कुंडली से सुंदरता का आंकलन
सुंदरता तो देखने वाले की आंखों में होती है। वर्तमान में इस मुहावरे के क्या मायने हैं, यह किसी से छिपा नहीं है । अब सुंदरता के मापदंड बदल गए हैं या तय हो गए हैं। यद्यपि माना जाता है कि सौंदर्य का दर्जा गुणों के सामने दूसरा है। काफी हद तक यह तथ्य सत्य के निकट है, लेकिन आज के उपभोक्ता बाजार में सभी कुछ बिकता है और सौंदर्य की मांग भी दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। यदि आप देखने में आकर्षक हैं, तो दूसरे गुणों का महत्त्व गौण हो जाता है ।
ब्रिटेन से प्राप्त एक शोध के निष्कर्ष देखें-
लंदन के विश्वविद्यालय गिल्टहाल यूनिवर्सिटी ने अपने एक शोध में यह प्रमाणित किया है कि ब्रिटेन में अनाकर्षक पुरुषों को अपने सुंदर साथियों की तुलना में पंद्रह प्रतिशत कम वेतन पर संतोष करना होता है।
इसी प्रकार वहां की उन महिलाओं को जो सुंदर और फैशनपरस्त हैं, उन्हें अपने सौंदर्य का लाभ वेतन में ग्यारह प्रतिशत की अधिकता के रूप में मिलता है। विश्वविद्यालय ने अपने शोध में माना है कि यदि कोई युवती रूप-लावण्य से भरपूर और बेहद खूबसूरत है, तो उसे नौकरी मिलने की संभावनाएं इतनी बढ़ जाएंगी कि आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं।
आधुनिक समाज में बहुत से क्षेत्र इस श्रेणी में हैं, जिनमें सौंदर्य मूलभूत आवश्यकता बनकर उभरा है। यदि आप सुंदर हैं, तो जो भी क्षेत्र सौंदर्य प्रधान है, वहां आप का ही साम्राज्य होगा। अभिनय, शृंगार, टी.वी., वायु परिवहन, स्वागत और फैशन आदि बहुत से क्षेत्र हैं, जहां आपके लिए धन और प्रसिद्धि प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, जिसे आप केवल सौंदर्य के बल पर हासिल कर सकते हैं।
व्यावसायिक दृष्टि से तो सौंदर्य का महत्त्व है ही, साथ ही सौंदर्य इस रूप में भी विचारणीय है कि व्यक्ति जब किसी अजनबी से पहली बार मिलता है, तो उसको प्रभावित करने का एक तरीका सौंदर्य भी है। आप स्त्री हैं और सुंदर भी हैं, तो आपको मिलने वाले अवसरों में कई गुना वृद्धि हो जाती है ।
चार हजार वर्षों से हैं- भारत में ब्यूटी पार्लर
आधुनिक समय में सौंदर्य प्रसाधन का जो कार्य किया जा रहा है, वह भारत में वैदिककाल से ही प्रचलित है। इसके लिए एक उदाहरण ही पर्याप्त होगा। करीब 4000 वर्ष पहले महाभारतकाल में पांडवों को एक वर्ष का अज्ञातवास मिला था । तब मत्स्य प्रदेश की राजधानी विराट नगरी में महारानी द्रौपदी ने वहां के राजमहल में रानी की शृंगार प्रसाधिका का कार्य किया था। दरअसल वह द्रौपदी का चलता-फिरता ब्यूटी पार्लर था।
ऋषि वात्स्यायन का कामसूत्र सौंदर्य और सेक्स का अनुपम ग्रंथ है। जहां तक मुझे जानकारी है, सेक्स और सौंदर्य पर ऐसा प्रामाणिक, मौलिक और अपने में पूर्ण ग्रंथ विश्व में उपलब्ध नहीं है। इन घटनाओं की पुष्टि ज्योतिष के अनेक ग्रंथ करते हैं, जिनमें सौंदर्य से संबंधित बहुत से योग दिए गए हैं। यद्यपि यह सत्य है कि तब पुरुषों के लिए यह सुविधा उपलब्ध नहीं थी । यहां सौंदर्य के संबंध में मैं जो चर्चा कर रहा हूं, वह पुरुष और महिला दोनों पर समान रूप से लागू होती है ।
कुंडली से सुंदरता का आंकलन
