क्यों विरोध करते हैं ज्योतिषी कालसर्प योग का?

कालसर्प योग ज्योतिष जगत का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण, रोचक, चर्चित एवं विवादास्पद योग बन चुका है। कई विद्वानों के कालसर्प योग के समर्थन में बड़े-बड़े लेख लिखे हैं तथा इस योग की शान्ति हेतु कई पुस्तकें भी प्रकाशित हुई हैं। तो कई विद्वानों ने कालसर्प योग नहीं होता है, इस विषय पर भी पुस्तकें प्रकाशित कीं हैं। कालसर्प योग नहीं होता है इस विषय को सिद्ध करने के लिए नकारात्मक सोच वाले विद्वानों के सारगर्भित तर्क इस प्रकार हैं:-

  1. प्राचीन किसी ग्रंथ में कालसर्प योग का उल्लेख नहीं मिलता ?
  2. यह ब्राह्मणों की कमाई का साधन है ?
  3. कालसर्प योग अशुभ नहीं होता क्योंकि यह योग बड़े-बड़े लोगों की कुण्डली में पाया जाता है? इसलिए यह योग शुभ है।
  4. ऐसे भयानक नाम वाले योग की कल्पना ऋषि लोग कर ही नहीं सकते? यह बाद में फैलाया जाने वाला भ्रमजाल है।
  5. राहु-केतु नामक कोई ग्रह आकाश में नहीं है। विदेशी लोग भी राहु-केतु को ग्रह नहीं मानते।
  6. यह योग राहु-केतु की अंशात्मक दूरी से टूट जाता है।
  7. कालसर्प योग को ज्यादा मानेंगे तो हर दस में नौ कुण्डलियां कालसर्प योग की मिल जाएंगी।

आइए इन सभी तर्कों का हम शास्त्रीय एवं वैज्ञानिक विवेचन करें।

समाधान 1. होराशास्त्र अ.36 महर्षि बादरायण महर्षि गर्ग, मणित्थ, बृहत्जातक अ.12 पृ.148, सारावली अ.11 पृ. 154 जातकतत्वम्, ज्योतिषरत्नाकर, जैन ज्योतिष नामक पाश्चात्य ग्रंथ में भी कालसर्प योग का स्पष्ट वर्णन मिलता है।

भृगु ऋषि से प्राचीन कोई नहीं भृगुसूत्र अ. 8 श्लोक 11-12 इस प्रकार है-

पुत्राभावः सर्पशापात् सुतक्षय ॥1॥ नागप्रतिष्ठया पुत्र प्राप्ति ॥2॥

इससे अधिक और कितने प्रमाण चाहिए? पर प्राचीन ग्रंथ पढ़े कौन?

मैं अभी ताजी घटना कालसर्प योग के बारे में प्रबुद्ध पाठकों को बतलाना चाहूँगा । बद्रीनाथ धाम में एक विशाल ज्योतिष सम्मेलन में कुछ इसी प्रकार की चर्चा कालसर्प योग को लेकर चली।

एक ज्योतिषी ने कालसर्प योग के बारे में कहा कि प्राचीन किसी ग्रन्थ में कालसर्प योग का उल्लेख नहीं मिलता। इस पर मैं केवल इतना ही कहना चाहूँगा कि प्राचीन ग्रन्थों में तो कारयोग, मर्सडिज, स्कॉरपियो अवश्य मिलता है। जिसे हमने आधुनिक परिपेक्ष्य में मर्सडिज, स्कॉरपियो, मारुति आदि में परिभाषित कर दिया है, तो क्या ज्योतिष में शोध की कोई गुंजाइश नहीं है। ज्योतिष में नए शोध को क्या हमेशा के लिए ताला लग गया है। नहीं ज्योतिष विज्ञान इतना संकुचित या संकीर्ण नहीं हो सकता कि उसमें शोध-अनुसंधान को कोई मार्ग ही न रहे।

