भाग्योदय कब होगा ?
प्रत्येक मनुष्य की इच्छा होती है कि वह सभी भौतिक सुख-सुविधाएं प्राप्त करे। जब इन इच्छित भौतिक सुख-सुविधाओं की प्राप्ति होने लगती है, तो इसी स्थिति को ज्योतिष की भाषा में भाग्योदय कहते हैं । दूसरे शब्दों में जब व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार इच्छाओं को पूर्ण करने में सक्षम हो सके, वह समय उसके भाग्योदय का होता है।
भाग्योदय का यह अर्थ नहीं है कि हम वह सब कुछ प्राप्त कर लेंगे, जो कि हम प्राप्त करना चाहते हैं । मनुष्य की अभिलाषाएं असीमित होती हैं। मनुष्य वह सब कुछ भी पा लेना चाहता है, जिसके कि वह योग्य नहीं है या जो उसकी क्षमता से बाहर है। एक भिखारी अपनी तुलना किसी नगर सेठ से करना चाहे, तो ऐसा कभी नहीं होगा । न ही ऐसी किसी स्थिति को भाग्योदय से जोड़ना ही चाहिए। भिखारी की जैसी योग्यता, क्षमता और विशेष रूप से जैसी उसकी पृष्ठभूमि है, उसको प्राप्तियां भी उसी के अनुपात में होंगी। अपवाद स्वरूप कुछ भी संभव है।
भाग्य और जातक की क्षमता
भाग्योदय के समय और स्थिति का आकलन करने से पूर्व, आपको यह तय कर लेना चाहिए कि आपकी वास्तविक क्षमताएं और योग्यताएं क्या हैं। आप कितना कुछ प्राप्त कर सकते हैं। आपकी सोच आपकी क्षमता से प्रभावित होनी चाहिए। यदि आप अपनी वास्तविक स्थिति को नहीं समझेंगे, तो जीवन भर असंतुष्ट ही बने रहेंगे । आपको हमेशा यह महसूस होगा कि आप दुर्भाग्य का ही सामना कर रहे हैं । फलित ज्योतिष कोई व्यक्तित्व विकास की कक्षा नहीं है, जिसमें कि आपको बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाए। इसमें केवल वास्तविक स्थिति ही मायने रखती है ।
आप भविष्य में कितना कुछ कर पाएंगे, यह आपके वर्तमान से ही तय होगा। बातों और प्रोत्साहन का कोई महत्त्व नहीं है। आपकी क्षमताएं महत्त्वपूर्ण हैं। यदि आप अपनी क्षमताओं और योग्यताओं के अनुसार प्राप्तियां नहीं कर पा रहे हैं, तो संभव है कि आपका भाग्योदय नहीं हुआ है। लेकिन यह अर्धसत्य है। संभव यह भी है कि आप अपनी क्षमताओं का पूर्ण दोहन ही न कर पाए हों। ज्योतिष सामाजिक विज्ञान है। यह भविष्य बताने के साथ हमें अपनी क्षमताओं से भी परिचित करवाता है।
तात्पर्य है कि अपने भाग्योदय के समय को देखने के लिए केवल यह भी देख लें कि ज्योतिष अनुसार आपकी क्षमताएं क्या हैं और आप उनका कितना कुछ दोहन कर पाए हैं। जैसा कि नाम से स्पष्ट है, ज्योतिष हमारे लिए एक मार्गदर्शक की भूमिका निभा सकता है। भाग्योदय के साथ दूसरी चीजों का भी अपना महत्त्व है ।
भाग्य से संबंधित भाव
आचार्यों ने नवम भाव को भाग्य का नाम दिया है। अर्थात्
- नवम और नवमेश की शुभाशुभ स्थिति से भाग्य का निर्णय करना चाहिए। नवम में जैसी राशि और ग्रह होते हैं, उसी के अनुपात में व्यक्ति का भाग्य होता है।
- इसके अलावा चंद्र लग्न से भी नवम भाव देखना चाहिए।
