हाथ की बनावट एवम प्रकार

मणिबन्ध वह भाग है, जो भुजा को हाथ से जोड़ने में एक कड़ी के रूप में कार्य करता है। मणिबन्ध के आगे का सम्पूर्ण भाग हथेली कहलाता है और इस हथेली पर पाये जाने वाले चिन्ह हस्तरेखा विशेषज्ञ के लिए अत्यन्त आवश्यक होते हैं।

मणिबन्ध से मध्यमा उंगली के अन्तिम सिरे तक के भाग को हाथ कहते हैं । हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार ये हाथ पांच प्रकार के होते हैं:-

1. अत्यन्त छोटा हाथ 2. छोटा हाथ, 3. सामान्य हाथ, 4. लम्बा हाथ, 5. अत्यन्त लम्बी हाथ ।

हाथ की बनावट को देखने के लिए हाथ को उल्टा करके देखना चाहिए। इस प्रकार देखने से यह ज्ञात हो जाता है कि सामने वाले व्यक्ति का हाथ किस प्रकार का है। इस प्रकार के हाथ के भेद से भी व्यक्ति के बारे में बहुत कुछ जानने को मिल जाता है।

1. अत्यन्त छोटा हाथ:- इस प्रकार के व्यक्ति अत्यन्त संकीर्ण विचारों वाले तथा सन्देह की प्रवृत्ति के होते हैं। ये अपने छोटे-छोटे स्वाथों के लिए झगड़ते रहते हैं। जीवन में अपने ही स्वार्थ को सर्वोपरि महत्व देते हैं और सही रूप में कहा जाए तो धोखा चालाकी और अवसरवादिता इनके रक्त में मिली हुई होती है। दूसरे की बुराई करना दूसरे को नीचा दिखाने की भावना तथा दूसरों के प्रति शत्रुवत व्यवहार करना इनके लिए सहज स्वाभाविक है। समाज की दृष्टि से अथवा देश की दृष्टि से इन व्यक्तियों का कोई बहुत बड़ा मूल्य अथवा योगदान नहीं होना।

2. छोटा हाथ:- एक प्रकार से ऐसे व्यक्तियों को आलसी कहा जाता है। यद्यपि ये व्यक्ति बढ़-चढ़कर कल्पनाएं करते हैं और अपनी कल्पना के बल पर सब कुछ करने के लिए तैयार हो जाते हैं, परन्तु इनके जीवन में आलस्य जरूरत से ज्यादा होता है जिसकी वजह से वे अपनी किसी भी योजना को सही रूप से कार्यान्वित नहीं कर सकते।

बढ़-चढ़कर बातें करना, डींगे हांकना, अपने चारों ओर आडम्बरपूर्ण वातावरण बनाये रखना इनको प्रिय लगता है, और ये कार्य भी इस प्रकार से करते हैं, जिससे चारों ओर इनके भ्रम की सृष्टि अथवा सन्देह का वातावरण बना रह सके। यद्यपि यह बात सही है। कि ये तीव्र मस्तिष्क वाले होते हैं परन्तु अवसर का सदुपयोग करना ये नहीं जानते। जब समय बीत जाता है तब ये पछताते रहते हैं। ऐसे व्यक्ति योग्य एवं समर्थ होते हुए भी अपने जीवन में पूर्ण सफल नहीं हो पाते।

3. सामान्य हाथ:- ऐसे व्यक्ति व्यावहारिक बुद्धि से सम्पन्न होते हैं । इनको इस बात का एहसास रहता है कि किससे कब क्या बात की जाए और किसके साथ किस प्रकार की व्यवहार किया जाए। ये सारी बातें इनके दिमाग में होती हैं, इसलिए इनको व्यवहार कुशल कहा जाता है।

समाज में ये सम्मान प्राप्त करते हैं तथा किसी भी कार्य को प्रारंभ करने से पूर्व उसके बारे में काफी समय तक सोचते विचारते रहते हैं। इनके जीवन में बराबर संघर्ष बना रहता है और संघर्ष के बल पर ही ये व्यक्ति अपने जीवन में सफलता प्राप्त करते हैं तथा सुविधाओं को जुटा पाते हैं। सामान्यतः इनका स्वास्थ्य ठीक रहता है और सबसे बड़ी बात इनमें यह पाई जाती है कि ये परिस्थितियों के अनुसार अपने आपको ढाल लेने की क्षमता रखते हैं।

