मंगलीक दोष कारण और निवारण

आज के युग में जबकि विज्ञान की समृद्धि हुई तब पराविज्ञान की पराकाष्ठा का ह्रास हो गया है। जन्माक्षर तो क्वचित् ही लोगों के होते हैं और फिर दहेज प्रथा के दारुण भय से संत्रस्त मध्यमवर्गीय एवं धनी परिवार भी येन-केन-प्रकारेण कन्या परिणय पर उतारू होते हैं।

विवाह के कुछ काल पश्चात् मानसिक तनाव, तलाक, गृह कलह, आत्मदाह, सन्तान का न होना और कई तरह से दाम्पत्य जीवन में बाधक घटनाएं जब बढ़ती हैं तो विचार होता है कि हमारे ऋषियों ने इसके बारे में पहले ही सोचकर निदान किया था। आइये अब हम मंगलीक दोष के कारण और निवारण पर विस्तार से विचार करें।

मंगलीक कुण्डली किसे कहते हैं? चुनरी मंगल और मौलियां मंगल क्या होता है?

सर्वार्थ चिन्तामणि, चमत्कार चिन्तामणि देवकेरलम्, अगस्त्य संहिता, भावदीपिका जैसे अनेक ज्योतिष ग्रन्थों में मंगल के बारे में एक प्रशस्त श्लोक मिलता है-

लग्ने व्यये च पाताले, जामित्रे चाष्टमे कुजे। भार्याभर्तृविनाशाय भर्तुश्च स्त्रीविनाशनम् ॥

अर्थात् जन्म कुण्डली के लग्न स्थान से 1/4/7/8/12वें स्थान में मंगल हो तो ऐसी कुण्डली मंगलीक कहलाती है। पुरुष जातक की कुण्डली में यह स्थिति हो तो वह कुण्डली ‘मौलिया मंगल’ वाली कुण्डली कहलाती है तथा स्त्री जातक की कुण्डली में उपरोक्त ग्रह स्थिति को ‘चुनरी मंगल’ वाली कुण्डली कहते हैं।

इस श्लोक के अनुसार जिस पुरुष की कुण्डली में ‘मौलिया मंगल’ हो उसे ‘चुनरी मंगल’ वाली स्त्री के साथ विवाह करना चाहिए अन्यथा पति या पत्नी दोनों में से एक की मृत्यु हो जाती है।

यह श्लोक कुछ अतिश्योक्तिपूर्ण लगता है परन्तु कई बार इसकी अकाट्य सत्यता नव दम्पत्ति के वैवाहिक जीवन पर अमिट बदनुमा दाग लगाकर छोड़ जाती है। उस समय हमारे पास पश्चाताप के सिवा हमारे पास कुछ नहीं रहता।

ज्योतिष सूचनाओं व सम्भावनाओं का शास्त्र है। जो इसका सही समय पर उपयोग कर लेता है वह धन्य हो जाता है और जो सोचता है वह सोचता ही रह जाता है।

भौम पंचक दोष किसे कहते हैं? क्या शनि, राहु व अन्य क्रूर ग्रहों के कारण कुण्डली मंगलीक कहलाती है?

मंगल, शनि, राहु, केतु, सूर्य ये पांच क्रूर होते हैं अतः उपरोक्त स्थानों में इनकी स्थिति व सप्तमेश की 6/8/12 वें घर में स्थिति भी मंगलीक दोष को उत्पन्न करती है। यह भौम पंचक दोष कहलाता है। द्वितीय भाव भी उपरोक्त ग्रहों से दूषित हो तो भी उसके दोष शमनादि पर विचार अभीष्ट है।

विवाहार्थ द्रष्टव्य भावों में दूसरा 12वां भाव का विशेष स्थान है। दूसरा कुटुम्ब वृद्धि से सम्बन्धित है, 12वां भाव शय्या सुख से । चतुर्थ भाव में मंगल, घर का सुख नष्ट करता है। सप्तम भाव जीवनसाथी का स्थान है, वहां पत्नी व पति के सुख को नष्ट करता है। लग्न भाव शारीरिक सुख है अतः अस्वस्थता भी दाम्पत्य सुख में बाधक है। अष्टम भाव गुदा व लिंग योनि का है अतः वहां रोगोत्पति की संभावना है।

