कालसर्प योग एक ऐसा योग है, जिसके कारण फलित ज्योतिष की सत्यता अकाट्य रूप में प्रमाणित हुई है। यह योग जातक के जीवन के अन्य महत्त्वपूर्ण एवं गोपनीय रहस्यों को भी उद्घाटित करता है। हमारे नवीन शोध व अनुसंधान से निम्न तथ्य उद्घटित होकर सामने आए हैं।

पितृदोष वाली कुण्डली

राहु + सूर्य – कालसर्प योग हो तथा राहु या केतु के साथ यदि सूर्य हो तो जातक पितृदोष से ग्रसित होगा। उसके पूर्वज किसी न किसी कारण से जातक से नाराज या असंतुष्ट अवश्य ही रहेंगे। जातक ने कोई वचन भंग किया होगा, किंसी के साथ विश्वासघात किया होगा, जाने-अनजाने में मान्यताएं अधूरी या अपूर्ण रही होंगी।

ऐसे में अन्य विधियों व शांति उपायों के साथ जातक पिता की पूर्ण सेवा करे। पिता न हो तो पिता तुल्य वृद्ध रिश्तेदार की सेवा सुश्रुषा करे पूर्वजों का श्राद्ध तर्पण विधि-विधान से करे।

मातृदोष वाली कुण्डली

राहु + चंद्र – जन्मकुण्डली में कालसर्प योग हो तथा राहु या केतु के साथ यदि चन्द्रमा हो तो जातक मातृदोष से ग्रसित होगा उसने अपनी माता का दिल कहीं न कहीं से दुखाया होगा माता से बेवफाई, पत्नी द्वारा माता की उपेक्षा भी सम्भव है। देवी की मान्यताएं या किसी महिला के साथ विश्वासघात भी सम्भव है।

ऐसे में अन्य विधियों के साथ जातक को अपनी माता की पूर्ण सेवा सुश्रुषा करनी चाहिए। माता न हो तो माता तुल्य वृद्ध महिला सासु, बुआ, मासी, बड़ी बहिन की सेवा करके आशीर्वाद ले माता का साम्वत्सरिक श्राद्ध-तर्पण पूर्व विधि विधान से करे।

भातृदोष वाली कुंडली

राहु + मंगल – जन्मकुण्डली में कालसर्प योग हो तथा राहु या केतु के साथ यदि मंगल हो तो जातक भातृदोष से ग्रसित होगा। उसने अपने भाई के साथ धन का हरण किया होगा, भाई के साथ बेवफाई, रूखा व्यवहार या भाई के प्रेम व त्याग की उपेक्षा की होगी।

ऐसे में भाई की सेवा सुश्रूषा करके उसका आशीर्वाद लें। भाई न हो तो भाई के समान ही कुटुम्बीजनों का आशीर्वाद लें। भाई का साम्वत्सरिक श्राद्ध-तर्पण पूर्ण विधि-विधान से करें।

ननिहाल दोष वाली कुंडली

राहु + बुध – जन्मकुण्डली में कालसर्प योग हो तथा राहु या केतु के साथ यदि बुध हो तो जातक मामा, नाना या ननिहाल के दोष से ग्रसित होगा। छोटी बड़ी बहिन या बुआ का दिल जरूर दुखाया होगा। ऐसे में कालसर्प योग की शांति के साथ-साथ नाना व मामा की सेवा कर आशीर्वाद प्राप्त करें। यदि नाना न हो तो उसका साम्वत्सरिक श्राद्ध व तर्पण पूर्ण विधि-विधान व श्रद्धा पूर्वक करें।

गुरु दोष वाली कुंडली

राहु + बृहस्पति – जन्म कुण्डली में यदि कालसर्प योग हो तथा राहु या केतु के साथ यदि गुरु के साथ हो तो जातक गुरुदोष से ग्रसित होगा। जातक ने अपने गुरु, दीक्षा गुरु, शिक्षा गुरु, व्यवसाय गुरु, संस्कार गुरु या पूज्य ब्राह्मण का कहीं न कहीं अपमान उपेक्षा का प्रदर्शन जरूर किया होगा।

