बुध सम्बंधित अंग और रोग
बुध मुख्यतः वाणी विकार, गुप्त रोग, नपुंसकता और त्वचा संबंधी रोगों का कारण बनते हैं। जब जन्मकुंडली में बुध लग्नेश व रोग भाव के स्वामी के साथ हो तो जातक को पेट संबंधी रोग, भोजन के प्रति अरुचि, अपच, अथवा पित्त रोग देते है।
यदि लग्न भाव में बुध के साथ रोग भाव का स्वामी हो या उसकी दृष्टि लग्न पर हो तो गुप्त रोग होते है।
- मेष राशि में जातक को बुद्धिभ्रम जैसे रोग की आशंका रहती है।
- वृष राशि में बुध के होने से वाणी विकार अथवा स्वर बिगडने के रोग सताते है।
- मिथुन राशि में बुध छाती के रोग अथवा फेफडों के गंभीर रोग दे सकता है।
- कर्क राशि में बुध मानसिक विकार एंव मस्तिष्क संबंधी रोगों का कारण बनता है।
- सूर्य की सिंह राशि में बुध क्षय जैसे छाती के असाध्य रोग देता है।
- कन्या राशि में बुध मन का भय एंव उदर संस्थान संबंधी रोग अथवा आंतों के रोग देता है।
- तुला राशि में बुध पाप प्रभाव में पडने पर नपुंसकता जैसे रोग दे सकता है।
- वृश्चिक राशि में बुध मन की उदासीनता व स्मरण शक्ति की क्षीणता देता है।
- धनु राशि में बुध के प्रभाव से जातक अधिक परिश्रम नहीं कर पाता। जातक का मन किसी भी काम में नहीं लगता।
- मकर राशि में बुध आलस्य देता है। यह जातक को काम चोर बनाता है।
- कुंभ राशि में बुध मस्तिष्क विकार देता है तथ बुद्धि भ्रम उत्पन्न कर सकता है।
- मीन राशि में बुध त्वचा संबंधी विकार के साथ पैरों में रोग तथा पैरों में दाद जैसे रोग प्रदान करता है।
बुध महादशा का फल
यहां एक बार पुनः बुध दशाकाल का फल जानने से पहले जन्मकुंडली के अन्य शुभ-अशुभ योग एंव बुध की स्थिति जान लेना जरूरी रहता है। इसके अलावा बुध के साथ किस ग्रह की युति अथवा किस ग्रह की दृष्टि है? यह जानना भी जरूरी रहता है। शुभ ग्रह, लग्नेश या कारक ग्रह की युति अथवा दृष्टि होने पर निशचित ही बुध के अशुभ प्रभाव में कमी आती है। यह ग्रह जिसके साथ बैठता है, उसी ग्रह के आधार पर फल प्रदान करता है। यह अकेला होने पर शुभ ग्रह की श्रेणी में आता है। इसलिए पूर्ण रूप से पापी अथवा पीडित होने पर इसकी महादशा में तथा इसके साथ जिस ग्रह की अन्तर्दशा चल रही है, उसमें अग्रांकित फल प्राप्त होते है।
बुध जन्मकुंडली में जब तृतीय अथवा एकादश भाव में बैठता है तो अपनी महादशा के दौरान त्वचा विकार, मानसिक समस्या अथवा मस्तिष्क संबंधी रोगों साथ नपुंसकता अथवा अग्नि कष्ट का भय देता है। इसके साथ रोग, यौन रोग, यकृत संबंधी रोग, पित्त विकार, वाणी विकार, शारीरिक एवं मानसिक दुर्बलता भी देता है।
यदि किसी विशेष पापी ग्रह, खासकर मंगल की युति अथवा दृष्टि भी हो तो अग्नि से मृत्यु तक संभव है अथवा शरीर के अन्दर अथवा बाहर किसी अंग की शल्य क्रिया हो सकती है। बुध के साधारण पापी अथवा पीडित होने की स्थिति में शरीर पर फोडे-फुन्सी निकलना तो मामूली बात है।
बुध महादशा अन्तर्गत् अन्य ग्रहों के फल
बुध महादशा के उपरोक्त फल पूर्ण महादशा में कभी भी घटित हो सकते है। यद्यपि अन्य ग्रह की अन्तर्दशा के दौरान निम्न फल प्राप्त होते है। इन फलों का निर्धारण बुध के साथ जिस ग्रह की अन्तर्दशा चल रही है, उसके बलाबल एंव शुभाशुभ देखकर करना चाहिए।