जब पूर्ण सक्षम विज्ञान में आज नए-नए शोध हो रहे हैं, नई-नई मशीनें, यंत्र आ रहे हैं, तो ज्योतिष में नए शोध को कैसे नकारा जा सकता है, यह मेरी समझ से परे है।

प्राचीन भारतीय ऋषियों ने हजारों लाखों वर्ष पूर्व ज्योतिष के सिद्धांतों की रचना अपने सतत अनुभव, तपस्या व साधना से की तो हजारों वर्ष पूर्व रचित सिद्धांतों में और आज की परिस्थितियों में कोई अंतर नहीं हैं।

प्राचीन भारतीय ऋषियों ने आई.ए.एस. मंत्री, आई.पी.एस. योग, आई. आर. एस. के आदि उच्च प्रशासनिक योगों के बारे में अलग से किसी सिद्धांत की रचना नहीं की। इसका मतलब यह नहीं कि ऐसा कोई योग जातक की कुण्डली में नहीं होता।

समाधान 2. जो लोग कर्मकाण्ड व पौरोहित्य को नहीं जानते और नहीं मानते? वेब्राह्मणेत्तर लोग ही कालसर्प योग का विरोध करते हैं? गणेश पूजा, दुर्गा पूजा, श्राद्ध, यज्ञ एवं धार्मिक अनुष्ठान करना, धर्म व आस्था का विषय है। मूर्तिपूजा के विरोधी व नास्तिक लोग ऐसे कृत्यों का घोर विरोध अनादि काल से करते चले आ रहे हैं पर मन्दिरों में पूजा स्थलों में कुम्भ मेलों में फिर भी भीड़ कम नहीं हुई है।

मंत्र शक्ति एवं प्रार्थनाओं की शक्ति को सभी धर्म व जातियों ने एक मत से स्वीकार किया है। इसमें विवाद व्यर्थ है। कालसर्प शान्ति करने से लोगों को आशातीत लाभ हुआ। इसका लिखित दस्तावेज हमारे पास है दृष्टान्त कुण्डलियों का भण्डार है।

ब्राह्मण क्यों विरोध करते हैं?

इन दिनों यह भी देखने में आया है कि ब्राह्मण वर्ग के कुछ लोग कालसर्प योग का विरोध कर रहे हैं। ब्राह्मणेत्तर लोगों का विरोध तो समझ में आता है ? पर ब्राह्मण वर्ग ही ब्राह्मण के क्यों खिलाफ हैं, यह समझ के बाहर है? विरोध के लिए कोई भी विरोध कर सकता है। विरोधी की कोई जाति नहीं होती। जहां तक विरोध करने वाले ब्राह्मण की बात है तो स्पष्ट है ये लोग जन्म से ब्राह्मण हैं, कर्म से नहीं।

अर्थात् ये लोग कर्मकाण्ड-पूजापाठ एवं पौरोहित्य कर्म के ज्ञाता नहीं होते। इन्हें वैदिक संस्कृति व संस्कृत का ज्ञान नहीं होता। ये लोग अधिकतर सरकारी नौकरी में लगे हुए, आचरण भ्रष्ट होते हैं। कम्प्यूटर इंजीनियर, सिविल इंजीनियर या ब्यूरोक्रेट होते हैं। शौकिया तौर पर ज्योतिष सीख लेते हैं। असली धंधा कुछ और होता है। ऐसे ही सज्जन पारम्परिक ज्ञान के अभाव में अल्पज्ञता के चलते अपनी व ज्योतिष शास्त्र दोनों की कब्र खोदते हैं। ब्राह्मण कमाते हैं तो कुछ लोगों के पेट में दर्द होता है।

पाश्चात्य संस्कृति के पिछलग्गू इन तथाकथित ज्योतिषियों को संस्कृति के विद्वानों से कर्मकाण्डी पण्डितों से, ज्योतिष शास्त्र के वास्तविक उपासकों व कीर्तिवन्त विद्वानों से घोर एलर्जी होती है। इनसे दूरी बनाए रखने में ही बुद्धिमानी है।