ऐसे में कालसर्प योग की शांति के अलावा गुरुपूर्णिमा पर शिक्षक दिवस आदि दिवस पर अपने गुरुजनों का सम्मान करें, उन्हें भोजन वस्त्र दक्षिणा व विविध उपहारों से संतुष्ट कर, उनका आशीर्वाद प्राप्त करें तो निश्चित रूप से जातक की उन्नति व विकास का काम द्रुतगति से होगा।

पत्नी दोष वाली कुंडली

राहु + शुक्र – जन्म कुण्डली में कालसर्प योग हो तथा राहु या केतु के साथ यदि शुक्र हो तो जातक पत्नी दोष से ग्रसित होता है जातक ने अपनी पत्नी के साथ विश्वासघात किया होगा, उसका कहीं दिल दुखाया होगा-ऐसे में कालसर्प योग शांति के साथ-साथ पत्नी के साथ सद्व्यवहार करें। पत्नी न हो तो उसका साम्वत्सरिक श्राद्ध-तर्पण पूर्ण विधि-विधान व श्रद्धा के साथ करें।

प्रेत दोष वाली कुंडली

राहु + शनि  – जन्मकुण्डली में कालसर्प योग हो तथा राहु या केतु के साथ यदि शनि हो तो जातक ने अपने नीचे तबके के किसी व्यक्ति के साथ, नौकर या शूद्र वर्ग के साथ दुर्व्यवहार करने से दुराशीष का शिकार हुआ है।

ऐसे में अन्य विधियों व उपायों साथ-साथ गरीबों को कोढ़ी व अपंग व्यक्तियों को भोजन खिलाकर आशीर्वाद लें। अनाथालय एवं वृद्धाश्रम में अन्न-धन-वस्त्र इत्यादि का दान करें। अतः कालसर्प योग की विधि कराते समय इन सभी बातों पर गम्भीरता से ध्यान देना चाहिए।

कालसर्प योग शांति कराने से लाभ

1. नाग पूजा से विष व्याधियों का शमन होता है।

2. ज्योतिष में पंचमी तिथि का स्वामी सर्प को ही माना गया है। लोक मान्यताओं के अनुसार जो भी व्यक्ति नाग पंचमी का व्रत कर नागों को दूध पिलाता है, उसे अपने जीवन में कभी सर्पदंश का भय नहीं रहता है। नागपंचमी के दिन अगर नाग की पूजा की जाए तो कालसर्प योग की पीड़ा, सर्पदंश भय से मुक्ति, सर्पश्राप से मुक्ति मिलती है।

3. नागपूजा से शिव एवं श्रीविष्णु दोनों की कृपा प्राप्त होती है।

4. डरावने सपने आने बंद हो जाते हैं।

5. हिंदू मान्यताओं के अनुसार सर्प या नाग को कभी नहीं मारना चाहिए। उनकी हमेशा पूजा करनी चाहिए। नाग पंचमी के दिन हनुमानजी की कृपा से भी सर्पश्राप (कालसर्प योग) की शांति होती है। जब भगवान राम और लक्ष्मण को मेघनाद ने नागपाश में बांध दिया था, तब शंकर के ग्यारहवें अवतार हनुमान ने ही उनको नागपाश से मुक्त करवाया था। इसलिए इस दिन हनुमान चालीसा और सुंदरकांड का पाठ भी किया जाता है।

6. घर में सांप बहुत आते हों तो तुलसी का पौधा (ब्रह्मस्थान) लगावें।

7. सर्पगन्धा औषधि लगाएं। मान्यता है कि नेवला सर्प संहार के बाद इसी औषधि का सेवन कर अपने को निर्विष करता है।

8. घर में मोरपंखों को श्रीकृष्ण की ऐसी तस्वीर के सामने रखें जिसमें भगवान मोरमुकुट धारण किए हों। इस तस्वीर के सामने ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ महामंत्र का जाप करना चाहिए।