बुध में बुध अन्तर्दशा फल – इस दशाकाल में बुध के अशुभ स्थान पर रहने से ही अशुभ फल प्राप्त होते है। यद्यपि अधिकांशतः यह दशा जातक के लिए सामाजिक, आर्थिक एंव पारिवारिक लाभ प्रदान करने वाली रहती है। यदि बुध द्वितीय अथवा सप्तम् भाव का स्वामी हो, तो जातक के परिवार में किसी की मृत्यु इस दौरान हो सकती है। यदि मारकेश की दशा चल रही हो तो स्वयं की मृत्यु भी संभव है। बुध नीच, पीडित अथवा किसी पापी प्रभाव में हो तो मानसिक क्लेश, त्वचा विकार अथवा व्यवसाय में हानि की संभावना रहती है।
बुध में केतु अन्तर्दशा फल – इस दशा में प्रायः अच्छे फल प्राप्त नहीं होते। बुध किसी शुभ प्रभाव में अथवा शुभ ग्रह से युति हो अथवा लग्नेश से युति हो, तो अवश्य कुछ अच्छे फल मिलते है। इस समय संतान प्राप्ति, शारीरिक सुख, विद्या लाभ, धर्म में रूचि अथवा दुर्घटना के बाद भी हानि न होना जैसे फल मिलते है।
यद्यपि दोनों में से कोई भी पाप प्रभाव में हो अथवा षडाष्टक योग बनाकर स्थित हो अथवा बुध नीच अथवा पाप प्रभाव में हो, तो वाणी विकार, संभोग से अरुचि अथवा नपुंसकता तक दे सकते है।
बुध में शुक्र अन्तर्दशा फल – इस दशा में जातक को अधिकतर सुख ही प्राप्त होते हैं। यदि शुक्र केन्द्र, त्रिकोण अथवा एकादश भाव में स्थित हो या फिर उच्च अथवा स्वक्षेत्री हो, तो व्यक्ति को बड़े से बडे सुख की सहज प्राप्ति होती है। उसे राज्य में सम्मान, धन संग्रहित होना, भौतिक सुख की प्राप्ति अथवा व्यवसाय में लाभ मिलता है।
लेकिन अगर बुध अथवा शुक्र में से कोई भी अस्त, नीच अथवा पापी ग्रह के प्रभाव में हो अथवा किसी दुःस्थान अथवा षडाष्टक योग बनाकर स्थित हो, तो फिर निश्चित ही शारीरिक सुख में कमी के साथ भौतिक सुख की समाप्ति होती है। जीवनसाथी को कष्ट, वीर्य का क्षय अथवा संभोग में अरूचि के साथ नपुंसकता या बांझपन की समस्या पैदा हो सकती है। इन दोनों ग्रहों में से कोई भी मारक भाव का स्वामी हो तथा मारकेश काल चल रहा हो, तो मृत्यु भी संभव है।
बुध में सूर्य अन्तर्दशा फल – इस दशा काल में जातक को शुभ फल ही अधिक प्राप्त होते है। यदि बुध अथवा सूर्य उच्च, मूत्र त्रिकोण, स्व या मित्रक्षेत्री हो, तो जातक को राज्य अथवा व्यवसाय में सम्मान के साथ लाभ, भूमि-भवन लाभ, किसी पुराने असाध्य रोग से मुक्ति मिलती है। जातक के शत्रु परास्त होते है।
यद्यपि इसके विपरीत बुध अथवा सूर्य नीच, किसी दुःस्थान अथवा पापी ग्रह से युत बनाकर अथवा पीडित होकर स्थित हों, तो जातक को हानि उठानी पड़ती है। इससे जातक को राज्यदण्ड, चोरी अथवा किसी अन्य प्रकार से हानि हो सकती है। जातक के शत्रु प्रबल अथवा पिता समान व्यक्ति से हानि अथवा अपमान हो सकता है।
बुध में चन्द्र अन्तर्दशा फल -यह दशा जातक के लिए कुछ कष्टप्रद रहती है। यदि इन दोनों में से कोई भी ग्रह उच्च मूलत्रिकोण, स्व अथवा मित्रक्षेत्री हो अथवा लग्नेश से युत या दृष्ट हो, तो जातक को मातृ पक्ष से वसीयत के माध्यम से लाभ होता है। उसे कन्या संतति की प्राप्ति होती है। कर्म क्षेत्र में उन्नति के साथ मन प्रसन्न रहता है।