1. लग्न में मंगल अपनी दृष्टि से 1/4/7/8 भावों को प्रभावित करेगा। यदि दुष्ट है तो शरीर व गुप्तांग को बिगाड़ेगा। रति सुख में कमी करेगा। दाम्पत्य सुख बिगाड़ेगा।

2. चतुर्थस्थ मंगल सौख्य पति, पिता और लाभ को प्रभावित करेगा। चतुर्थ में मंगल घर का सुख नष्ट करता है।

3. इसी तरह सप्तमस्थ मंगल, पति, पिता, शरीर और कुटुम्ब सौख्य को प्रभावित करेगा। सप्तम में मंगल पत्नी के सुख को नष्ट करता है जब गृहणी (घर वाली) ही न रहे तो घर कैसा ?

4. लिंगमूल से गुदावधि अष्टम भाव होता है। अष्टमस्थ मंगल इन्द्रिय सुख, लाभ, आयु को व भाई बहनों को गलत ढंग से प्रभावित करेगा।

5. द्वादश भाव शयन सुख कहलाता है। शय्या का परमसुख कान्ता हैं। बारहवें मंगल शयन सुख की हानि करता है।

6. धनस्थ मंगल-कुटुम्ब संतान, इन्द्रिय सुख, आवक व भाग्य को एकमत से पिता को प्रभावित करेगा।

अतः इन स्थानों में मंगल की एवं अन्य क्रूर ग्रहों की स्थिति नेष्ट मानी गई है। खासकर अष्टम और सप्तमस्थ मंगल का दोष (स्त्री जातक) तो बहुत प्रभावी है।

मंगलीक दोष कारण और निवारण

क्या द्वितीयस्थ मंगल को भी मंगल दोष में माना जाएगा?

जन्म कुण्डली में द्वितीय भाव दक्षिण नेत्र, धन, वाणी, वाक् चातुर्य एवं मारक स्थान का माना गया है। द्वितीय भावस्थ मंगल वाणी में दोष, कुटुम्ब में कलह कराता है। द्वितीय भाव में स्थिति मंगल की पूर्ण दृष्टि पंचम, अष्टम एवं नवम में भाव पर होती है। फलतः ऐसा मंगल सन्तति, स्वास्थ्य (आयु) एवं भाग्य में रुकावट डालता है।

द्वितीय भाव में मंगल वाला कुटुम्बी क्या काम का ? क्योंकि उसके पास धन-वैभव होते हुए भी वह (जातक) अपने स्वयं का या कुटुम्ब का भला ठीक उसी तरह से नहीं कर सकता, जिस तरह से बन्दर अपने गले में पड़ी हुई बहुमूल्य मणियों के हार का सुख व उपयोग नहीं पहचान पाता ? बन्दर तो उस मणिमाला को साधारण सूत्र समझकर तोड़कर फेंक देगा। किसी को देगा भी नहीं।

द्वितीय मंगल वाला व्यक्ति ठीक इसी प्रकार से प्रारब्ध से प्राप्त धन को नष्ट कर देता है तथा कुटुम्बीजनों से व्यर्थ का झगड़ा करता रहता है। द्वितीय भावस्थ मंगल जीवन साथी के स्वास्थ्य को अव्यवस्थित करता है तथा परिजनों में विवाद उत्पन्न करता है। अतः द्वितीयस्थ मंगल वाले व्यक्ति से सावधानी अनिवार्य है। परन्तु मंगल दोष मेलापक में द्वितीयस्थ मंगल को स्थान नहीं दिया गया है, यह बात प्रबुद्ध पाठकों को भली-भांति जान लेनी चाहिए।

डबल व त्रिबल मंगली दोष क्या होता है? कैसे होता है?

प्रायः ज्योतिषी लोग कहते हैं कि यह कुण्डली तो डबल मंगलीक त्रिबल मंगलीक है। मंगल डबल कैसे हो जाता है? यह कौन सी विधि (गणित) है? इसका समाधान इस प्रकार है।

जब किसी कुण्डली के 1/4/7/8 या 12वें भाव में मंगल हो तो वह कुण्डली मंगलीक कहलाती है। इसे हम (सिंगल) मंगलीक कह सकते हैं। इन्हीं भावों में यदि मंगल अपनी नीच राशि में होकर बैठा हो तो मंगल द्विगुणित प्रभाव डालेगा तो ऐसे में वह कुण्डली डबल (द्विगुणित) मंगलीक कहलाएगी।

