ज्योतिष तथा कर्म
कर्म संस्कृत का शब्द है, “कृ” से अर्थ है “कार्य या काम” । कोई भी मानसिक या शारीरिक कार्य कर्म कहलाता है। न्यूटन ने कहा था “प्रत्येक क्रिया की प्रतिक्रिया होती है” । अतः कर्म के नियम के अनुसार अचानक कुछ नहीं होता तथा व्यक्ति पिछले या इस जन्म में किए गए शुंभ या अशुभ कर्मों का फल भोगता है। यह तो प्रसिद्ध है कि जिसने धान बोए है उसे गेहूँ तो मिलेंगे नहीं।
ज्योतिष में, ज्योतिषी बताता है कि व्यक्ति के जीवन की प्रवृति क्या होगी, कौन सा समय प्रतिकूल होगा तथा उसके वर्तमान जीवन का समय कैसा है ?
अपने दैनिक जीवन में हम देखते हैं कि जो व्यक्ति चावल उगा रहा है वह रोज एक कटोरी चावल भी नहीं खा सकता क्योंकि वह मधुमेह से पीड़ित है। इसी तरह एक बड़े होटल का मालिक बढ़िया खाना नहीं खा सकता क्योंकि उच्च रक्तचाप तथा हृदय रोग के कारण उसे गरिष्ठ भोजन खाना मना है। एक महिला जो जरा भी सुन्दर नहीं है विवाहिता है और एक महिला हर तरह से सुन्दर तथा माता-पिता के सभी प्रयत्नों के पश्चात भी अविवाहित है।
हम अपने दैनिक जीवन में देखते हैं कि श्री “क” के पास बिना प्रयास किए ईश्वर का दिया सब कुछ है । हम यह भी देखते हैं कि एक अनपढ़ व्यक्ति लखपति है। हम व्यक्तियों को चार वर्गों में बांट सकते हैं:-
(क) यह वर्ग उन व्यक्तियों का है जिन्हें बिना प्रयत्न एवं उपाय किए बिना जीवन में सब कुछ मिल रहा है ।
(ख) यह वर्ग उन व्यक्तियों का हैं जिन्होंने सार्थक प्रयत्न किए हैं तथा उपाय भी किए हैं और उन्हें इच्छित परिणाम मिला ।
(ग) यह वर्ग उन व्यक्तियों का है जिन्होंने सब तरह की शांति करवाई है फिर भी अपने पूर्व कर्मों के कारण कुछ भी वांछित फल नहीं मिल रहा है।
(घ) इस वर्ग में वे व्यक्ति आते हैं जो नियति के दण्ड को सह रहे हैं परन्तु किसी प्रकार के उपायों में उनका विश्वास नहीं है।
ज्योतिषीय कथन के अनुसार व्यक्ति को पूर्व कर्मों का फल भोगना पड़ता है और हमें इस जन्म में अपने पूर्व जन्म के कर्मों का फल भोगना ही पड़ेगा। क्या इसका अर्थ यह है कि हम कुछ न करें क्योंकि भाग्य में जो लिखा है वह तो होगा ही। इस बारे में हमारा उत्तर “नहीं” है।
क्योंकि हर क्रिया की कोई प्रतिक्रिया होती है, अतः हमें शान्ति के लिए उपायों के रूप में आराधना करनी है। होम, व्रत तथा भिखारियों को भोजन तथा पशुओं का पेट भरना । हर विज्ञान में नियम होता है “अन्य नियम यदि सामान्य रहें” ।
हम प्रतिदिन वायुयान को उड़ते देखते हैं और इससे अन्य कारणों के कारण, गुरुत्वाकर्षण नियम के अपवाद होने का पता चलता है। इस तरह ज्योतिष में भी अगर हम एक या अन्य तरीकों से शान्ति करें तो भाग्य बदल सकते हैं।
ज्योतिष तथा कर्म
महर्षि कपिल ने कहा था “मानव का अस्तित्व उसके पिछले अस्तित्व के कर्मों की आवृत्ति है तथा उसका वर्तमान अस्तित्व, भूत और भविष्य से जुड़ी एक आन्तरिक श्रृंखला की एक कड़ी है।” कर्म सिद्धान्त के अनुसार आत्मा जीवन में नयी रचना के रुप में नहीं अपितु पृथ्वी पर या अन्य जगह अपने पिछले अस्तित्व के कारण नये जीवन में प्रवेश करती है। गत जीवन में धनाढ़य व्यक्ति इस जीवन में भिखारी हो सकता है तथा औद्योगिक मजदूर एक महान व्यक्ति । कर्म को संचित, प्रारब्ध तथा आगामी वर्गों में बांटा जा सकता है।
