रहस्यमय ग्रह है शनि

शनि को रहस्यपूर्ण ग्रह माना गया है । हिमालय की गुफाओं में निरंतर साधनारत अघोरी और प्रेत-आत्माओं को अपनी उंगलियों पर नचाने वाले तंत्र के पंडित शनि से प्रभावित रहते हैं। रहस्यमयी विद्याओं पर शनि के बाद केतु का प्रभाव है । शव साधक इन दोनों ग्रहों से गंभीर तारतम्य रखते हैं। तीन-चार दिन तक पुराने शव को, जो कि पानी के प्रभाव से अत्यंत विकृत हो चुका होता है, शव साधक तंत्र से उसमें किसी दूसरी आत्मा को, जो उस समय क्षितिज पर विचरण कर रही हो, प्रवेश करा देते हैं।

यदि शव की वास्तविक आत्मा की मुक्ति न हुई हो, तो पुनः उस आत्मा को भी शरीर धारण करवा देते हैं, लेकिन उस स्थिति में भी आत्मा पुनः शारीरिक प्रक्रिया आरंभ नहीं कर पाती है और अधिक समय तक साधना के आधार पर शव और आत्मा का सामंजस्य नहीं रखा जा सकता है।

रहस्यमय शक्तियों का दाता है- शनि

यदि शनि पर बृहस्पति का प्रभाव हो, तो जातक तंत्र का उपयोग जन कल्याण के लिए करता है और राहु का प्रभाव होने से अपनी अर्जित शक्तियों का दुरुपयोग अधिक करता है।

सांसारिक जीवन में जिस व्यक्ति पर शनि हावी हो, वह एकांतप्रिय और गंभीरता लिए होता है। उसके जीवन से उसके बिल्कुल नजदीक रहने वाले लोग भी भली-भांति परिचित नहीं हो पाते हैं। आत्माओं को प्लेनचिट्ट पर बुलाकर उनसे बातचीत करना उसकी आदत में शुमार होता है । वह आत्माओं के संपर्क से अपने आस-पास के लोगों के निजी जीवन में क्या होता है, इसकी खबर रखता है, लेकिन दखलअंदाजी उससे कतई पसंद नहीं होती ।

वह अकसर पुरातत्त्व – महत्त्व के स्थानों पर नितांत अकेला ही विचरण करता है। ये लोग प्रायः दीर्घजीवी होते हैं । अकसर इस प्रकृति के लोग अपने दीर्घ अनुभव को अपने साथ ही ले जाते हैं । इनके अनुभव का लाभ दूसरे लोग लें, यह कदाचित इनकी आदत में शुमार नहीं होता ।

स्थायी होते हैं शनि के शुभाशुभ फल

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि शनि ग्रह की प्रधानता वाला व्यक्ति यदि कोई उन्नति करता है तो बहुत उन्नति करता है और उसकी उन्नति स्थायी भी होती है, लेकिन संकीर्णता इन पर हावी होती है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए, तो अपने छल्लों के कारण शनि अन्य ग्रहों से बिल्कुल पृथक् प्रकृति का ग्रह है । अनुभवी ज्योतिर्विदों का मानना है कि गोचर के शनि की आज्ञा के बिना किसी प्रकार की कोई शुभ या अशुभ घटना नहीं घटती है

शनि के संबंध में प्रसिद्ध है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवनकाल में इसकी गोचर की दशा से गुजरना ही पड़ता है। जो लोग अल्पायु होते हैं, वे संभवतः शनि की गोचर दशा से बच सकें, यह संभव है, लेकिन एक जीवनकाल में एक व्यक्ति तीन बार शनि की गोचर दशा को भोग सकता है, इससे अधिक नहीं। शनि की गोचर दशा में व्यक्ति अपने पतन के पक्ष में फैसले लेता है, ठीक वैसे ही जैसे ‘विनाशकाले विपरीत बुद्धि’ के समय होता है।

शनि के दुष्प्रभाव से कैसे बचें

शनि को सूर्य का पुत्र कहा गया है और पौराणिक मान्यता है कि इसकी दशा से देवलोक भी बचा नहीं रह सका । एक समय श्री हनुमान को शनि ने प्रभावित करने की ठानी। माना जाता है कि हनुमान ने उसे पूंछ से जकड़ लिया। इस पौराणिक कथा के आधार पर यह धारणा प्रचलित है कि जो व्यक्ति हनुमानजी का भक्त होता है, शनि उसे प्रभावित नहीं करता है। भगवान राम को शनि की महादशा में ही वनवास भोगना पड़ा था ।

इन्हीं सब कारणों के चलते प्रतिकूल समयावधि आने पर आम आदमी शनि को दोष देता है, फिर चाहे खराब समय के लिए वास्तविक कसूरवार बृहस्पति ही क्यों न हो। शनि के लिए शनिवार को विशेष पूजा का विधान है । सामान्यतया विपरीत शनि हो, तो शनि देव के मंदिर में लगातार तीन शनिवार को तेल, काले तिल, काली उड़द की दाल, लोहे की कोई वस्तु, रेजगारी, काला कपड़ा आदि दान देना चाहिए ।

शनि से बनने वाले शुभ योग

शनि मकर और कुंभ राशियों का स्वामी है । मेष में शनि नीचगत और तुला में उच्च का होता है। शनि और शुक्र की मित्रता प्रसिद्ध है। शनि की महादशा में शनि के अंतर में शुक्र का शुभ फल मिलता है और शुक्र की महादशा में शुक्र के अंतर में शनि की स्थिति के अनुसार फलों की प्राप्ति होती है। यह इनकी मित्रता के फलस्वरूप होता है।

विभिन्न लग्नों में वृष और तुला लग्न में शनि केंद्र और त्रिकोणों का स्वामी होने से कारक माना जाता है । इन लग्नों में शनि और शुक्र की दशाएं प्रभावी होती हैं । जातक को चौतरफा लाभ मिलता है। नए कार्यों का आरंभ होता है और मानसिक शांति का अनुभव होता है ।

शनि से बनने वाले शुभ योगों में शश योग प्रमुख है । जब लग्न या चंद्रमा के केंद्र में शनि हो, तो शश योग होता है, लेकिन यह योग तभी फलित होता है, जब शनि तुला, मकर या कुंभ राशिगत हो । शेष राशियों में यह निष्फल होता है

शश योग को पंचमहापुरुष योगों में से एक माना गया है। शश योग में जन्म होने पर प्रायः जातक को संपत्ति की प्राप्ति शीघ्र होती है। कई मामलों में जातक को विरासत में भी धन की प्राप्ति होती है। जिन लोगों के जन्मांगों में शश योग होता है, उनको स्थायी कार्यों में धन का विनियोजन करना चाहिए ।

यदि जन्मांग में शनि की प्रतिकूल स्थिति हो, तो शनि की अंतरदशाएं भी अशुभ और कष्टदायी होती हैं। कुंडली में शनि का विचार बहुत सावधानी से करना चाहिए। प्रायः शनि का गोचर यदि सकारात्मक न हो, तो बहुत से संकटों का सामना करना पड़ता है।


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