कुंड्ली का वर्गीकृत फलित
इसके पहले के अध्याय में फलित की जो विधि लिखी गई है, उसमें कुंडली के समग्र अध्ययन पर बल दिया गया है अर्थात् किसी भी प्रकार का फल देखने से पूर्व हमें कुंडली के बल को देख लेना चाहिए। इसके लिए कुछ प्रमुख योगों पर भी प्रकाश डाला गया है। इसके परिणामस्वरूप पाठकों को कुंडली को देखने मात्र से ही यह ज्ञान हो जाएगा कि कुंडली जातक की इच्छाओं को कहां तक पूर्ण करने में सक्षम है।
उदाहरण के लिए किसी जन्मांग में हमें शिक्षा का स्तर देखना है । इसके लिए द्वितीय, चतुर्थ और पंचम भाव, द्वितीयेश, चतुर्थेश, पंचमेश की स्थिति और विद्या के कारक बृहस्पति और बुध का बलाबल देखना चाहिए। कल्पना कीजिए कि परिणाम में हमें अच्छी और उच्च शिक्षा के संकेत मिलते हैं, लेकिन जन्मांग के दूसरे अंगों से स्पष्टतः शुभ और समृद्धिदायक योगों की अपेक्षा अशुभ और निकृष्ट योगों का आधिक्य है।
दोनों परिणामों का संयुक्त मनन कर चुकने के बाद हमें यह निष्कर्ष ग्रहण करना चाहिए कि जातक को बाधा के साथ उच्च शिक्षा की प्राप्ति होगी, किंतु वह जीवन में इस उपलब्धि का लाभ नहीं ले सकेगा। तात्पर्य यह है कि कुंडली के सभी अंग मिलकर किन्हीं संकेतों को परिणाम में बदलते हैं। किसी एक योग के आधार पर आपको भविष्यवाणी नहीं करनी चाहिए ।
कुंड्ली का वर्गीकृत फलित
मनुष्य का जीवन निरंतर गतिशील रहता है। समय-समय पर अच्छी और बुरी घटनाएं घटती हैं। प्रारब्ध के समक्ष मनुष्य कठपुतली से अधिक कुछ नहीं है। अधिसंख्य वे लोग हैं, जो जीवन में घट रही शुभाशुभ घटनाओं में मूक दर्शक बनकर अपनी भूमिका निभाते हैं। यह सब भाग्य का ही चमत्कार है। ज्योतिष एक ऐसा दर्पण है, जिसमें हमें जीवन में होने वाले उपरोक्त परिवर्तनों के संकेत प्राप्त हो सकते हैं। इसके लिए आवश्यक है कि हम जीवन के सभी पक्षों का पृथक् अस्तित्व स्वीकार करते हुए अध्ययन करें।
वर्तमान युग विशेषज्ञता का युग है। जीवन के विभिन्न पहलुओं के अनुसार फलित कहना विशेषज्ञता का ही पर्याय है । पाठक चाहें तो किसी एक पहलू पर अपनी संपूर्ण ऊर्जा व्यय कर सकते हैं। इसका सीधा लाभ होगा कि उससे संबंधित घटनाओं पर वे अधिक परिपक्व और सटीक भविष्यवाणी कर सकने में सक्षम होंगे।
भाव, भावेश और कारक ग्रह
वर्गीकृत फलित में जन्मांग के तीन अंग महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं । पहला है घटना से संबंधित भाव, दूसरा है भावेश (संबंधित भाव का स्वामी) और तीसरा है संबंधित घटना का कारक ग्रह । परस्पर तीनों पक्षों का मनन करके हमें परिणामों को ग्रहण करना चाहिए।
उदाहरण के लिए जब जातक का वैवाहिक सुख देखना हो, तो सप्तम भाव, सप्तमेश और शुक्र का आकलन अवश्य कर लेना चाहिए।
मानवीय पहलुओं का भावों से संबंध
मानवीय जीवन घटनाओं का पुलिंदा है। जन्म से लेकर मृत्यु तक जीवन में शुभ और अशुभ घटनाएं निरंतर होती रहती हैं। शिक्षा, व्यवसाय, प्रेम, विवाह, संतान, स्वास्थ्य, यश, सुख, क्लेश, इच्छाएं और मृत्यु आदि ऐसे पहलू हैं, जिनके संबंध में साधारण व्यक्ति से लेकर अकूत धन-संपदा के स्वामी तक में उत्कंठा रहती है।