4. लम्बा हाथ:- ऐसे व्यक्ति समाज के लिए सामान्यतः उपयोगी होते हैं। इनको जीवन में एक रस देखा जा सकता है। ये न तो बहुत अधिक प्रसन्न रहते हैं और न ही चिन्तायस्त जीवन में ये अत्यधिक व्यवहार कुशल, होशियार तथा मेधावी होते हैं। इनके सामने किसी भी प्रकार की कोई भी बात हो, उस बात की तह तक ये बहुत जल्दी पहुंच जाते हैं और उस कार्य के बारे में अथवा उस कार्य के परिणाम के बारे में ये जो धारणा बनाते हैं, वह धारणा आगे चलकर पूर्णतः नही होती है। अपरिचित से अपरिचित व्यक्ति को देखकर उसके बारे में, उसके चरित्र के बारे में, उसकी कार्यकुशलता के बारे में ये व्यांजन जो धारणा बनाते हैं, वह आगे चलकर पूर्णतः सही होती है। ऐसे व्यक्ति समाज के लिए ज्यादा उपयोगी कहे जा सकते हैं।

5. अत्यन्त लम्बा हाथ:-समाज की दृष्टि में इन व्यक्तियों का कोई विशेष उपयोग नहीं होता। ऐसे व्यक्ति जरूरत से ज्यादा भावुक तथा कल्पना की दुनिया में ही जीवित रहने वाले होते हैं। जब जीवन का संघर्ष इनके सामने उपस्थित होता है तो ये बिचलित का जाते हैं और उन परिस्थितियों को झेलने की तथा संघर्षों का सामना करने की इनमें क्षमता नहीं रहती परिस्थितियों का चुनौती देना इनकी बात नहीं है।

हाथ के प्रकार जान लेने के साथ ही कुछ और तथ्य भी जान लेने चाहिए। हाथ चौड़ा या तंग हो सकता है, नरम अथवा सख्त अनुभव हो सकता है। इसी प्रकार जब हम किसी का हाथ अपने हाथ मे लेते हैं, तो वह शुष्क अथवा नम अनभव हो सकता है। ये सारे तथ्य एक हस्तरेखा विशेषज्ञ के लिए समझ लेने आवश्यक होते हैं।

हाथ देखते समय यह बात भी समझ लेनी चाहिए कि उंगलियों के सिरे नकीले हैं या वर्गाकार हैं अथवा चपटाकार हैं। एक पर्व और दसरे पर्व के बीच में जो गांठ होती हैं, उनका भी अध्ययन किया जाना चाहिए। ये गांठ मोटी अथवा पतली हो सकती है।

इसी प्रकार प्रत्येक उंगली की लम्बाई भी अपने आप में महत्व रखती है। यह बात अनुभव में सिद्ध हई है कि जिस व्यक्ति की कनिष्ठिका अर्थात सबसे छोटी उंगली का ऊपरी सिरा यदि अनामिका उंगली के तीसरे पर्व से आगे की ओर बढ़ा हुआ हो तो वह व्यक्ति विशेष बुद्धिमान, प्रतिभावान तथा ऊंचे पद पर पहुंचने वाला होता है।

जिन व्यक्तियों के हाथों में सबसे छोटी उंगली को लम्बा पाया जाता है, वे व्यक्ति वास्तव में ही अपने जीवन में सफल होते देखे गए हैं। मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि हमको हाथ का अध्ययन करते समय उंगलियों की लम्बाई पर भी ध्यान रखना चाहिए।

उंगलियों के नाम

प्रत्येक व्यक्ति के हाथ में चार उंगलियां तथा एक अंगूठा होता है। अंगूठे को अंगुष्ठ भी कहा जाता है तथा इसके दो भाग होते हैं:-