यद्यपि इनमें से कोई ग्रह नीच, पाप प्रभाव अथवा दोनों षडाष्टक योग अथवा कोई भी ग्रह मारक भाव का स्वामी हो तथा मारकेश भी लगा हो, तो व्यक्ति को मृत्यु तुल्य कष्ट अथवा मृत्यु की संभावना रहती है।
तदापि इसमें यह देखना जरूरी है कि चन्द्र कभी भी मारक प्रभाव नहीं देता, परंतु शिरोरोग अथवा सिर की पीडा, त्वचा या नेत्र विकार, गले में संक्रमण या अन्य विकार, धन हानि अथवा मानसिक कष्ट अवश्य दे सकते है।
बुध में मंगल अन्तर्दशा फल – जातक के लिए यह दशा प्रायः कष्टकारी रहती है। यदि दोनों ग्रहों में से कोई ग्रह उच्च मूलत्रिकोण, स्वक्षेत्री अथवा योगकारक ग्रह या लग्नेश के प्रभाव में हो, तो कुछ शुभ फल अवश्य मिलते है। इसमें भूमि भवन लाभ, प्रकाशन के व्यवसाय में यश के साथ आर्थिक लाभ तथा साहित्य में रूचि जाग्रत होती है।
यदि कोई ग्रह शत्रु क्षेत्री, नीच अथवा पाप प्रभाव में हो अथवा दोनों षडाष्टक योग बनाये, तो व्यक्ति को अग्नि भय, भवन की हानि, नेत्र कष्ट, परिवार से दूर जाना पडे अथवा रक्त एंव त्वचा संबंधी विकार हो सकते है। यदि महिला जातक हो तो उसे मासिक चक्र में समस्या अथवा योनि या गर्भाशय संबंधी रोगों का सामना करना पड सकता है।
बुध में राहू अन्तर्दशा फल – इस दशा में राहू अगर 3, 6, 11 अथवा 10 वें भाव में अथवा दोनों में से कोई भी ग्रह उच्च, शुभ प्रभाव में हो, तो निश्चित ही जातक को राज्य सम्मान, थोडा बहुत धन लाभ, व्यापार में बढोत्तरी होती है।
लेकिन यदि कोई ग्रह नीच, शत्रु क्षेत्री, पाप प्रभाव अथवा षडाष्टक योग निर्मित करके स्थित हो, तो प्रतिकूल फल के रूप में व्यक्ति को शिरोरोग अथवा सिर में पीड़ा से शरीर कमजोर, अचानक हानि, जेलयात्रा, अग्निभय, सम्मान की क्षति अथवा पद मुक्ति जैसे अशुभ फल प्राप्त हो सकते है।
बुध में गुरू अन्तर्दशा फल – इस दशा में जातक को प्रायः शुभ फल ही प्राप्त होते हैं। इसमें भी यदि कोई भी ग्रह उच्च, मूलत्रिकोण, लग्नेश अथवा शुभ ग्रह से दृष्ट अथवा युत है, तो शुभ फल में वृद्धि होती है। समाज में मान-प्रतिष्ठा मिलती है, परिवार में मांगलिक कार्य, तंत्र सिद्धि, धर्म में रूचि जैसे फल प्राप्त होते है।
लेकिन दोनों में से कोई भी ग्रह नीच, पाप अथवा शत्रु प्रभाव में हो अथवा षडाष्टक योग में पड़े, तो जातक को माता अथवा मातृ पक्ष में मृत्यु, धन हानि, परिवार में क्लेश, धर्म में अरूचि जैसे फल मिलते है। यहां पर महिला जातक को पति के कष्ट रूप में अशुभ फल की प्राप्ति होती है।
बुध में शनि अन्तर्दशा फल – इस दशा में कोई भी ग्रह यदि उच्च मूलत्रिकोण अथवा शुभ ग्रह के प्रभाव में हो, तो व्यक्ति को राज्य सम्मान, आर्थिक लाभ अथवा नौकरी जैसे फल प्राप्त होते है।
यद्यपि बुध अथवा शनि नीच, अस्त, पाप ग्रह के प्रभाव अथवा षडाष्टक योग निर्मित करें, तो अशुभ फल अधिक मिलते है। नीच वर्ग से अपमान, प्रत्येक क्षेत्र में असफलता, परिवार से दूर जाना पडे तथा वात एंव कफ संबंधी विकार जैसे रोग सताते है।
इस योग में शनि यदि मारक भाव अर्थात् द्वितीय अथवा सप्तम् भाव का स्वामी होकर द्वितीय अथवा तृतीय भाव में स्थित हो, तो जातक की मृत्यु तक की संभावना रहती है।
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