सूर्य लग्न, चंद्र लग्न और उदय लग्न के बलाबल
भारतीय फलित ज्योतिष में चंद्रमा को दूसरे लग्न की संज्ञा दी गई है। पहला उदय लग्न है और तीसरा सूर्य लग्न । सूर्य लग्न, चंद्र लग्न और उदय लग्न क्रमशः अधिकाधिक बली हैं ।
भारतीय ज्योतिष में लग्न के संबंध में जनमानस में पर्याप्त मतभेद और भ्रांतियों का बोलबाला है। सामान्य पाठक भ्रमित होकर त्रुटि कर बैठता है । वास्तविकता तो यह है कि वह वर्षों इस असमंजस में पड़ा रहता है कि हमें फलित के लिए किस लग्न का प्रयोग करना चाहिए और क्यों?
जब उदय लग्न से घटनाओं की पुष्टि नहीं होती है, तो वह चंद्र लग्न की तरफ झांकने लगता है, लेकिन यह एक गलत परंपरा है। तीनों लग्नों का अपना महत्त्व है। खासतौर पर उदय लग्न और चंद्र लग्न तो अपने यथास्थान पर विचारणीय हैं।
पाठकों को प्रारंभिक ज्ञानवृद्धि के लिए केवल यही जान लेना पर्याप्त है कि वास्तव में तीनों लग्नों का पृथक्-पृथक् क्या महत्त्व है और इनके उपयोग की क्या प्राथमिकताएं हैं।
लग्न और ग्रहों का अंशात्मक बल
प्रत्येक राशि में 30 अंश होते हैं और ग्रह अपनी गति के अनुसार न्यूनाधिक समय में इन अंशों को भोगता है। शनि 30 अंशों को भोगने में 30 माह का समय लेता है, जबकि सूर्य केवल एक माह और चंद्रमा मात्र 56 घंटे में ही एक राशि को भोग लेता है । यह समय ग्रहों की गति पर निर्भर करता है, जो कि एक औसत निश्चित समय होता है। इन अंशों को भोगने का बहुत महत्त्व है।
ग्रह जब 15 अंशों या इसके निकटतम होता है, तो अंशों में बली कहलाता है। एक अंश या इसके निकट और 29 अंश या इसके निकट के अंशों में निर्बल होता है। अंशों के बल को देखते समय राशियों का महत्त्व नहीं है ।
सूर्य लग्न
जन्म के समय जिस राशि में सूर्य होता है, वह सूर्य लग्न कहलाता है । पाठक जानते हैं कि सूर्य एक राशि में 30 दिनों तक रहता है। जब कि उदय लग्न का समय मात्र दो घंटे के आस-पास होता है । इस दृष्टि से सूर्य की राशि को लग्न स्वीकार करना एक बहुत ही स्थूल धारणा है।
भारतीय फलित ज्योतिष ने कालांतर में सूर्य लग्न की स्थूलता को समझा और अंततः जन्मांग में सूर्य कुंडली के होने की परिपाटी को छोड़ दिया। वर्तमान में केवल सुदर्शन चक्र (जिसमें कि तीनों लग्नों को सम्मिलित किया जाता है) में ही सूर्य कुंडली को बनाया जाता है ।
फलित शास्त्र में सूर्य कुंडली से व्यवसाय या आजीविका को देखने की परंपरा है। माना जाता है कि सूर्य से दशम में जो ग्रह या राशि होती है, व्यक्ति उसकी प्रकृति के अनुसार ही व्यवसाय करता है। अकेला यह सिद्धांत व्यावहारिक नहीं है, फिर भी इससे सहयोग लिया जा सकता है।
कुछ विद्वानों का मानना है कि बड़े उद्योगपति, व्यवसायी, राजनीतिज्ञ, कलाकार या दूसरे उच्च पदस्थ लोगों के जीवन को समझने में सूर्य कुंडली का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस श्रेणी के लोगों की कुंडली में सूर्य कुंडली अवश्य देखनी चाहिए । पश्चिम में सूर्य राशि के आधार पर गोचर देखने की परंपरा है।
चंद्र लग्न
चंद्रमा जिस राशि में स्थित होता है, उसे चंद्र लग्न की संज्ञा प्राप्त है। चंद्र राशि और चंद्रमा को केंद्र (लग्न) में रखकर चंद्र कुंडली की संरचना की जाती है।
चंद्र कुंडली के संबंध में भारतीय आचार्यों ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं। लगभग सभी उपलब्ध ग्रंथों में यह अनुशंसा की गई है कि उदय लग्न के उपरांत कुंडली का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग चंद्र लग्न है। चंद्र लग्न के महत्त्व को आप इस प्रकार समझें कि उत्तर भारत में संक्षिप्त जन्म कुंडली में भी उदय लग्न के साथ चंद्र लग्न को बनाने की परंपरा है।