1. तर्जनी:- यह जंगली अंगूठे के पास वाली होती है, इसको तर्जनी उंगली कहा जाता है। इसके तीन पर्व होते हैं। इस उंगली का अध्ययन करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि इसका मिरा किस प्रकार का है तथा उसका झुकाव किस तरफ है। झुकाव तीन प्रकार के होते हैं। कुछ उंगलियां बिल्कुल सीधी होती हैं, जबकि कुछ उंगलियां अंगूठे की तरफ झुकी हुई होती हैं। इसी प्रकार कुछ उंगलियां मध्यमा की तरफ झुकी हुई हो सकती है।

2. मध्यमाः– यह हाथ में सबसे बड़ी उंगली होती है, तथा इसको संस्कृत में मध्यमा उंगली कहा जाता है। इसके बारे में अध्ययन करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि इसके पर्वो के बीच जो गांठे है, वे गांठें बहुत ज्यादा फूली हुई हैं अथवा मामूली हैं। ऐसे बहुत कम हाथ देखे जाते हैं, जिनमें तर्जनी तथा मध्यमा उंगली बराबर हो, परन्तु जिस हाथ में भी तर्जनी तथा मध्यमा उंगली बराबर हो वह व्यक्ति आत्महत्या करता है या उसकी मृत्यु स्वाभाविक रूप से नहीं होती।

3. अनामिका:- मध्यमा के पास वाली उंगली को अनामिका उंगली कहते हैं। सामान्यतः यह जंगली मध्यमा उंगली से छोटी होती है तथा लगभग तर्जनी उंगली के बराबर लम्बी होती है। इस उंगली के झुकाव का विशेष अध्ययन करना चाहिए। यदि इस उंगली का झुकाव मध्यमा की तरफ हो तो वह ज्यादा अच्छी तथा श्रेष्ठ कही जाती है। विपरीत दिशा में झुकाव होने से ऐसा प्रतीत होता है कि उस व्यक्ति का गृहस्थ जीवन ज्यादा सुखमय नहीं रह सकेगा।

4. कनिष्ठिका :- यह हाथ की सबसे छोटी उंगली होती है तथा सामान्यतः इसका अंतिम सिरा अनामिका के ऊपरी सिरे तक अर्थात् ऊपरी जोड़ तक पहुंचता है, परन्तु जिस व्यक्ति के हाथ में यह जंगली जरूरत से ज्यादा लम्बी होती है, वह व्यक्ति निश्चय ही सौभाग्यशाली होता है और अपने प्रयत्नों से वह उच्चस्तरीय सम्मान प्राप्त करता है ।

हाथ की बनावट

हड्डियों के पतले तथा भारी होने में हाथों के प्रकार में अन्तर आ जाता है। इस प्रकार से हम हाथों को सात वर्गों में बांट सकते हैं, जो कि निम्नलिखित हैं:-

1. प्रारम्भिक प्रकार 2. वर्गाकार हाथ, 3. कर्मठ हाथ, 4. दार्शनिक हाथ, 5. कलात्मक हाथ, 6. आदर्श हाथ, 7. मिश्रित हाथ।

आगे की पक्तियों में इन हाथों की विशेषताओं को मैं स्पष्ट कर रहा हूं:-

1. प्रारम्भिक प्रकार :- सामान्यतः ऐसा हाथ खुरदरा, भारी तथा मोटा-सा होता है। इस हाथ की बनावट बेडौल तथा असुन्दर होती है एवं इसकी उंगलियां असमान सी अनुभव होती हैं। सही रूप में देखा जाए तो ऐसे व्यक्ति पूर्ण सभ्य नहीं कहे जा सकते। नकल करने की प्रवृत्ति इनमें विशेष रूप से होती है। ये सभ्य हो सकते हैं. परन्तु संस्कृति के जो गुण होने चाहिए, वे इन व्यक्तियों में नहीं पाये जा सकते।