- नवम से नवम अर्थात् पंचम भी भाग्य का प्रतिनिधित्व करता है।
- लेकिन मूल रूप से भाग्य जानने के लिए नवम की स्थिति ही विचारणीय है ।
- प्रायः अनुभव में आता है कि नवमेश यदि निर्बल हो, तो प्रायः भाग्योदय देरी से होता है या फिर पर्याप्त सफलताएं नहीं मिलती हैं।
भाग्योदय किस क्षेत्र में होगा
कार्य क्षेत्रों में क्रांति के कारण आज आजीविका के कार्यों का वर्णन करना संभव नहीं रह गया है। कुछ सौ वर्षों पहले तक हमारे कार्य के क्षेत्र सीमित थे । आज के विशेषज्ञता के युग के कारण एक ही प्रकृति के काम को अनेक लोग मिलकर संपन्न करते हैं। यद्यपि इसके कारण कार्य की गुणवत्ता में पर्याप्त वृद्धि होती है। एक उदाहरण देखें।
जब कोई फिल्म निर्माता किसी फीचर फिल्म के निर्माण के संबंध में विचार करता है, तो सर्वप्रथम उसे कहानी का विचार (Concept) चाहिए। विचार के चयन के बाद उस विचार को कथाकार कथा के रूप में ढालता है । फिर इसकी पटकथा लिखी जाती है। इन सबके बाद संवाद लिखे जाते हैं। आश्चर्य है कि यहां तक के कार्य को चार व्यक्ति संपन्न करते हैं। एक जमाना था जब यह कार्य एक या दो ही व्यक्ति कर दिया करते थे । यही स्थिति दूसरे सभी क्षेत्रों में है । इसके फलस्वरूप आजीविका के स्रोत का वर्गीकरण करना इतना आसान नहीं रह गया है।
इसके बावजूद मैं यहां आजीविका के साधनों को दो प्रमुख वर्गों में बांट रहा हूं। पहले वर्ग में हैं स्वतंत्र कार्य करने वाले और दूसरे वर्ग में हैं पराधीन रहकर कार्य करने वाले। स्वतंत्र कार्य करने वालों से यहां आशय है, वे लोग जो कि अपना निजी व्यवसाय करते हैं। दूसरा वर्ग निजी और सरकारी क्षेत्र में नौकरी करने वालों का है।
जब षष्ठ भाव और षष्ठेश बलवान हों, तो जातक नौकरी करता है। इसके विपरीत दशम और दशमेश बलवान होने पर स्वयं का व्यवसाय होता है।
भाग्योदय का क्षेत्र निर्धारण करने के लिए दो भावों का आकलन करना आवश्यक है । प्रायः विद्वानों ने दशम भाव से आजीविका को देखने के निर्देश दिए हैं। दशम भाव में पड़ी राशि और ग्रहों के आधार पर आजीविका का निर्धारण करना चाहिए। ग्रहों और राशियों के आधार पर आजीविका के साधनों का आकलन किया जा सकता है। यह एक स्थूल आकलन है। इसके आधार पर साधारणतया आजीविका की स्थूल प्रकृति को जाना जा सकता है।
जैसे दशम में शनि की राशि होने पर व्यक्ति शनि से संबंधित कार्य करेगा, जैसे- लोहे, लकड़ी, खनिज पदार्थों का खनन, पेट्रोलियम और उससे संबंधित पदार्थ और काले रंग के खाद्य पदार्थ । इसी प्रकार बुध की राशि होने पर व्यक्ति प्रकाशन, खुदरा विक्रेता, लेखन आदि से संबंधित कार्य करेगा ।
उपरोक्त पद्धति से राशि के आधार पर केवल स्थूल आकलन ही प्राप्त किए जा सकते हैं। किसी के व्यवसाय का सूक्ष्म आकलन करने के लिए सूर्य से दशम का सहारा भी लिया जाना चाहिए। अनुभव में यह सटीक सिद्ध होता है ।