समाधान 3. कालसर्प योग की लगभग हजार कुण्डलियों का संग्रह हमारे पास है। यह योग उन्नति में बाधक है या बड़े लोगों की कुण्डली में नहीं होता ऐसा कहीं नहीं लिखा गया है। जो सज्जन नूतन अनुसंधान योग के महत्त्व को फलित ज्योतिष में अस्वीकारकरते हैं। वो कैसे ज्योतिषी हैं? ऐसे में उनकी खुद की योग्यता पर प्रश्नवाचक चिह्न लग जाता है।

समाधान 4. प्राचीन ज्योतिष ग्रंथों में बालरिष्टयोग, वैधव्ययोग, मारक, मारकेश, शस्त्रहन्तायोग, अचानक मृत्युयोग, अपघात आत्महत्या आदि पर बहुत विचार किया गया है अतः ऋषियों के बारे में अनर्गल प्रलाप मिथ्या है।

समाधान 5. एक ज्योतिषी महोदय ने मुझसे कहा कि राहु-केतु का फिजीकल अपीयरेन्स (भौतिक अस्तित्व) नहीं है, अतः इससे किसी प्रकार का कोई योग नहीं बनता।

मुझे ज्योतिषी महोदय की बात सुनकर हंसी आई कि राहु केतु का यदि भौतिक अस्तित्व (फिजीकल अपीयरेन्स) नहीं है तो फिर सूर्य ग्रहण व चन्द्र ग्रहण कैसे बनते हैं। सूर्य ग्रहण के समय राहु तथा चन्द्र ग्रहण के समय केतु स्पष्ट रूप से आकाश में नंगी आँखों से देखे जा सकते हैं और पूरा विश्व उन्हें देखता है।

राहु-केतु वस्तुत: छाया ग्रह हैं, छाया के रूप में ये हमें सूर्य-चंद्र ग्रहण के दिन आकाश में दिखाई पड़ते हैं।

अब रही बात राहु-केतु से कोई योग नहीं बनने की तो फिर ग्रहणयोग चाण्डाल योग, अंगारक योग का भी कोई अस्तित्व नहीं है क्योंकि यह दोनों योग भी राहु से ही बनते हैं।

ग्रहणयोग, चाण्डालयोग का ही विस्तृत रूप है, कालसर्प योग। ग्रहण योग में चन्द्रमा राहु से पीड़ित होता हैं। चाण्डाल योग में गुरु राहु से प्रताड़ित होता है जबकि राहु-केतु के मध्य सारे ग्रह आ जाने से सारे ग्रह राहु-केतु से प्रताड़ित होते हैं, यही कालसर्प योग है। इस पर विशेष जानकारी के लिए भोजसंहिता ‘राहु खण्ड’ एवं ‘केतु खण्ड को देखना चाहिए।

समाधान 6. अंशात्मक युति से यह योग टूटता है, ऐसा उल्लेख प्राचीन ग्रन्थों में नहीं है। फिर भी ज्योतिष शास्त्र में नए अनुसंधान करने के लिए मार्ग अवरुद्ध नहीं है। नए अनुसंधान में अंशात्मक युति तो दूर कोई एक ग्रह भी इनकी पकड़ से दूर निकल जाए तो आंशिक कालसर्प योग बनता है और उसका भी दुष्प्रभाव जातक के जीवन में पड़ता है। जिसका प्रभाव खुद जातकों ने स्वीकार किया है पर यह प्रभाव पूर्ण कालसर्प योग में आधा ही अनिष्ठ कारक होता है।

समाधान 7. यह आरोप भी व्यर्थ है। यह बात सही है कि ज्यादा दुःखी, नींद न आने वाले, सन्तप्त प्रतिपल अशुभ की आशंका से ग्रसित व दुःस्वप्न से पीड़ित, नकारात्मक सोच एवं मानसिक चिन्ता से ग्रसित लोगों की जन्म कुण्डली में कालसर्प योग बहुतायत में पाया जाता है।


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