एक प्रकार से ये व्यक्ति पूर्णत: भौतिकवादी होते हैं। इनके जीवन का परम उद्देश्य भोजन, वस्त्र और आवास ही होता है। इसके आगे जीवन के मूल्यों को न तो ये समझते हैं और न समझने का प्रयत्न ही करते हैं। एक प्रकार से आदर्श एवं जीवन मूल्यों की दृष्टि से ये सर्वथा कोरे होते हैं।

यद्यपि यह बात सही है कि ये व्यक्ति परिश्रमी होते हैं और जो कुछ भी जीवन में उपार्जित करते हैं तब परिश्रम के बल पर ही संभव है। छोटी-छोटी बातों पर क्रोधित हो जाना या उफन जाना इनका स्वभाव होता है। कानून तोड़ना इनके लिए बायें हाथ का खेल होता है। सामाजिक एवं नैतिक दृष्टि से ये व्यक्ति अपराधी वर्ग के अन्तर्गत आते हैं।

2. वर्गाकार हाथ:- यदि हाथ को उल्टा करके देखें तो ऐसा हाथ तुरन्त पहचानने में आ जाता है। इस प्रकार के हाथों में ग्रन्थियां विशेष रूप से होती हैं तथा अस्थि प्रधान बेडौल हाथ ही इस वर्ग में आता है, परन्तु प्रारम्भक प्रकार के हाथ और इस हाथ में यह अन्तर होता है कि इस प्रकार के हाथ की उंगलियों में एक विशेष प्रकार की लचक होगी है, जिससे इस हाथ को आसानी से पहचाना जा सकता है। ऐसे हाथ प्रारम्भिक प्रकार के हाथों की अपेक्षा पतले और कम खुरदरे होते हैं।

ऐसे व्यक्ति प्रतिभा सम्पन्न एवं बुद्धिजीवी होते हैं। समाज को इनका योगदान बराबर रहता है। ऐसे व्यक्ति ही समाज का नेतृत्व करने में सक्षम होते हैं तथा आने वाली पीढ़ियों के लिए कुछ विशेष धरोहर देकर जाते हैं। ऐसे हाथ वाले व्यक्ति दार्शनिक, कलाकार, चित्रकार, साहित्यकार मनोवैज्ञानिक आदि होते हैं।

यद्यपि यह बात सही है कि इस प्रकार के व्यक्तियों के पास धन का अभाव होता है परन्तु ये अपने जीवन में धन को इतना अधिक महत्त्व नहीं देते जितना कि अपनी प्रतिष्ठा को, सम्मान को और कीर्ति को देते हैं।

3. कर्मठ हाथ:- यह हाथ चौड़ाई की अपेक्षा लम्बाई लिए हुए होता है। हाथ का प्रारम्भ कुछ थुलथुला सा तथा आगे का भाग उसकी अपेक्षा कुछ हल्का होता है। हथेली पर पाये जाने वाले पर्वत मांसल और कठोर होते हैं तथा अधिकतर पर्वत दबे हुए एवं भारी होते हैं।

ऐसे व्यक्ति अपने जीवन में बराबर सक्रिय बने रहते हैं I और कोई न कोई काम करते ही रहते हैं। खाली बैठना इनको अपने जीवन में अच्छा नहीं लगता । अत्यन्त साधारण श्रेणी में जन्म लेकर भी ये अपने परिश्रम से अपनी स्थिति को अनुकूल बना लेते हैं और जीवन में पर्ण सफलता प्राप्त कर लेते हैं इनके कार्यों में विचार, भावना एवं पुरुषार्थ का प्रबल सामंजस्य रहता है।

ऐसे व्यक्ति भावनाओं द्वारा अपने कार्य का संचालन नहीं करते, अपित इनके जीवन में भावना तथा व्यावहारिकता का पूर्ण समन्वय होता है। जीवन में नये-नये कार्यों की तरफ अग्रसर होना, नयी से नयी वस्तु की खोज करना तथा कुछ न कुछ नया करते रहना इनका स्वभाव होता है। सफल व्यक्तित्त्व इस प्रकार से इनकी विशेषता कही जा सकती है।