भारतीय मनीषियों ने इस मानसिकता को पहचाना और विभिन्न पहलुओं को इंगित करने के लिए विभिन्न राशियों और भावों की व्यवस्था कर दी। इस दृष्टि से ज्योतिष एक पूर्ण वैज्ञानिक पद्धति सिद्ध होती है । इसका वर्गीकरण आश्चर्यजनक है और आज विशेषज्ञता के युग में पूर्ण सामंजस्य रखता है। यद्यपि यह पद्धति प्राचीन है।
पाठक भावों से आशय समझ चुके हैं। भावों से भी महत्त्वपूर्ण हैं भावों की संज्ञाएं, अर्थात् वे भाव जीवन के किन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं । साधारण ज्योतिष में फलित का यही तरीका लोकप्रिय और सहज है। काफी हद तक यह सटीक भी है । सामान्यतया भाव जिन घटनाओं या क्षेत्रों के द्योतक हैं, उनका मैं उल्लेख कर रहा हूं। आधुनिक युग इतना विस्तृत हो चुका है कि अब यह संभव नहीं रहा कि सभी क्षेत्रों या घटनाओं को समेटा जा सके। अतः पाठकों अपने विवेक से फैसला लेना होगा ।
प्रथम भाव अर्थात् लग्न: देह, स्वास्थ्य, वर्तमान जन्म, आयु, कद, जीवन-शक्ति, पौरुष, ऐश्वर्य, मस्तिष्क और जाति का विचार लग्न से करना चाहिए ।
द्वितीय भाव: शरीर के शीर्ष अंग, सौंदर्य, प्रेम, धन, वाक्शक्ति, स्मरण शक्ति, सौभाग्य, कुटुंब, राज, विद्या, भोजन, स्वर्णादि धातु, कोष, मृत्यु और कल्पना शक्ति का विचार द्वितीय भाव से करना चाहिए।
तृतीय भाव: सहोदर, नौकर, पराक्रम, सगाई – संबंध, विभिन्न रुचियां, परदेश यात्रा, छाती, माता-पिता की मृत्यु, श्रवणेंद्रिय, शौर्य, धैर्य, गायन, लेखन-क्षमता, छाती में होने वाले रोग और स्त्री के पिता का विचार तृतीय भाव से करना चाहिए ।
चतुर्थ भाव: उच्च-शिक्षा, सुख, वाहन, पुश्तैनी-जायदाद, भूमि, पशुधन फेफड़े, रक्त, यकृत, जन सेवा या दान, अंतःकरण, स्वयं का भवन या आवास, निधि, खेत, उद्यान, कुआं, तालाब, जलाशय जैसे स्थान, जनता से संबंधित कार्य, अचल संपत्ति, मित्र, माता, भानजा, मामा, ससुर, सुगंधियां और वस्त्राभूषण का विचार चतुर्थ भाव से करना चाहिए।
पंचम भाव: राज से लाभ, नवीन कार्यों का आरंभ, अचानक मिलने वाला धन, लॉटरी, सट्टे और शेयर से आय, राजनीति में सफलता, सरकारी कर, छठी इंद्रिय, भविष्य देखने की क्षमता, वेदों और शास्त्रों का ज्ञान, आमोद-प्रमोद के स्रोत, प्रेम-विवाह, प्रेयसी या प्रेमी, पत्नी का बड़ा भाई, बहनोई, राष्ट्रप्रेम, यश या ख्याति, कलाओं का ज्ञान और व्यावहारिक बुद्धि कौशल का विचार पंचम भाव से करना चाहिए।
षष्ठ भाव: षष्ठ भाव से मूलतः रोग और शत्रु का विचार किया जाता है। इसके अलावा, दीर्घ कष्ट, क्रूरकर्म, निद्रा, आशंकाएं और चिंताएं, व्रण (घाव), थकावट, चोरी, सहोदरों से बैर, व्यसन, दुष्टकर्म, पाप, सेवा-सुश्रूषा और मामा का विचार षष्ठ से करना चाहिए।
आधुनिक मतानुसार यदि षष्ठ भाव बली हो, तो सरकारी या निजी क्षेत्र की नौकरी का विचार भी षष्ठ भाव से करना चाहिए।
सप्तम भाव: सप्तम भाव को स्त्री और दैनिक रोजगार का भाव कहा गया है। दांपत्य सुख के लिए सप्तम को प्रधानता देनी चाहिए। द्वितीय के बाद सप्तम दूसरा मारक स्थान है। उपरोक्त के अलावा मुकदमेबाजी, मृत्यु, यौन सुख, रोजगार, जुआ, पुरुषत्व, बवासीर, यौन रोग, जननेंद्रिय रोग, कमर दर्द का विचार भी सप्तम भाव से करना चाहिए।
