया। परन्तु उसने भी कोई फायदा नहीं हुआ। बल्कि अन्य दृष्टि से सुखी दम्पत्ति के बीच इन्होंने यह कहकर झगड़े के बीज डाल दिए कि पुरुष इस मामले में दोषी है। यहाँ से भी निराश होकर तांत्रिकों के पास गए किन्तु वहाँ भी कुछ प्राप्त न हो सका।
अंतिम स्थिति में जब वे होनी समझ कर संतुष्ट हो गए थे, वे मेरे पास आए। उनकी जन्मपत्री इस तरह की थी-
जन्मपत्री को संतान प्राप्ति की दृष्टि से देखा गया तथा पांचवें भाव को अध्ययन के लिए लिया गया। राशि धनु है । इसका स्वामी वृहस्पति नवें भाव में स्थित है। वह अपने मित्र के भाव मंगल में है। वह सूर्य के साथ पारस्परिक दृष्ट है जो लग्न तथा संतान-भाव, जो उसके स्वयं का भाव है, पर दृष्टि है। वृहस्पति संतान के लिए भी कारक है। अतः स्वयं वृहस्पति वरदान देने के लिए पर्याप्त रूप से सक्षम है।
लग्नेश तीसरे भाव में है, जिससे स्पष्ट है कि इसके सामर्थ्य को चुनौती नहीं दी जा सकती। पंचम भाव पर भी किसी ग्रह की क्रूर दृष्टि नहीं है। बल्कि पांचवें भाव में मंगल की उपस्थित सातवें तथा नवें स्वामियों के भावों के बीच आपसी परिवर्तन का योग है।
पुरुष की क्षमता की दृष्टि से, शुक्र वीर्य का कारक है। शुक्र पांचवें भाव में मंगल के साथ स्थित है। तीसरे और दसवें स्वामी शुक्र की ग्यारवें भाव पर दृष्टि है, जो इच्छाओं की पूर्ति का भाव है ।
कमी यह थी कि मिथुन ग्यारवें भाव धनु के लिए बाधक स्थान है। तथा एकादशेश ग्यारहवां स्वामी चौथे भाव में स्थित है जो पांचवें का बारहवां है, जो इच्छापूर्ति की एक और रुकावट थी।
ऐसे में मंगल के कारण गर्भपात हो सकता है। यहाँ मंगल योगकारक है तथा एक योगकारक ग्रह से हम इस तरह के दुर्व्यवहार की आशा नहीं कर सकते। इसके अलावा, पुरुष साथी की सक्षमता को यहाँ चुनौती दी गई है, जिससे पता लगता है कि इस मामले में मंगल द्वारा कोई धोखा नहीं किया गया है।
एक ही कारण हमारी नज़र में आ सका और वह था दूसरा भाव जहाँ छठे और सातवें भाव का स्वामी शनि स्थित था। वहाँ बारहवां स्वामी चन्द्रमा भी स्थित है तथा सूर्य नीच है, जो अहितकारी भाव के स्वामी के नाते अंतिम जुर्माने के रूप में कष्ट नहीं देते। वे तो आमतौर से कम से कम में संतुष्ट हो जाते हैं।
हमारे लिए यह काफी राहतपूर्ण था कि परमात्मा द्वारा वरदान को नकारा नहीं गया था क्योंकि बृहस्पति, लग्न, लग्नेश तथा पांचवें भाव पर दृष्टि है। इसका अर्थ था कि ग्रहों को संतुष्टि की ज़रूरत थी।
प्रश्न यह था कि किसे संतुष्ट किया जाए ? ग्रह जो व्यक्ति का परम हितैषी है उसे सबसे पहले सन्तुष्ट किया जाए तथा उससे और कृपा को प्रार्थना की जाए। नवां स्वामी मंगल भी, हमारी राय में इतने ही आदर का पात्र है। पुरुषों की क्षमता का कारक होने तथा अपने व्यवसाय के कारण शुक्र को भी प्रसन्न करना था। पूरी सुरक्षा के लिए हमने शनि को भी मनाया। यह मात्र एहतियात के तौर पर था ।
- वृहस्पति के लिए हमने बताया कि भगवान शिव के मंदिर में एक केला रखा जाए तथा एक केला गाय को दिया जाये।
- शुक्र तथा मंगल के लिए उपचार, सिले कपड़े भिखारियों को देना था।
- शनि के लिए सबसे शक्तिशाली हथियार भगवान हनुमान हमारे पास थे। इसके लिए हमने सिन्दूर तेल-स्नान के लिए परामर्श दिया।
इन उपायों से तुरन्त परिणाम निकले। शनि को विलम्ब या कुंठा देने का खेल नहीं खेलने दिया गया तथा लाभकारी ग्रहों से उनकी कृपा के लिए प्रार्थना की गई गर्भ ठहरा तथा उचित समय पर सामान्य संतान ने जन्म लिया ।
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