औषधियों द्वारा ग्रह शांति

हमारे पुरातन ऋषियों और मुनियों का विश्वास था कि हमारी जन्मपत्री में विभिन्न ग्रहों की त्रिक भाव में स्थिति या अशुभ अर्न्तदशा के समय वे हमें दुःख और दुर्भाग्य प्रदान करते हैं। उनका यह भी विश्वास था कि अपनी दुःस्थिति के कारण ग्रह अहितकारी हो जाते हैं, उन्हें विभिन्न उपायों से संतुष्ट किया जा सकता है और यदि एक बार वे संतुष्ट हो जाएं तो व्यक्ति की सहायता करते हुए लाभकारी बन जाते हैं। उन्हें संतुष्ट करने के कई उपाय हैं । उनमें से एक विभिन्न रत्नों या कीमती पत्थरों को धारण करना है।

ज्योतिर्विधाभरण में ऐसे बहुत से उपायों के बारे में बताया गया है जिनसे ग्रहों को उचित ढंग से संतुष्ट किया जा सके।

सदौषधि स्नान विधान होमा पवर्जनैभ्यो अभ्युदाय वा स्यात (औषधियुक्त जल में स्नान, यज्ञ तथा दान आदि से व्यक्ति की चौतरफा प्रगति होती है)

ग्रहों को शान्त करने के उपर्युक्त उपायों के अतिरिक्त हम ग्रहों को स्नान के तरीके से संतुष्ट करने पर भी विचार कर रहे हैं । रत्न आदि धारण करना बहुत महंगा पड़ता है। हम में से हर कोई उन्हें खरीद कर अपना बचाव नहीं कर सकता। दान भी सामान्य व्यक्ति के बस का नहीं ।

यज्ञ आदि भी सभी लोगों द्वारा सही ढंग से नहीं किया जा सकता। इस कार्य के लिए कुछ कर्मकाण्डी ब्राह्मणों को बुलाना, उनको खिलाना-पिलाना तथा उपयुक्त दान दे कर उन्हें प्रसन्न करना एक विकट तथा कठिन काम है। निर्धन तथा अनपढ़ व्यक्ति इसे नहीं कर सकते। ऋषि जो समाज के सभी वर्गों के लोगों के कल्याण के प्रति जागरूक थे, उन्होंने कुछ बूटियां स्नान के लिए निर्धारित की जो कि सबके लिए उपयुक्त हैं।

उन दिनों का जीवन आज की तरह नहीं था। उस समय व्यक्ति प्रकृति के बहुत निकट था। वे दैवज्ञ थे तथा हर पौधे को पहचानते थे जिनमें जड़ी-बूटियों तथा औषधियों के पौधे भी थे। उनके लिए औषधिय पौधों को एकत्र करना उतना ही सरल था जितना हमारे लिए पत्थरों तथा सड़क की धूल को एकत्रित करना।

विभिन्न औषधिय पौधे पानी में डाल दिए जाते थे और जल का प्रयोग स्नान के लिए होता था यहां पर यह भी स्पष्ट किया जाता है कि हर विषय में पौधे हुआ करते थे जिनका संबंध संबंधित ग्रहों से था। इन औषधियों में स्नान से एक ऐसी विशिष्ट महक और सुगन्ध आती है जो विशिष्ट ग्रह से सम्बन्धित है। दूसरे शब्दों में हमारे ऋषियों ने यह भी खोज निकाला था कि हर ग्रह किरणों तथा प्रकाश उत्पन्न करने के साथ-साथ एक विशेष प्रकार की सुगन्ध भी उत्पन्न करता है। औषधि युक्त पौधो के स्नान से उस प्रकार की सुगन्ध उत्पन्न होती है जो उस ग्रह की सुगन्ध से मेल खाती है, जिसे संतुष्ट करना है।

औषधियों द्वारा ग्रह शांति

ग्रह के अनुसार विभिन्न प्रकार की जड़ी बूटियों को नीचे दिया जा रहा है। यदि सभी उपलब्ध न हो तो केवल एक का प्रयोग स्नान के लिए किया जा सकता है।

सूर्य : केसर, कमल, इलायची, मनःशिला (एक खनिज), खसखस घास, लाल फूल, मजीठ, मुलैठी।

चन्द्रमा : फिटकरी, बेलं पत्तियाँ, कमल, शंख, सीप ।

मंगल : लाल चंदन, बेल पत्तियां, बैंगन की जड़, सफेद कमल, स्फटिक, सफेद चन्दन, कंधी, बालछड़, लाल फूल, नागफणी, केसर तथा आंवला ।

बुद्ध : नागफणी, केसर, केवड़े का मूल, चावल, मोती, कमलगट्टा विधारा, गजकंद, शहद।

बृहस्पति : पीली सरसों, मुलैठी, मालती के फूल, शहद, आंवला ।

शुक्र :  सफेद कमल, मनःशिला (एक खनिज), इलाइची, केवड़ा, केसर, मजीठ, गोरोचन, शतावरी, सौंफ ।

शनि : कंधी, सुरमा, काले तिल, मजीठ, गोरोचन, शतावरी सौंफ, नट सौंफ ।

राहु : भुने हुए तिल, कस्तूरी, गुग्गल, हींग, हरताल, बिनौला ।

केतु : बकरी का दूध, सुअर द्वारा खोदी मिट्टी, पर्वत की मिट्टी, लोबान ।


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