9. कालसर्प शान्ति विधि से जन्मकुण्डली गत अनिष्ट ग्रहों की शान्ति होती है तथा प्रतिकूल ग्रह अनुकूल फल देने शुरु हो जाते हैं क्योंकि इस विधि में नवग्रहों का आह्वान, प्रतिष्ठा एवं हवन होता है।

10. कालसर्प शान्ति विधि से पितृदोष की शान्ति होती है।

11. कालसर्प शान्ति विधि में मातृ शक्तियों का आह्वान होने से देवी शक्तियों की गुप्त ताकत आपको हर प्रकार के अनिष्ट से बचाती है।

12. इस विधि में नथमों की पूजा एवं उनका हवन होने से गण्डमूल जन्म नथम दोष शान्त हो जाते हैं।

13. चूंकि कालसर्प शान्ति विधि अमावस्या को ही होती है जिससे अमावस्या जन्म दोष समाप्त हो जाते हैं।

14. कालसर्प शान्ति विधि में विशिष्ट संकल्प करने पर ‘ग्रहण जन्म’ दोष भी नष्ट होते हैं। इस अवसर पर किए गए प्रायश्चित स्नान व औषधपूर्ण मन्त्र-स्नान से सभी प्रकार के ग्रह दोष व अनिष्ट की शान्ति होती है।

15. एक वर्ष में तीन बार लगातार पूजा विधि कराने में कालसर्प जनित दोष से मुक्ति मिल जाती है। इसके चमत्कारी फल अनेक सज्जनों ने अपने जीवन में देखे हैं। निःसंतान दम्पतियों को पुत्र हुए हैं। कुंवारे लड़के-लड़कियों को योग्य वधू व वर की प्राप्ति हुई है। बेरोजगारों को अच्छी नौकरी मिली है। ऐसे सैकड़ों लिखित पत्र हमारे पास हैं, जिन्होंने निष्ठापूर्वक कालसर्प विधि कराई, सामूहिक शान्ति विधि में उत्साहपूर्वक भाग लिया और अनुकूल परिणामों की प्राप्ति हुई।

16. कालसर्प विधि की शान्ति के बाद लोगों का मानसिक तनाव कम हो जाता है।

17. कालसर्प विधि की शान्ति के बाद बीमार लोगों को रोग निवृत्ति हेतु दी गई दवाएं आश्चर्यजनक रूप से काम करने लगती हैं।

18. सबसे बड़ी राहत की बात यह है कि शिविरार्थी सज्जनों को विशिष्ट शान्ति व सन्तोष की अनुभूति होती है।

प्रार्थना में छिपी है सफलता की अनन्य शक्ति

प्रार्थना आत्मा का संगीत है। आत्मा को परमात्मा का प्रकाश देने वाली प्रार्थना है। जैसे शरीर के लिए भोजन आवश्यक है, वैसे ही प्रार्थना भी एक आध्यात्मिक भोजन है। प्रार्थना की फलश्रुति अनन्त है। प्रार्थना में छिपी अलौकिक शक्ति को हर धर्म, जाति व समुदाय ने स्वीकार किया है। शास्त्रों में कहा गया है कि प्रार्थना सदैव निष्काम भाव से करनी चाहिए। परोपकार के लिए दूसरों के हित के लिए करनी चाहिए तभी सही अर्थों में प्रार्थना की सुगन्धि मिलती।

यदि मनुष्य प्रार्थना का सही प्रयोग करना सीख जाए तो शीघ्र ही प्रतिकूल परिस्थितियों को अनुकूल बनाया जा सकता है। परिस्थितियां भाग्य से मिलती हैं। अच्छी परिस्थितियां सौभाग्य का लक्षण हैं। बुरी परिस्थितियां दुर्भाग्य का लक्षण हैं। दुर्भाग्य जब जन्म लेता है तो मनुष्य को विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है भाग्य आपको जो कुछ भी दे, महत्त्वपूर्ण तो है, लेकिन बहुत महत्त्वपूर्ण नहीं है। उससे भी बड़ी बात तो यह हो सकती है कि आपको भाग्य से जो मिल रहा है उसे पाने के बाद उसे चुनौती देते हुए अपने आपको ऊंचा उठाने में संलग्न होइए। हार मानकर नहीं बैठिए अपने पुरुषार्थ में कमी नहीं आने दीजिए। लेकिन पुरुषार्थ में बल तब आएगा, जब पुरुषार्थ के साथ प्रार्थना जुड़ेगी। आगे बढ़ने का संकल्प मन में दोहराइए, लेकिन साथ ही भगवान की प्रार्थना और साधना भी जरूर कीजिए। सुमिरन कीजिए। भगवान की कृपा हो और अंदर की संकल्प शक्ति जागी हो तो मनुष्य बड़े से बड़ा कार्य भी कर सकता है।