प्राचीन भारतीय ग्रंथों में शारीरिक गठन के आधार पर भविष्यवाणी करने की प्रथा प्रचलित थी । सतयुग में सीता के अंग-प्रत्यंगों के आधार पर तब के ज्योतिषियों ने अनेक भविष्यवाणियां की थीं। इसे सामुद्रिकशास्त्र का नाम दिया गया है । यद्यपि शारीरिक बनावट के आधार पर भविष्यवाणी करने का यह विज्ञान अधिक लोकप्रिय नहीं हो पाया। कालांतर में इसका स्थान हस्तरेखाओं ने ले लिया ।
सामान्य रूप से शारीरिक सुंदरता को देखने के लिए लग्न ही पर्याप्त है। लग्न, लग्न पर प्रभाव और लग्नेश की स्थिति के आधार पर आसानी से व्यक्ति के शारीरिक गठन का अंदाजा लगाया जा सकता है।
लेकिन जो लड़कियां सौंदर्य प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेती हैं, अभिनय, शृंगार आदि में संलग्न हैं, उनके सौंदर्य के आकलन के लिए लग्न पर्याप्त नहीं है। इस श्रेणी के जातकों और जातिकाओं के जन्मांगों में लग्नों के साथ नवांश, शुक्र, चंद्रमा और मंगल का अवलोकन भी अनिवार्य है।
सौंदर्य मूल रूप से माता और पिता की तरफ से जन्मजात मिलता है, लेकिन अकसर यह भी देखने में आता है कि साधारण नैन-नक्श वाले अभिभावकों की संतान भी अतुलनीय सौंदर्य की स्वामिनी हो सकती है। बहुत बार अति सुंदरी के माता-पिता भी अत्यंत सामान्य या लगभग कुरूप की श्रेणी में आते हैं। यह सब जन्मांग में पड़े ग्रहों के कारण होता है।
एक लड़की की कुंडली में लग्न में समराशिगत शुक्र पड़ा है। सप्तम में मंगल है। हालांकि इस लड़की के अभिभावक सांवले रंग हैं, जिसके कारण इसका रंग भी सांवला है । ज्योतिष में देश, काल और जाति का बहुत महत्त्व है। यदि अभिभावकों का रंग सांवला है, तो निश्चित रूप से उनकी संतानों पर यह प्रभाव अवश्य होगा।
फलस्वरूप लड़की का रंग भी सांवला है, लेकिन जन्मांग में पड़े ग्रहों ने अपना प्रभाव भी दिखाया है। लड़की सांवली, लेकिन सलोनी शक्ल की खूबसूरत शरीर की स्वामिनी है। त्वचा चमकीली और सुगठित है। उन्नत वक्षस्थल और बड़ी-बड़ी आंखें हैं। इन सबका कारण कुंडली में सौंदर्य कारक ग्रहों का प्रभाव है ।
दरअसल सुंदरता ग्रहों की देन है। यही कारण है कि कुंडली के आधार पर बहुत आसानी से यह बताया जा सकता है कि जातक या जातिका किस हद तक सुंदर होंगे।
सातवें भाव का अवलोकन कर यह भी प्रकट किया जा सकता है कि जीवन साथी सुंदर होगा या सामान्य । अत्यंत रूपवती तरुणी को पत्नी के रूप में पाने वाले जातकों के सातवें भाव की स्थिति भी बहुत सुंदर होती है।
सौंदर्य के कारक ग्रह और राशियां
शुक्र सौंदर्य कारकों में प्रधान है। सुंदरता के कारक ग्रह शुक्र के साथ चंद्रमा और बृहस्पति भी है । बृहस्पति सुंदरता के साथ विवेक भी प्रदान करता है। विवेकरहित सौंदर्य का समुचित उपयोग नहीं हो पाता है। इस स्थिति में या तो जातक साधारण रहता है या यह सुंदरता पथ-भ्रमित होकर अभिशाप बन जाती है।
इन सबसे परे बृहस्पति का लग्नेश से किसी प्रकार का संबंध होना चाहिए। यदि बृहस्पति स्वयं लग्न में जाता है, तो यद्यपि सुंदरता में वृद्धि होती है, लेकिन वृद्धावस्था के चिह्न शीघ्र नजर आते हैं और समय से पूर्व सिर के बाल उड़ने लगते हैं। बेहतर हो कि बृहस्पति लग्न या लग्नेश पर दृष्टि डाले या लग्न में बृहस्पति की राशि पड़ी हो।
सौंदर्य में बृहस्पति की भूमिका को आप इस प्रकार समझें कि यदि बृहस्पति प्रभावी नहीं है, तो आप कितने भी सुंदर क्यों न हों, आप अपनी सुंदरता को व्यावसायिक रूप नहीं दे पाएंगे।