4. दार्शनिक हाथ:- ऐसा हाथ फूला हुआ, गठीले जोड़ों से युक्त तथा सामान्यतया गुदगुदा-सा होता है। यह हाथ न तो विशेष कठोर होती है न विशेष कोमल हाथ में लेते ही यह ऐसा प्रतीत होता है कि मानों इस हाथ में एक विशेष प्रकार की लचक और लय हो। ये अपेक्षाकृत पतले, कोमल और मृदुल हाथ होते हैं।

जिनके हाथ दार्शनिक वर्ग के होते हैं, वे व्यक्ति योग्य विद्वान एवं बुद्धिजीवी होते हैं। समाज के लिए ये व्यक्त ज्यादा उपयोगी तथा नेतृत्व देने वाले सिद्ध हुए हैं। समाज जिन कार्यों से ऊंचा उठता है या देश जिन कार्यों से गौरवान्वित होता है, ऐसे कार्य इन्हीं प्रकार के व्यक्तियों द्वारा सम्पन्न होते हैं।

ऐसे व्यक्ति आदर्श एवं विश्वासों के प्रति पूरी-पूरी आस्था रखते हैं। ज्ञान के क्षेत्र में ये जिज्ञास बने रहते हैं तथा ज्ञान और बुद्धि में सदैव तत्पर एवं लोगों के लिए हितकारी देखे जा सकते हैं। बड़े-बड़े दार्शनिक विचारक एवं बद्धिजीवी इसी प्रकार के हाथों से सम्पन्न होते हैं। जीवन में इनको धन का लगभग अभाव-सा रहता है, परन्तु फिर भी सम्मान की दृष्टि से ये बहुत ऊंचे उठे हुए होते हैं ।

5. कलात्मक हाथ : – इस प्रकार का हाथ नरम, लचकदार तथा मुलायम होता है। इसका रंग गुलाबी-सी आभा लिये हुए होता है तथा देखने में ये हाथ अत्यन्त सुन्दर होते हैं। हड्डियों के सभी जोड़ समान अनुपात के होते हैं तथा इन हाथों की पहचान इनकी उंगलियों से भली प्रकार से की जा सकती है। इनकी उंगलियां पतली लम्बी कलात्मक एवं सुघड़ होती हैं ।

ऐसे व्यक्ति स्वभावतः कला प्रेमी एवं सौन्दर्यजीवी होते हैं। इनके हृदय में कला के प्रति एक जिज्ञासा बराबर बनी रहती है तथा ये निरंतर कला के बारे में सोचते रहते हैं। यद्यपि ये स्वयं कलाकार होते हैं और दूसरे व्यक्तियों को भी उसी रूप में देखते हैं। किसी कारणवश ये स्वयं कलाकार नहीं भी होते तो भी कला के ये जबरदस्त पारखी होते हैं और इनके धन का अधिकतर हिस्सा कला से सम्बन्धित कार्यों में व्यय हो जाता है।

ऐसे व्यक्तियों का रुझान प्रेम की तरफ विशेष रहता है, परन्तु जीवन में अधिकतर ये प्रेम के मामले में असफल ही रहते हैं। व्यावहारिक दृष्टि में ये व्यक्ति सफल नहीं होते, क्योंकि ये अधिकतर भावना एवं कल्पना में ही खोए हुए रहते हैं। जीवन में आर्थिक चिन्ता इन्हें बराबर बनी रहती है तथा स्वभाव से ये आलसी होते हैं।

मेरे अनुभव में यह भी आया है कि यदि कलात्मक हाथ अत्यधिक लचीला न होकर थोड़ा-सा कड़ाई लिये हुए हो तो ऐसे व्यक्ति कला के माध्यम से अर्थ-संचय भी करते हैं तथा प्रसिद्धि भी प्राप्त करने में सफल रहते हैं।

6. आदर्श हाथ :- वास्तव में हाथ का यह सर्वोत्तम प्रकार कहा गया है। ऐसा हाथ सामान्यतः सुडौल, मुलायम तथा एक विशेष लचक लिये हुए होता है। ऐसा हाथ न तो अधिक लम्बा होता है और न अधिक चौड़ा।