दुनिया के सहारे बहुत देर तक नहीं टिकते। सबसे बड़ा सहारा भगवान का है। भगवान का सहारा हम केवल अनुभव करते हैं, क्योंकि भगवान दिखाई तो देते नहीं, लेकिन अनुभव कीजिए कि जिस समय आपके अपनों ने आपका साथ छोड़ दिया और आप अकेले खड़े रह गए तो उस समय वह कौन सी शक्ति थी, जिस शक्ति ने आपको बुझने नहीं दिया।

एक बात जरूर होती है, बार-बार श्रद्धाभाव से पुकारने से, अंत:करण को निर्मल करने से एक विशेषता जरूर आ जाती है आपका अंत:करण निर्मल हुआ तो याद रहे कि जिस व्यक्ति की संकल्पशक्ति प्रबल होगी, वह आदमी नियम से कार्य पूरा करेगा।

आपके अंदर से स्वर निकलते हैं तो वह प्रार्थना है। प्रार्थना चमत्कार करती है। जब भी इंसान कोई डॉक्टर, वकील, इंजीनियर या शूरवीर थक जाता है तो फिर यही कहता है कि बस अब दुआ (प्रार्थना) करो। ग्रंथों में कहा गया है कि उन्नति के लिए प्रार्थना और पुरुषार्थ बहुत आवश्यक है।

बिना प्रार्थना के परिश्रम सफल नहीं होता और बिना परिश्रम के प्रार्थना पूर्ण नहीं होती। दोनों का संतुलन बहुत आवश्यक है।

प्रार्थना में सकारात्मक शक्ति का ऊर्जा स्रोत है, जिसमें जीवन की सार्थकता छिपी है। प्रार्थना व्यक्ति को परमात्मा के नजदीक ले जाती है। पूरा ऋग्वेद शान्तिप्रदायक प्रार्थनाओं से भरा पड़ा है। अतः कालसर्प योग के अनिष्ट नाशक हेतु किए गए शान्ति प्रयोगों की उपयोगिता को नकारा नहीं जा सकता।

क्या नासिक व अन्य तीर्थ स्थलों पर कराया गया कालसर्प सही नहीं होता

कालसर्प शान्ति विधि का सांगोपांग ज्ञान अच्छे-अच्छे विद्वानों को नहीं है। कई विद्वानों को इस विधि का ज्ञान भी है पर उनके पास समय का अभाव रहता है। नासिक इत्यादि बड़े तीर्थ स्थलों पर स्थान की महिमा तीर्थ की महिमा तो है पर पढ़ने की विधि का ज्ञान नहीं। फिर वे लोग दस-पन्द्रह मिनट में सारी विधि करा देते हैं क्योंकि उनके पास समय का अभाव सदैव बना रहता है। यजमानों की लाईन लगी रहती है।

फिर यह भी बात है उनके पास व्यवसासिक पद्धति है। नवनागों की नौ अलग-अलग धातुओं में सर्पों की मूर्तियां बनी होती हैं। जिसे वे यजमान को देते हैं। उनके चार्ज लेते हैं। उन मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा कराते हैं तथा जलकुण्ड में विसर्जित कराते हैं। उन मूर्तियों को जलकुण्ड से हाथोंहाथ वापस निकाल लेते हैं। आधा घंटे बाद दूसरा यजमान थामेगा।

यही मूर्तियां पुनः काम में ली जाएंगी। वो ही नारियल, वही यज्ञोपवीत, वही सुपारी वही पूजा की सामग्री। दिन भर यही क्रम प्रत्येक यजमान के साथ दोहराया जाएगा। एक ही नारियल पर अनेक यजमानों का संकल्प कैसे काम करेगा। क्यों कर करेगा, समझ के बाहर है। उच्छिष्ट सामग्री कैसे फलीभूत होगी ? मन्त्रोच्चार एवं सांगोपांग विधि-विधान तथा ग्रहमुख हवन प्रक्रिया के अभाव में पूजा कैसे सफल होगी?