बृहस्पति प्रधान सुंदर स्त्रियां अपने युवाकाल में अनेक पुरुषों को रिझाती हैं, लेकिन अपने परिवार और समाज में पूर्णतः प्रतिष्ठित रहती हैं। ये इतनी विवेकशील होती हैं कि यौन इच्छा इन पर हावी नहीं हो पाती है।
ग्रहों में मंगल को भी सुंदरता का कारक माना गया है। हालांकि मंगल द्वारा प्रदत्त सौंदर्य निष्कलंक नहीं रह पाता है। कई बार मंगल का दोष चेहरे पर लाल रंग के चिह्नों के रूप में भी दिखाई देता है ।
राशियों में सम राशियां (वृष, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन) सौंदर्य कारक होती हैं। इनको सौम्य राशियां भी कहते हैं। यद्यपि सुंदरता के अनेक योग उपलब्ध हैं, लेकिन पाठकों के लिए यह अधिक सरल है कि वे योगों को स्मरण रखने की बजाय एक सिद्धांत को ही ध्यान में रखें । सम राशियों से सौंदर्य के जो संकेत प्राप्त हो सकते हैं, वे दूसरे योगों से कदाचित नहीं हो सकते हैं।
कुंडली से सौंदर्य के अवलोकन का सरल और सटीक सिद्धांत यही है कि उपरोक्त वर्णित सौंदर्य के कारक ग्रहों की जितनी अधिक स्थिति सम राशियों में होगी, जातक को उसी मात्रा में सौंदर्य प्राप्त होगा। यह विधि शास्त्रोक्त भी है । सारावली में लिखा है कि जितने अधिक शुभ ग्रह सम राशिगत होंगे, जातक उसी अनुपात में सुंदर होगा ।
सौंदर्य के अन्य योग
लग्न शरीर का प्रतिनिधित्व करता है । यही कारण है कि लग्न और लग्नेश को प्रभावित करने वाले ग्रह ही चेहरे और शरीर पर अपना निर्णायक प्रभाव डालते हैं । लग्नगत विभिन्न ग्रहों का क्या प्रभाव हो सकता है, इसको निम्न सारणी से समझें :
शरीर पर तत्वो का प्रभाव
राशियों के तत्वो के आधार पर शारीरिक सौंदर्य के संबंध में स्थूल आकलन प्राप्त किया जा सकता है। यह हमारी निर्णय क्षमता को बढ़ाता है।
- मेष, सिंह और धनु अग्नि तत्त्व राशियां हैं।
- वृष, कन्या और मकर पृथ्वी तत्त्व राशियां हैं।
- मिथुन, तुला और कुंभ वायु तत्त्व राशियां और
- कर्क, वृश्चिक और मीन जल तत्त्व राशियां हैं।
जैसा कि बताया जा चुका है, कुंडली में तीन लग्नों की प्रधानता रहती है । उदय लग्न, चंद्र लग्न और सूर्य तीन लग्न हैं। तीनों लग्नों में शुक्र और चंद्रमा की राशि जिस तत्त्व की प्रधानता लिए होगी, जातक के शरीर पर उसी तत्त्व का प्रभाव दृष्टिगोचर होगा ।
जब पृथ्वी तत्त्व की प्रधानता होती है, तो शरीर ठोस और मजबूत होता है। इस तत्त्व के कारण प्राकृतिक सौंदर्य का अभास हो सकता है । इनके अंग प्रायः गोलाकार नहीं होते हैं, लेकिन पर्याप्त आकर्षक होते हैं। अग्नि और वायु तत्त्व की तुलना में ये सुंदर होते हैं ।
अग्नि तत्त्व की प्रधानता होने पर शरीर दुबला और बेढंगा होता है । ये जातक प्रायः सुंदर नहीं होते हैं ।
वायु तत्त्व की प्रधानता के कारण यद्यपि शारीरिक बल अच्छा हो सकता है, लेकिन त्वचा में चमक का अभाव होता है। चेहरे और शरीर पर अनावश्यक बाल होते हैं । इनकी चाल अस्थिर होती है ।
जल तत्त्व प्रायः स्थूलता और आकर्षण देता है । इस तत्त्व की प्रधानता रखने वाली जातिकाएं गोल-मटोल और प्रफुल्ल-प्रसन्नचित्त होती हैं। बड़ी-बड़ी जलीय आंखें और गोलाकार अंग होते हैं । वक्षस्थल भरा-पूरा होता है ।
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