लग्न और लग्नेश

भावों में लग्न सबसे महत्त्वपूर्ण है । यदि लग्न बलहीन है, तो दूसरे सभी योग सीमित फल ही दे पाते हैं। सही अर्थों में तो शुभ और कारक योगों के फल न्यूनतम मिलते हैं और अशुभ योग हावी रहते हैं । जातक की शारीरिक स्थिति ऐसी नहीं होती कि वह सुखों को भोग सके ।

लग्न का अर्थ स्वयं है। लग्न जितना बली होगा, जीवन में भोग और सत्ता उतनी ही मात्रा में मिलेगी। कुछ विद्वानों का मत है कि किसी भी जन्मांग में किसी शुभ या अशुभ योग पर विचार करने से पूर्व लग्न पर अवश्य विचार कर लेना चाहिए। केवल शुभ योगों के आधार पर फल कहने से यश की हानि होती है । मात्र लग्न के बली होने से सामर्थ्य, प्रभुता, उन्नति, सुख और तेज की वृद्धि होती है ।

लग्न में कारक ग्रहों की उपस्थिति होने से जन्मांग की शुभता में वृद्धि होती है । लग्न में जब कोई ग्रह स्वग्रही, उच्च या मित्र राशि में हो, तो लग्न को बल मिलता है।

लग्न को अंशों में हमेशा बली होना चाहिए। लग्न के अंश 3 से अधिक और 27 से कम होने चाहिए। इसके विपरीत होने पर शुभ योगों के फलों की प्राप्ति संभव नहीं है या न्यूनतम फल मिलते हैं।

लग्नेश के भिन्न भावों में स्थित होने के क्या फल हो सकते हैं, यह आगे बताया जा रहा है। सामान्यतया यदि लग्नेश अष्टम, द्वादश, नीचगत और शत्रु राशिगत हो, तो निर्बल मानना चाहिए । लेकिन यह अंतिम परिणाम नहीं है, क्योंकि कुछ लग्नों में अष्टमस्थ या द्वादस्थ लग्नेश भी बली हो सकता है।

लग्नेश के विभिन्न भावगत होने के फल

द्वितीय भाव में : द्वितीय स्थान में लग्नेश होने से जातक राजनेता, किसी संस्था का प्रधान, धनी, नित नए सम्मान प्राप्त करने वाला और उच्च मनोवृत्ति संपन्न होता है।

तृतीय भाव में : लग्नेश की यह स्थिति सहोदरों में सामंजस्य और प्रेम बढ़ाती है। जातक धार्मिक प्रवृत्ति और उत्तम बंधुओं और मित्रों से युक्त होता है। तृतीय भाव में लग्नेश की स्थिति शारीरिक बल-वृद्धि करती है । व्यक्ति साहसी और दान-पुण्य में रुचि रखने वाला होता है।

चतुर्थ भाव में : चतुर्थ भावगत लग्नेश होने से सरकार से लाभ होता है। जातक श्रेष्ठ पुत्र और पुरुषार्थी सिद्ध होता है। कुछ विद्वान मानते हैं कि चतुर्थ भावगत लग्नेश विरासत में संपत्ति दिलाता है । ये अच्छे और कर्मठ कार्यकर्ता सिद्ध होते हैं। लग्नेश की यह अच्छी स्थिति है। जातक दीर्घजीवी होता है।

पंचम भाव में : पंचमगत लग्नेश होने से जातक धार्मिक प्रवृत्ति का और दानप्रिय होता है। पंचमगत लग्नेश के जातक अपनी क्षमता से अधिक दान देते हैं । इन्हें प्रायः संतान सुख प्राप्त होता है। अकसर प्रसिद्ध होते हैं और अपने स्वामी के प्रति पर्याप्त निष्ठा का प्रदर्शन करते हैं। पंचम सबसे शुभ भावों में से एक है। यदि दूसरे योग सहयोग कर रहें हों, तो जातक प्रसिद्ध विद्वान होता है। ऐसे जातक प्रायः दीर्घायु होते हैं।

षष्ठ भाव में : मैंने अब तक जिन सैकड़ों-हजारों कुंडलियों का पठन-मनन किया है, उनसे सिद्ध हुआ है कि षष्ठ भावगत लग्नेश शुभ फल नहीं करता है। यद्यपि यह ऋणों और शत्रुओं का नाश करता है, लेकिन जीवन के पूर्वार्ध में स्वास्थ्य संबंधी कठिनाइयां पैदा होती हैं। अकसर जातक निर्बल रहता है। लग्नेश की षष्ठ स्थिति अशुभ है।