ऐसे व्यक्ति भावी घटनाओं को बहुत पहले से जान लेते हैं, अर्थात् ऐसे व्यक्ति अपने जीवन में सूक्ष्मदर्शी होते हैं और बाल की खाल तक पहुंचने में विश्वास रखते हैं। जीवन में इनको जरूरत से ज्यादा बाधाओं एवं संघर्षो से सामना करना पड़ता है, परन्त फिर भी इन कठिनाइयों को देखकर ये विचलित नहीं होते, अपितु अपने पथ पर बराबर आगे बढ़ते रहते हैं। यद्यपि कई बार समाज से इनको तिरस्कार एवं उपेक्षा भी मिलती है, परन्तु इन सब बातों से ये जीवन में निराश नहीं होते।

सांसारिक दृष्टि से ये व्यक्ति केवल आदर्शों में ही जीवित रहने वाले होते हैं, जिसकी वजह से ऐसे व्यक्तियों का सामाजिक जीवन प्रायः असफल-सा ही रहता है। लेकिन फिर भी ये व्यक्ति धुन के धनी होते हैं और जिस कार्य में एक बार ये हाथ डाल देते हैं उस कार्य को पूरा करके ही छोड़ते हैं। समाज के लिए इनका योगदान एक प्रकार से वरदान स्वरूप ही होता हैं।

स्वप्न और आदर्शों में विचरण करने वाले ये व्यक्ति सांसारिक कार्यों में अनफिट होते हैं। पास में द्रव्य न होने पर भी राजसी ठाटबाट से गुजारा करने में विश्वास रखते हैं तथा धन समाप्त हो जाने पर फ़ाकों पर गुजारा करने में भी नहीं हिचकिचाते। इनके जीवन का अन्तिम भाग अत्यन्त दुखद होता है।

7. मिश्रित हाथ :- यह हाथ का अन्तिम वर्ग कहा जा सकता है। पहले छः बर्गों में जो हाथ नहीं आता, उस हाथ की गणना इस वर्ग में की जाती है। इस प्रकार के हाथों में एक से अधिक हाथों के गुण मिलते हैं, इसीलिए इसको मिश्रित हाथ कहा जा सकता है। उदाहरण के लिए कर्मठ हाथ और दार्शनिक हाथ का मिला जुला जो रूप होगा वह इसी वर्ग के अन्तर्गत आएगा।

हाथ का यह मिश्रण इनके चरित्र एवं व्यवहार में भी देखा जा सकता है। ऐसे व्यक्ति किसी भी कार्य को जितनी उतावली से प्रारम्भ करते हैं, धीरे-धीरे उस कार्य के प्रति इनकी रुचि समाप्त हो जाती है और उस कार्य को बीच में ही छोड़कर ये नये कार्य को प्रारम्भ कर देते हैं। इनके दिमाग में निरन्तर सन्देह, आशंका और भ्रम का वातावरण बना रहता है।

ऐसे व्यक्तियों का चित अस्थिर होता है तथा किसी भी कार्य में पूरी तरह से सफलता न मिलने के कारण ये शीघ्र ही निराश हो जाते हैं और इसी वजह से ये धीरे-धीरे आत्मकेन्द्रित बन जाते हैं। ऐसे व्यक्तियों को जीवन में सफलता बहुत अधिक प्रयत्नों के बाद ही मिलती है।

ऊपर मैंने हाथ के सात प्रकारों का विवरण स्पष्ट किया है। हाथ का अध्ययन करने से पूर्व हस्तरेखा विशेषज्ञ के लिए यह बहुत अधिक आवश्यक होता है कि वह सबसे पहले इस बात का अध्ययन कर ले कि सामने वाले व्यक्ति का हाथ किस अगं का है और उस वर्ग का हाथ होने से उसमें क्या-क्या विशेषताएं या कमियां हैं, उसको ध्यान में रखकर यदि हम उसके हाथ में पाई जाने वाली अन्य रेखाओं का अध्ययन करेंगे तो निश्चय ही हम सफलता के अत्यधिक निकट होंगे और हमारा भविष्य कथन एक प्रकार से विज्ञान सम्मत पद्धति पर आधारित होगा।


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