अथवा 1/4/7/8/12वें भावों में शनि, राहु, केतु या सूर्य इनमें से कोई ग्रह हो तथा मंगल हो तो ऐसे में भी यह कुण्डली डबल (द्विगुणित) मंगलीक कहलाएगी।

मंगल नीच का 1/4/7/8/12 भावों में हो, साथ में यदि राहु, शनि, केतु या सूर्य हो तो ऐसे में यह कुण्डली त्रिबल (ट्रिबल) मंगलीक कहलाएगी क्योंकि मंगल दोष इस कुण्डली में तीन गुणा बढ़ जाता है।

इस प्रकार से एक कुण्डली अधिकतम पंचगुणित मंगल दोष वाली हो सकती है। तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं करना चाहिए।

मंगलीक दोष निवारण के कुछ बहुमूल्य सूत्र

उपरोक्त सभी सूत्रों को जब हम प्रत्येक कुण्डली पर घटित करेंगे तो 80 प्रतिशत जन्म कुण्डलीयां मंगल दोष वाली ही दिखलाई पड़ेंगी। इससे घबराने की कोई आवश्यकता नहीं क्योंकि परवर्ती कारिकाओं में मंगल दोष परिहार के इतने प्रमाण मिलते हैं कि इनमें से आधी से ऊपर कुण्डलीयां तो स्वतः ही परिहार वचनों से मंगल होते हुए भी मंगल दोष रहित हो जाती हैं अर्थात् यदि पुरुष की कुण्डली में 1,4,7,8,12 भावों में शनि, राहु या सूर्य हो तो मंगल का मिलान हो जाता है। इसमें कुछ भी परेशानी नहीं है। सारी समस्याएं स्वतः ही समाप्त हो जाती है। उनमें से कुछ सूत्र इस प्रकार हैं-

1. मेष का मंगल लग्न में, धनु का द्वादश भाव में, वृश्चिक का चौथे भाव में, वृषभ का सप्तम में, कुम्भ का आठवें भाव में हो तो भौम दोष नहीं रहता।

2. स्व, मूलत्रिकोण (1,8), उच्च (10) मित्रस्थ राशि अर्थात् सूर्य, गुरु और चन्द्रक्षेत्री हो तो भौम का दोष नहीं रहता।

3. सिंह लग्न और कर्क लग्न में भी लग्नस्थ मंगल का दोष नहीं है।

4. कोई भी पाप ग्रह शनि, मंगल राहु, सूर्य, केतु अगर 1,4,7,8, 12वें भवन में कन्या जातक के हों और उन्हीं भावों में वर के भी हों तो भौम दोष नष्ट होता है। मंगल के स्थान पर दूसरी कुण्डली में शनि या पांच ग्रहों में से एक भी हो, तो उस दोष को काटता है।

5. यदि एक की कुण्डली में शनि 1, 4, 7, 9, 12वें भाव में हो और दूसरे की कुण्डली में इन्हीं स्थानों में से किसी एक स्थान में मंगल हो तो भौम दोष नष्ट हो जाता है।

6. 3, 6, 11वें भावों में अशुभ ग्रह हों और केन्द्र 1, 4, 7, 10 व कोण 9,5 में शुभ ग्रह हो तथा सप्तमेश सातवें हो तो मंगल का दोष नहीं रहता।

7. गुरु व शनि बलवान हो तथा सप्तमेश सातवें हो फिर भले ही 1,4,7,10 व कोण 9,5 में शुभ ग्रह न हो तो मंगल का दोष नहीं होता

8. यदि कन्या की कुण्डली में गुरु 1, 4, 5, 7, 9, 10 भावों में हो, फिर चाहे मंगल वक्री हो, चाहे नीच हो या सूर्य की राशि में स्थित हो, मंगलीक दोष नहीं लगता, अपितु उसके सुख-सौभाग्य को बढ़ाने वाला होता है।

9. 3, 6, 11वें भावों में राहु, मंगल या शनि में से कोई ग्रह दूसरी कुण्डली में हो तो भौम दोष नष्ट हो जाता है।

10. चन्द्र, गुरु या बुध से मंगल युति कर रहा हो तो भौम दोष नहीं रहता परन्तु इसमें चन्द्र व शुक्र का बल जरूर देखना चाहिए।

11. द्वितीय भाव में बुध राशि (मिथुन व कन्या) का मंगल दोषकृत नहीं है। ऐसा वृषभ व सिंह लग्न में ही संभव है ।