मैंने सैकड़ों वर्ष पुरानी कुंडलियों का अध्ययन किया है। लगभग सभी जन्म चक्रों में चंद्र कुंडली बनाई जाती है । यह अपने आप में चंद्र कुंडली के महत्त्व और फलित में चंद्रमा के किसी रहस्यमय उपयोग को व्यक्त करती है।
प्रश्न है कि चंद्र लग्न का क्या उपयोग है कि इसे उदय लग्न कुंडली से पूंछ की तरह जोड़ दिया गया है। चंद्र कुंडली के महत्त्व को समझने के लिए हमें गहराई से विचार करना होगा।
इस संसार की सभी आजीविकाएं केवल दो ही तरीकों से कमाई जाती है। एक तरीका शारीरिक है और दूसरा मानसिक । आप इसे इस प्रकार समझें कि मनुष्य के शरीर में दो बल निहित हैं। एक बल शारीरिक है और दूसरा मानसिक । टेबल पर रखे फोन को उठाने के लिए आपके शारीरिक बल की और किसी विषयवस्तु को समझने के लिए मानसिक बल की आवश्यकता है।
प्रबुद्ध पाठक आसानी से संसार की गतिविधियों को दो भागों अर्थात् शारीरिक और मानसिक बल के अनुसार विभाजित कर सकते हैं।
उपरोक्त दो बलों में जो मानसिक बल है, उसका प्रतिनिधित्व चंद्रमा या चंद्र लग्न करता है। लग्न से आप जातक की शारीरिक क्षमता का अंदाजा लगा सकते हैं, लेकिन जब मन और मस्तिष्क की कार्य क्षमता का ज्ञान करना हो, तो चंद्र कुंडली के बल को देखना चाहिए ।
जब चंद्र लग्न बली हो, तो जातक आसानी से शारीरिक कष्टों का भी सामना कर सकता है, लेकिन चंद्र लग्न के निर्बल होने पर न केवल मानसिक कष्टों में वृद्धि होती है, बल्कि जातक साधारण शारीरिक कठिनाइयों से भी त्रस्त रहता है।
इसके अलावा भी चंद्र लग्न की कुछ महत्त्वपूर्ण उपयोगिताएं हैं, जिनके बारे में जान लेना फलित पर आपके अधिकार को बढ़ाएगा ।
जब कुंडली उपलब्ध न हो
भारत की कुल जनसंख्या का 70% भाग अब भी गांवों में बसता है। यहां जीवन की मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। गांवों में बहुत कम लोग हैं, जो जन्म संबंधी आंकड़ों को महत्त्व देते हैं। आमतौर पर जन्म का वर्ष भी मौखिक ही बताया जाता है । हमारे प्राचीन आचार्यों ने इस स्थिति को भांप लिया था और उन्होंने कालांतर में एक ऐसी पद्धति का विकास किया, जो कि चंद्रमा पर आधारित थी ।
चंद्रमा एक राशि में 56 घंटे रहता है। सूर्य की तुलना में यह सूक्ष्म समयावधि है। आचार्यों ने जन्मकालीन चंद्रमा की राशि को लग्न की संज्ञा दे दी और जीवन पर्यन्त स्मरण रह सके इसके लिए उन्होंने एक ऐसी व्यवस्था का निर्माण किया, जो कि आज भी मेरे और आपके लिए विस्मयजनक है।
आचार्यों ने एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था का निर्माण किया, जिसमें कि बच्चे का नामकरण जन्म के समय की चंद्र राशि के आधार पर किया जाने लगा । आपको आश्चर्य होगा कि यदि हम अनुशंसित प्रणाली के आधार पर बच्चे का नामकरण करते हैं, तो चंद्र राशि, नक्षत्र और यहां तक कि जन्मकालीन चंद्रमा के अंशों तक का ज्ञान जातक के जीवन में कभी भी किया जा सकता है।
पाठक अवगत हैं कि प्रत्येक राशि में सवा दो नक्षत्र होते हैं। और एक नक्षत्र में चार चरण होते हैं। इस प्रकार एक राशि का निर्माण सवा दो नक्षत्रों के सम्मिलित नौ चरणों से होता है । प्रत्येक चरण का अपना एक नामाक्षर है। चंद्रमा के अंशों के आधार पर नामाक्षर का चयन किया जाता है, जो व्यक्ति के संबोधन का पहला अक्षर होता है। धीरे-धीरे यह पद्धति इतनी लोकप्रिय हुई कि समूचा गोचर इसी पर आधारित हो गया ।