अष्टम भाव: अष्टम भाव मृत्यु का भाव है। यही कारण है कि अष्टमेश जिस भाव में स्थित होता है, उसकी हानि करता है । द्वितीय और सप्तम के बाद यह तीसरा मारक स्थान है।
विदेश यात्रा, ऋण का लेन-देन, शस्त्र प्रहार, अपमान, अंडकोष, प्राचीन वस्तुओं का संग्रह, मानसिक परेशानी, धोखा, पराधीनता, वसीयत, दुर्घटना, गृह क्लेश, अपयश, आयु के वर्ष, आत्महत्या, भाग्यहीनता, मलिनता, दुःख, विलंब, असफलता, निराशा और वृद्धावस्था में मिलने वाले लाभों का विचार अष्टम भाव से करना चाहिए।
नवम भाव: पंचम के उपरांत यह दूसरा त्रिकोण और अत्यंत शुभ भाव है । प्रायः इससे भाग्य का विचार किया जाता है । नवम भाव से दान, धर्म, तीर्थयात्रा, देवध्यान, गुरुओं के प्रति आदर, वनौषधि, मन की शुद्धता, विद्या, परिश्रम और समृद्धि का विचार करना चाहिए।
अर्वाचीन और प्राचीन सम्मिलित मत से राज्याभिषेक, पिता, पत्नी का भाई, विश्वास, प्रारब्ध, अंतर्दृष्टि, गुरु, मानसिक वृत्ति, प्रवास, व्यवसाय, पद, यश, वायुयानों की यात्राएं, नीति, नम्रता, पैतृक संपत्ति और भवन का विचार नवम भाव से करना चाहिए
द्वादश भाव: एकादश भाव आय और द्वादश व्यय का प्रतिनिधित्व करता है। मूलतः खर्चों का विचार द्वादश भाव से किया जाता है ।
मोक्ष, धर्म, दंड, बंधन, दुःख, दरिद्रता, पाप, व्यसन, रोग, शयन, जेल यात्रा, बगावत, दुर्भाग्य, रहस्यमयी शत्रु, धोखा, अपमान, शरीर की अंग हानि, त्याग, झगड़ा, देश निकाला, अपव्यय, दीर्घ चिकित्सा, हत्या, निगूढ़ विद्याओं का ज्ञान, अधिकारों में कटौती, बेचैनी, बाईं आंख, पैर, बाएं कान और पत्नी के स्वास्थ्य का ज्ञान भी द्वादश भाव से करना चाहिए ।
द्वादश भावों के उपरोक्त वर्णन के बाद आसानी से विषय से संबंधित भाव का चयन किया जा सकता है । उदाहरण के लिए यदि हमें व्यवसाय देखना हो, तो दशम से देखेंगे और व्यवसाय में लाभ के लिए एकादश भाव देखना होगा। इसी प्रकार जीवन के दूसरे पहलू भी हैं ।
वर्गीकृत फलित में भावों से संबंधित विषय महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इनके आधार पर ही हमें लक्ष्य की प्राप्ति होती है ।
जैसा कि अध्याय के आरंभ में लिखा जा चुका है कि जीवन के किसी पहलू पर विचार करने के लिए संबंधित भाव, भावेश और कारक ग्रह पर विचार करना चाहिए। संबंधित भावों पर पाठक विस्तारपूर्वक जानकारी प्राप्त कर चुके हैं। भावेश का अर्थ है भाव का स्वामी या सीधे अर्थों में उस राशि का स्वामी, जो भाव में स्थित है। भाव अपने आप में निरपेक्ष होता है। राशियां और ग्रह भाव को बली या निर्बल बनाते हैं।
भावों से वर्गीकृत फलित के सूत्रों को जानने से पूर्व हमें यह जान लेना आवश्यक है कि मानवीय क्रियाकलापों का ग्रहों से क्या संबंध है या भावों और ग्रहों के सम्मिलित प्रभावों के साथ-साथ ग्रहों की घटनाओं के संदर्भ में स्वतंत्र परिभाषाएं क्या हैं। यह ठीक वैसा ही है, जैसा कि हम भावों और उनसे संबंधित विषयों के संबंध में जानकारी कर चुके हैं। इसे ग्रहों का कारकत्व कहा जाता है।
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