12. चतुर्थ भाव में शुक्र राशि (वृषभ व तुला) का मंगल दोषकृत नहीं है। ऐसा कर्क और कुंभ लग्न में होगा।

13. अष्टम भाव में गुरु राशि (धनु, मीन) का मंगल दोषकृत नहीं है। ऐसा वृष लग्न और सिंह लग्न में होगा।

14. बारहवें भाव में मंगल का दोष बुध, राशि (मिथुन, कन्या) में नहीं होगा। ऐसा कर्क लग्न और तुला लग्नों में होगा।

15. 1, 4, 7, 8, 12 भावों में मंगल यदि चर राशि (मेष, कर्क, मकर) का हो तो कुछ दोष नहीं होता।

16. यदि दम्पत्ति के जन्म से व शुक्र लग्न से 1,4,7,8,12वें स्थानों में मंगल हो (दोनों के ऐसा होने पर) वे दीर्घकाल तक जीवित रहकर पुत्र धनादि को प्राप्त करते हैं।

17. मंगल के जैसा ही मंगल व वैसा ही पाप ग्रह (सूर्य, शनि, राहु) के दूसरी कुण्डली में हो तो विवाह करना शुभ है।

18. गुरु और मंगल की युति हो या मंगल चन्द्र की युति हो या चन्द्र केन्द्रगत हो तो मंगलीक दोष नहीं होता।

19. शुक्र दूसरे घर में हो, या गुरु की दृष्टि मंगल पर हो, गुरु मंगल के साथ हो, या मंगल राहु से युति हो या केन्द्रगत हो तो मंगली दोष नहीं होता।

20. केतु का फल मंगलवत् होता है अतः अश्विनी, मघा मूल नक्षत्रों में मंगल हो तो भी मंगलीक दोष नहीं रहता है।

मिलान के सर्वशुद्ध नियम

कुण्डली मिलान की सही विधि बहुत कम लोगों को मालूम होता है। मिलान करते समय कभी भी जल्दबाजी से काम न लें, यह दो प्राणियों के जीवन-मरण का प्रश्न है। मंगलीक कुण्डली का परस्पर मिलान करते वक्त ज्योतिर्विज्ञों को उपरोक्त श्लोकों का सार ध्यान में लाना चाहिए। परस्पर दोनों कुण्डलियों में उपरोक्त स्थितियों का मिलान हो तो ग्रह एक दूसरे से उत्पन्न दोषों को काट देते हैं। परन्तु मात्र शनि व मंगल से बनने वाले दोष प्रभावी रहते हैं।

कभी भी अगर दोनों कुण्डलियों में सातवें में मंगल स्थित हो तो मिलान शुद्ध न माने, समान भाव में मंगल की स्थिति दोनों के जीवन में दोष वृद्धि करेगी।

यदि एक के मंगल 7वें में हो दूसरे के 8वें में हों तो भी मिलान न करें।

सप्तमेश एवं शुक्र तथा सप्तमेश व गुरु पर कुप्रभाव हों तो भी मिलान न मानें। शेष स्थितियों में मिलान श्रेयस्कर होगा।

मंगल व सप्तमेश किन नक्षत्रों में स्थित है उनका भी मिलान के वक्त ज्ञान कर लेना सूक्ष्मतः प्रभावी होगा। यदि कारक व शुभ ग्रह नक्षत्रों में स्थिति होगी तो मिलान सुन्दर अन्यथा मध्यम व अन्य योगों में कनिष्ठ रहेगा।

मंगलीक कन्या की गुरु की स्थिति मिलान के बाद भी निर्बल लगे तो उसे विवाह से पूर्व पुखराज रत्न सवा पांच रत्ती के वजन में धारण करा देना चाहिए। चाहे जिस लग्न की कुण्डली हो पुखराज रत्न को धारण करना हर युवती के लिए शुभ माना गया है। हां अगर वह स्वयं आत्मनिर्भर हो और नौकरी करती हो तो कुण्डली की ग्रह स्थिति देखकर के रत्न पहनावें।

मंगल का मिलान स्पष्ट सुनिश्चित होने के बाद हमें अष्टकूट मिलान की ओर आगे बढ़ना चाहिए। अष्टकूट मिलान हेतु 1. वर्ण, 2. वैश्य, 3. तारा, 4. योनि, 5. ग्रहमैत्री, 6. गणमैत्री, 7. भकूट, 8. नाड़ी। सभी का अलग-अलग मिलान करना चाहिए।