सप्तम भाव में : सप्तम में लग्नेश की स्थिति सामान्य स्वास्थ्य संबंधी कठिनाइयों के अलावा शुभ फलदायी है, क्योंकि सप्तम में स्थित होकर लग्नेश लग्न को पूर्ण सातवीं दृष्टि से देखता है। इनको सुंदर और सुशील भार्या की प्राप्ति होती है। प्रायः पत्नी के रूप-लावण्य से मुग्ध होकर उसकी इच्छानुसार बर्ताव करते हैं । यही कारण है कि कुछ विद्वान इनको स्त्री का दास भी कहते हैं । सप्तम में लग्नेश की स्थिति जातक को भाग्यवान बनाती है । साधारण से शुभ योग भी अपना पूर्ण फल देते हैं ।

अष्टम भाव में : अष्टम में लग्नेश होने से जातक न्यूनतम अठारह वर्ष की अवस्था तक रोगग्रस्त रहता है। गुप्तांगों में रोग हो सकता है। लग्नेश के लिए यह स्थिति अधिक अच्छी नहीं है। यदि अष्टम में लग्नेश की उच्च, मूलत्रिकोण या मित्र राशि हो, तो कुछ राहत मिल सकती है।

इन सबके विपरीत सभी विद्वान मानते हैं कि अष्टम में लग्नेश की स्थिति से जातक दीर्घायु होता है। इसका कारण यह है कि अष्टम आयु का भाव है और लग्नेश जन्मांग का सबसे शुभ ग्रह होता है । फिर चाहे वह पाप ग्रह ही क्यों न हो। नैसर्गिक और तात्कालिक शुभ ग्रह की अष्टम में स्थिति से आयु को बल मिलता है। अष्टम में गए लग्नेश को निर्बल मानना चाहिए।

नवम भाव में : जब लग्नेश नवम भाव में संस्थित हो, तो लग्नेश के लिए शुभ स्थितियों में से एक है। यदि नवम में लग्नेश की नीच या शत्रु राशि न हो, तो जातक प्रसिद्ध व्यक्ति होता है । प्रायः देखा जाता है कि ये लोग जीवन के उत्तरार्ध में अत्यंत धार्मिक जीवन व्यतीत करते हैं । ये जिस व्यवसाय या आजीविका से संबद्ध होते हैं, वहां इनका स्वाभिमान और शिष्ट व्यवहार चर्चित रहता है। नवम में लग्नेश को स्थान बली मानना चाहिए। यह भाग्य वृद्धि का संकेत है।

दशम भाव में : लग्नेश की केंद्र में स्थिति बेहतर मानी गई है। दशमस्थ लग्नेश सप्तमस्थ या चतुर्थस्थ से तुलनात्मक रूप से श्रेष्ठ है । लग्नेश यदि मंगल हो, तो जन्मांग में यह सर्वश्रेष्ठ स्थिति होती है। कुंडली में यदि राजयोगों की संरचना होती है, तो लग्नेश की दशम में स्थिति संभावनाओं को बढ़ाती है । जातक विद्वान, सरकार से लाभ प्राप्त करने वाला प्रतिष्ठित होता है।

एकादश भाव में : एकादश भाव के संबंध में प्रसिद्ध है कि यहां सभी ग्रह शुभ फल देते हैं । यह लाभ का भाव है। एकादश भाव में लग्नेश की स्थिति रोजगार या व्यवसाय में स्थायित्व देती है । व्यवसाय से धन लाभ देने वाले योगों के लिए यह सकारात्मक स्थिति है । प्रायः परिश्रम से सफलता मिलती है।

द्वादश भाव में: यह लग्न से बारहवां स्थान है । लग्न की यह स्थिति धनदायक योगों का नाश करती है। जातक रोगग्रस्त रहता है। यह एक श्रेष्ठ स्थिति नहीं है । एकादश जहां लाभ का भाव है, वहीं द्वादश व्यय का भाव है। आप मानकर चलिए, कि जो शुभ या कारक ग्रह जहां बैठेगा, उस भाव के फलों में वृद्धि करेगा। यही कारण है कि लग्नेश की द्वादश में स्थिति को प्रायः कष्टकारी माना गया है। यह शुभ योगों के फलों को रोक देती है या जीवन के उत्तरार्ध में सफलता देती है । यदि लग्नेश अष्टम भाव का भी स्वामी हो, तो शुभ होता है।


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