यद्यपि वर्तमान में राशि के नामाक्षर पर नाम रखने का प्रचलन कम हो गया है, लेकिन यह सब शहरों में हो रहा है, जहां आमतौर पर जन्म संबंधी आंकड़े उपलब्ध रहते हैं। गांवों में अब भी प्रायः ज्योतिषी द्वारा सुझाए गए नामाक्षर पर ही नाम रखने की परिपाटी है।
विद्वानों का मानना है कि जब जन्म कुंडली उपलब्ध न हो, तो नाम की राशि के आधार पर फलित देखना चाहिए। यहां नाम की राशि से आशय चंद्रमा की राशि से है। चंद्र लग्न का यह महत्त्वपूर्ण उपयोग है।
चंद्र राशि के आधार पर गोचर पद्धति से भविष्य देखने की परंपरा सदियों पुरानी है । यदि आप इस पद्धति पर अधिकार कर लेते हैं, तो बाकी के सभी तरीके आपके लिए गौण हो जाएंगे।
जब उदय लग्न बलहीन हो
एक राशि में 30 अंश होते हैं। बच्चे का जब जन्म होता है, उस समय क्षितिज पर जो राशि उदय हो रही होती है, उसे लग्न कहते हैं। राशि के साथ उसके अंशों का भी महत्त्व है। यदि राशि के उदय को कुछ ही समय हुआ है और अंश तीन या इससे कम है, तो लग्न को विद्वानों ने निर्बल माना है। इसी प्रकार यदि 27 से अधिक अंश बीत चुके हैं, तो भी लग्न अंशों में निर्बल होता है। इस स्थिति में हमें उदय लग्न के स्थान पर चंद्र लग्न से गणना करनी चाहिए।
अंशात्मक निर्बलता के साथ स्थिति से भी लग्न बलहीन या त्रस्त हो सकता है। यह निर्बलता भावों की स्थिति के कारण आती है। जब लग्नेश षष्ठ या अष्टम भाव में हो, तो अशुभ होता है । जिन बच्चों के जन्मांग में लग्नेश षष्ठ या अष्टम में होता है, वे बचपन में कई तरह की बीमारियों का शिकार बनते हैं । यह सब लग्नेश के बलहीन होने पर होता है। इस स्थिति में हमें चंद्र लग्न के आधार पर फल देखना चाहिए ।
जब लग्न में शंका हो
लग्न में शंका के तीन प्रमुख कारण हैं। पहला कारण है जन्म के समय में शंका हो अर्थात् जन्म तारीख, वर्ष आदि का ज्ञान हो, लेकिन घड़ी के समय को औसत लिखा गया हो । यहां चंद्र कुंडली से फलित देखना चाहिए ।
दूसरे कारण का उद्भव तब होता है, जबकि हमारी घड़ी के समय के अनुसार जो समय लिखा है, उस समय दो लग्नों की संधि हो । संधि के लग्नों की आवृत्ति 12 बार होती है। इसके कारण प्रायः उपरोक्त समस्या पैदा हो जाती है । इस स्थिति में भी चंद्र लग्न से भविष्यवाणी करनी चाहिए।
तीसरा कारण है उदय लग्न से फलित का सटीक न बैठना। इसके कई कारण हैं। बेहतर हो कि हम गहराई में न जाते हुए चंद्र लग्न से फल देखें। आप सीधे ही चंद्र लग्न से फलित देखना आरंभ कर दें, तो भी आप सही निर्णय पा सकेंगे ।
उदय अर्थात् वास्तविक लग्न
जैसा कि बताया जा चुका है कि वास्तविक लग्न ही उदय लग्न है। विश्व की सारी ज्योतिष पद्धतियां इसी लग्न पर आधारित हैं। जन्मांग चक्र की सारी गणित उदय लग्न के आधार पर की जाती है। सभी शुभाशुभ योग उदय लग्न पर ही आधारित होते हैं। जन्म कुंडली में जो पहला चक्र बनाया जाता है, वह लग्न कुंडली होती है । आम बोलचाल की भाषा में जिसे जन्मकुंडली कहा जाता है, वह दरअसल उदय लग्न चक्र होता है।
किसी भी स्थिति में उदय लग्न के बलाबल को इंगित करने की आवश्यकता नहीं है। यदा-कदा या अपवादस्वरूप ही दूसरे लग्नों को देखना चाहिए। सूर्य या चंद्र लग्न को जो महत्त्व मिलना चाहिए, उसका वर्णन पहले किया जा चुका है।
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