बड़े तीर्थों में रहने वाले व्यावसायिक पण्डे आम व्यक्तियों से ज्यादा नास्तिक होते हैं। ईश्वर से नहीं डरते। यहां तक पूरा संकल्प तक नहीं बोल सकते? जिस गंगाजल को हम परम पवित्र मान कर आचमनी लेते हैं। उसी में गुदा प्रक्षालन करते हैं। गन्दे कपड़े धोते हैं। गटर की गन्दगी छोड़ते हैं। अधजली लाशें फेंकते हैं। सभी कर्म आँखों से देखते हैं, तो घृणा हो जाती है।

बड़े तीर्थों की महिमा ही हमें वहां तक खींच ले जाती है। वहां रहने वाले पण्डों-पुजारियों की आकर्षक वेशभूषा हमें सम्मोहित करती है पर यह जरूरी नहीं कि उनके द्वारा कराया गया पूजन सही हो। दिन को बहुत बड़े भक्त, सिद्ध, साधु व सज्जन दिखाई देने वाले पण्डे पुजारी, रात को बीड़ी-सिगरेट, शराब पीते हुए, व्यभिचार करते हुए दिखाई देते हैं। जिनका आचरण शुद्ध नहीं जो स्वयं इष्टबली नहीं जिन्हें संस्कृत का ज्ञान नहीं। जो पूजा-पाठ, कर्मकाण्ड में निष्णात नहीं। उनके द्वारा की गई पूजा-अनुष्ठान कैसे सफल हो सकते हैं? केवल स्थान विशेष की महिमा अनुष्ठान को सफल नहीं करती।

हमारे पास अनेक जिज्ञासु सामूहिक शिविरों में आते हैं। शिकायत करते हैं हमने नासिक में तीन बार विधि कराई, हमने महाकाल, उज्जैन में विधि कराई, पर कुछ भी फायदा नहीं हुआ। अब क्या कहें? इलाज किसी नासिक वाले डॉक्टर से कराओ तथा उसकी शिकायत अन्य डॉक्टर को करेंगे तो जवाब यही मिलेगा जिससे इलाज कराया, ऑपरेशन कराया, जहां आपने खर्चा किया, उसी से जाकर शिकायत करो कि हमें लाभ क्यों नहीं हुआ?

हाँ! हमारे यहॉ यदि विधि तीन बार की गई तो कितना प्रतिशत लाभ हुआ या नहीं हुआ? उसका आंकलन करना हमारा नैतिक दायित्व है। ध्यान रहे एक वर्ष में तीन बार निरन्तर पूजा करने पर ही लाभ की प्रत्यक्ष अनुभूति होती है। इसमें अधिक अन्तराल होने पर पूजा निष्फल चलीं जाती है। वापस शून्य (जीरो) से गिनती करनी पड़ती है।

ईश्वर किसी विशेष स्थान में छिपा हुआ नहीं है। ईश्वर सर्वत्र व्याप्त है, व्यापक व विभु है। मन्त्रों के उच्चारण एवं मन्त्र प्रयोग की अनुष्ठान विधि के रहस्य को जानने वाले विद्वान् ईश्वरीय अनुकम्पा व दैविक शक्ति को कहीं भी प्रकट करने की सामर्थ्य रखते हैं। इसके लिए विधि प्रधान है। नासिक, महाकाल आदि स्थान विशेष गौण है। स्थान की पवित्रता, पर्यावरण की शुद्धता एवं एकान्त प्रियता इस विधि की सफलता की सबसे महत्त्वपूर्ण कड़ी है।


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