कुंड्ली संख्या-1 देखें। सूर्य से दशमेश की व्यवसाय चयन में भूमिका का यह अच्छा उदाहरण है। दशम स्थान में उच्च का सूर्य है और सूर्य से दशम में शनि की मकर राशि पड़ी है। शास्त्रों में सूर्य से दशम में पड़ी राशि और उसके स्वामी ग्रह की प्रकृति के अनुसार व्यवसाय का निर्णय करने की अनुशंसा की गई है।
जातक तकनीकी कार्यों के सरकारी ठेके लेता है। चतुर्थ और दशम दोनों केंद्रों में उच्चस्थ ग्रह हैं, जो जातक को धरातल से ऊपर उठाने में सहयोग करते हैं । पारिवारिक पृष्ठभूमि की तुलना में जातक ने बहुत अच्छी प्रगति की है। पंचम में चंद्रमा की उपस्थिति संतान संबंधी चिंताओं को व्यक्त करती है।
भाग्योदय का समय निर्धारण
नवम भाव को चूंकि भाग्य का स्थान माना गया है, इसलिए भाग्योदय के वर्ष को निर्धारित करने के लिए सर्वप्रथम भाग्य स्थान के स्वामी अर्थात् नवमेश से संबंधित वर्ष ही महत्त्वपूर्ण होता है। निम्नांकित सारणी में नवमेश के अनुसार भाग्योदय से संबंधित वर्ष दर्शाए गए हैं।
नवमेश के अनुसार भाग्योदय का स्थूल वर्ष
- सूर्य———–22वां वर्ष
- चंद्रमा———25वां वर्ष
- मंगल———28वां वर्ष
- बुध———–32वां वर्ष
- बृहस्पति—–18वां वर्ष
- शुक्र———-24वां वर्ष
- शनि———-36वां वर्ष
उपरोक्त सारणी में जो वर्ष बताए गए हैं, वह स्थूल आकलन है। दूसरे योगों की पुष्टि के लिए इनका उपयोग ग्राह्य है। नीचे कुछ सूत्र दिए गए हैं, जिनके आधार पर पाठकों को भाग्योदय के वर्ष तय करने में आसानी होगी :
- भाग्य स्थान में जब शुभ ग्रह पड़े हों, तो शीघ्र भाग्योदय होता है। पाप या क्रूर ग्रह होने पर भाग्योदय में विलंब होता है।
- प्रायः अनुभव में आता है कि भाग्येश जब अष्टमस्थ हो, तो भाग्योदय में अडचनें आती हैं।
- चंद्रमा से द्वितीय और द्वादश में पाप ग्रह हों, चंद्रमा से केंद्र में कोई शुभ ग्रह न हों और न ही चंद्रमा पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि हो, तो व्यक्ति प्रौढ़ावस्था तक संघर्षशील रहता है।
- केंद्रों (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम और दशम) में शुभ ग्रहों का होना भाग्योदय में सहायक होता है।
- कुछ मामलों में केंद्रों के शुभ ग्रहों से हीन होने पर भाग्योदय में विलंब होता है।
- नवमेश जब उच्चस्थ, स्वगृही या मित्रक्षेत्री होकर दशम में पड़े, तो युवावस्था में भाग्योदय होता है। यह एक राजयोग भी है। दशम में उच्च का सूर्य भी शीघ्र भाग्योदय करता है।
गोचर ग्रहों की भाग्योदय में अच्छी भूमिका होती है । गोचर ग्रहों के फलों को आयु के 18वें वर्ष के बाद फलित करना चाहिए। शनि की भूमिका हमेशा निर्णायक होती है ।
- आयु के 18वें वर्ष के उपरांत जब शनि लग्न या चंद्रमा से तृतीय, नवम दशम या एकादश में विचरण करे, तो भाग्योदय करता है ।
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