अष्टकूट मिलान आजकल कम्प्यूटर से होता है। वह उत्तम है उसमें गलती बिल्कुल नहीं होती। परन्तु अंतिम निर्णय तो विद्वान् ज्योतिषाचार्य को ही करना होता है, वहीं श्रेष्ठ है।

यदि कुण्डली मिलान को सौ में से नम्बर दिए जाए तो पचास नम्बर मंगल को मिलेंगे। मंगल के मिलान होते ही कुण्डली 50 प्रतिशत मिल जाती है। बाकी अष्टकूट से प्राप्त होने वाले नम्बर भी जोड़ दें। मानों किसी जातक को अष्टकूट से 18 नम्बर मिले। मंगल मिल गया तो 50+18 कुल मिलान 68 उत्कृष्टता को धारण किए हुए है। ऐसा स्पष्ट जानना चाहिए।

मंगल दोष निवृत्ति के विविध उपाय

मानव जीवन बड़ी विषमताओं से भरा है। कई बार ऐसा होता है कि लड़का पसन्द है, लड़की मंगलीक है, पर मंगल का मिलान नहीं हो रहा है। अथवा लड़का-लड़की दोनों एक दूसरे को पसन्द कर लिया, मंगल मिलान एवं कुण्डलियों में उनका विश्वास नहीं है, ऐसे में माता-पिता, अभिभावक किसी अशुभ की आशंका से चिन्ताग्रस्त हो उठते हैं। ऐसे में दोष शांति हेतु

1. वर-कन्या दोनों मूंगा रत्नजड़ित मंगल यंत्र धारण करें। यह यंत्र विवाह के पूर्व धारण करेंगे तो ससुराल अच्छा व शीघ्र मिलेगा। विवाह के बाद पहनने से दाम्पत्य जीवन सुखी रहेगा। हमारा अनुभव है कि मूंगे की अंगूठी की जगह मंगल-यंत्र ही पहनना ज्यादा श्रेष्ठ रहता है। एक तो यह नाभि से ऊपर रहने के कारण पवित्र रहता है। दूसरा इसमें यंत्र-मंत्र-तंत्र तीनों की शक्ति (त्रिगुणित) ताकत होती है।

2. कन्या मंगला गौरी का व्रत उद्यापन करे अथवा वट सावित्री का व्रत करे।

3. मंगल ग्रह के दस हजार जप एवं उसकी हवनात्मक शान्ति करें, ग्रह शान्ति का प्रयोग करावें।

4. पार्वती मंगल स्तोत्र का नित्य पाठ करें।

5. गलती से विवाह हो जाए एवं बाद में ग्रह उसकी स्थितियों का पता चल जाए तो घर में नित्य सुन्दरकाण्ड का पाठ करना चाहिए।

6. डबल-त्रिबल मंगलीक कुण्डली वाले विवाह के पूर्व दुर्गासप्तशती के अर्गला स्तोत्र का नित्य पाठ करें तथा श्लोक 24 को तीन बार नित्य दोहराएं।

पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्। तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम् ॥

यदि स्त्री जातक पाठ करे तो पत्नी की जगह पति पढ़े।

सप्तम भावजनित कष्ट निवारण के विविध उपाय

  1. सवा पांच रत्ती मूंगे की अंगूठी धारण करें।
  2. ताम्बे के प्राणप्रतिष्ठित मंगल यंत्र का नित्य पूजन करें।
  3. मूंगा युक्त ‘मंगल यंत्र’ गले में धारण करें।
  4. मंगलवार के 28 व्रत रखें।
  5. पुखराज युक्त ‘गुरु-यंत्र’ गले में धारण करें।
  6. गुरुवार का व्रत रखे एवं गुरुवर की कथा करें।
  7. घट-विवाह शास्त्रोक्त विधि से करावें ।
  8. वट सावित्री का व्रत एवं उद्यापन करें।
  9. मंगला गौरी का व्रत कथा करें।
  10. शुक्रवार का नियमित व्रत रखें, खटाई का सेवन न करें।
  11. शुक्र यंत्र गले में धारण करें।
  12. पार्वती मंगल स्तोत्र का नित्य पाठ करें।
  13. गृहकलह की शांति हेतु सुन्दरकाण्ड का नित्य पाठ करें।
  14. सोमवार का नियमित व्रत कथापूर्वक करें शिवजी पर दुग्धमिश्रित जल चढ़ावें।
  15. माणिक्यजड़ित सूर्य यंत्र धारण करें।

एक कुण्डली मंगलीक है, दूसरी कुण्डली मंगलीक नहीं है तो क्या करें?