संचित: यह जमा किए हुए कर्म हैं यानि गुप्त तथा उनका फल भविष्य में मिलता है।
प्रारब्ध: यह कर्मों का सक्रिय भाग है तथा इनमें वे कथनी और कार्य शामिल हैं जिनके बीज बोए जा चुके हैं।
आगामी: यह भविष्य में किए जाने वाले कर्म हैं। हमने जाने या अंजाने जो कुछ किया, जो कुछ कर रहे हैं या करेंगे, वे ही कर्म है।
जन्मपत्री हमारे पिछले कर्मों के फल को प्रस्तुत करती है। स्वामी श्री युक्तेश्वर ने कहा था “जन्मपत्री व्यक्ति के अपरिवर्तनीय भूत तथा उसके संभावित भविष्य के चित्र प्रस्तुत करती है।” पराशर जी ने कहा था कि संचित तथा आगामी कर्मों को निष्प्रभावित किया जा सकता है परन्तु प्रारब्ध को तो भोगना ही पड़ता है ।
तीन तरह के पाप हैं जो व्यक्ति कर सकता है। पहले प्रकार का पाप है किसी का कत्ल कर देना, किसी की संपत्ति हड़प लेना, मजदूरों द्वारा किए गए कार्य की रकम को हड़प कर जाना इत्यादि । इस तरह का पाप अक्षम्य है।
व्यक्ति कुछ पाप अनजाने कर बैठता है । यह इस तरह हुआ कि किसी व्यक्ति के पास टिकट तो कलकत्ता की गाड़ी का है पर वह बैठ जाता है बम्बई जाने वाली गाड़ी में । इस तरह का पाप क्षम्य है क्योंकि कन्डक्टर जानता है कि वह गलती से गाड़ी में बैठा है।
तीसरी तरह का पाप वह होता है जब हम कुछ काम करना चाहते हैं परन्तु परिस्थितियों के कारण वह कर नहीं पाते यानी पेड़ से फल तोड़ना चाहते हैं किन्तु मालिक ने हमें देख लिया और हम तुरन्त भाग निकले। इस तरह के पाप का कोई प्रतिकूल प्रभाव व्यक्ति पर नहीं पड़ता ।
जन्मपत्री इस तरह के व्यक्तियों के बारे में बता सकती है।
- जिस व्यक्ति ने अक्षम्य पाप किए हैं, उनकी जन्मपत्री में लग्न या चन्द्रमा पर वृहस्पति की दृष्टि नहीं होती या भाग्येश की दृष्टि लग्न पर नहीं होती। ऐसे व्यक्ति चाहे जितना उपाय करें उन्हें कष्ट भोगना पड़ता है।
- उन व्यक्तियों के मामले में जिन्होंने दूसरे प्रकार के पाप किए हैं लग्न अथवा चन्द्र पर वृहस्पति की या भाग्येश की लग्न पर दृष्टि होती है।
- तीसरी प्रकार के व्यक्तियों में लग्न में वृहस्पति या चन्द्र के साथ वृहस्पति होता है। इस तरह के व्यक्ति बिना कठिनाईयों के जीवन का आनन्द उठाते हैं।
कर्म और फल में क्या अन्तर होता है। एक व्यक्ति अपने बच्चे को पढ़ाता है। वह स्वयं तो पढ़ाता ही है इसके साथ साथ अध्यापक की भी व्यवस्था करता है। इसके पश्चात भी बच्चे के अंक अच्छे नहीं आते या वह उत्तीर्ण नहीं होता। ऐसी अवस्था में सबने कर्म तो किया लेकिन भाग्य ने उसका साथ नहीं दिया।
इसी प्रकार एक किसान हल चलाता है अच्छा बीज भी बोता है लेकिन अनावृष्टि या अतिवृष्टि या उपज में कीड़ा लग जाने के कारण उसकी उपज नहीं होती तो कर्म तो उसने किया लेकिन उसका फल नहीं मिला यही भाग्य है ।
हमारे ऋषियों को पता था कि व्यक्ति को पिछले जन्म में किए शुभ या अशुभ कार्यों का फल भोगना होता है। इतना होते हुए भी उन्होंने भाग्यवाद का संदेश नहीं दिया पराशर जी के पुत्र वेद व्यास ने कहा है:-
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन”
0 Comments