यह भी बड़ी भारी समस्या है कि लड़का-लड़की दोनों में एक ही कुण्डली मंगलीक है दूसरी कुण्डली मंगलीक नहीं है पर दोनों शादी करना चाहते हैं। गुण मिल रहे है। ऐसे में क्या करें?

अथवा विवाह हो गया और बाद में पता चला कि एक की कुण्डली मंगलीक है, एक की नहीं तो क्या उपाय करें? वैवाहिक जीवन में नित्य कलह हो रही है। दोनों जीवन साथी में से एक बीमार रहता है तो क्या करें?

उपरोक्त तीनों समस्या का निदान है। घट विवाह और कुम्भविवाह से बढ़िया कोई परिहार नहीं है क्योंकि कन्या की स्थिति घट को विष्णु भगवान का रूप दिया जाता है। जिस कन्या का भगवान के साथ विवाह हो जाता है वह अखंड सौभाग्य की स्वामिनी होती है। उसे पति की मृत्यु, बीमारी का भय नहीं रहता तथा कुण्डलीगत दुर्योग भी इस टोटके से नष्ट हो जाते हैं। अविवाह विलम्ब विवाह की स्थिति भी समाप्त हो जाती है।

पुरुष यदि घट विवाह करता है तो उसका तांत्रिक विवाह लक्ष्मी से कराया जाता है। लक्ष्मी अखंड सौभाग्य की स्वामिनी होती है। ऐसे में उसकी पत्नी की बीमारी नष्ट हो जाती है। इस टोटके के बाद उसकी पत्नी को अकालमृत्यु का भय नहीं रहता।

अष्टकूट कम मिलते हैं तो क्या करें?

कई बार यह भी प्रश्न, जिज्ञासा प्रबुद्ध पाठकों में आती है कि अष्टकूट गुण कम मिलते हैं तो क्या करें? अष्टकूट गुण कम मिलते हैं तथा मंगल का मिलान है तो विवाह कर सकते हैं क्योंकि मिलान में 50 नम्बर मंगल एवं 50 नम्बर अष्टकूट को दिया जाता है। मान लीजिए किसी मिलान के 14 गुण ही मिले तथा मंगल का मिलान मिल गया तो 50+14 कुल 64 नम्बर 100 में से इस मिलान को मिले। आप विवाह कर सकते हैं?

इसके विपरीत यदि किसी कुण्डली मिलान में 36 के 36 गुण मिल गए पर मंगल का मिलान नहीं हुआ, तो 100 नम्बर में से केवल 36 गुण मिलने में मिलान असफल है। विवाह नहीं कर सकते हैं पर वर-वधू दोनों विवाह करने के लिए कटिबद्ध है। दूसरा कोई विकल्प नहीं है तो विवाह करने के पहले घट-विवाह करें। इसके बाद रिस्क लेने में कोई नुकसान नहीं है।

ग्रह शांति प्रयोग

  1. ज्योतिष तथा कर्म
  2. भक्ति द्वारा ग्रह शांति
  3. मंत्र द्वारा ग्रह शांति
  4. व्रत द्वारा ग्रह शांति
  5. दान द्वारा ग्रह शांति
  6. यंत्र द्वारा ग्रह शांति
  7. रत्नों द्वारा ग्रह शांति
  8. रंगों द्वारा ग्रह शांति
  9. औषधियों द्वारा ग्रह शांति
  10. ग्रहों की विशेषताएं
  11. रोग के लिये ग्रह शांति प्रयोग
  12. विवाह के लिये ग्रह शांति के प्रयोग
  13. विविध ग्रह शांति प्रायोग
  14. कालसर्प योग की परिभाषा
  15. क्यों विरोध करते हैं ज्योतिषी कालसर्प योग का?
  16. काल सर्प योग शांति
  17. कालसर्प योग किसे कहते हैं?
  18. मंगलीक दोष कारण और निवारण
  19. विधवापन को हटाने वाला घट – विवाह

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