कुंडली उदर रोग देखने के सूत्र
वर्तमान में उदर (पेट) संबन्धी व्याधियां एक नई समस्या बन गयी है। अस्सी फीसदी से ज्यादा लोग किसी न किसी प्रकार की उदर संबन्धी व्याधि से ग्रस्त, परेशान देखे जा रहे है। यद्यपि उदर संबंधी व्याधियों में ज्योतिषीय परामर्श, रत्न धारण एंव अन्य उपायों से पर्याप्त लाभ उठाया जा सकता है।
जन्मकुंडली के पंचम भाव, पंचमेश, सिंह राशि और सूर्य को उदर का प्रतिनिधित्व दिया गया है। जबकि छठवां भाव आन्तरिक अंगों का कारक माना गया है।
जन्मकुंडली के पंचम भाव पर किसी अशुभ ग्रह की दृष्टि पडे, कोई अशुभ एंव पापी ग्रह पंचम भाव में अशुभ बनकर बैठा हो, पंचमेश स्वयं भी पाप पीडित होकर स्थित हो, तो जातक को रोगकारक ग्रह की दशाऽर्न्तदशा अथवा गोचर भ्रमण के दौरान निश्चित ही ‘उदर रोग का सामना करना पडता है। यद्यपि इसमें नवांश कुंडली की अशुभता भी निर्णायक बनती है।
चंद्रमा और बृहस्पति पर पापी ग्रहों के प्रभाव में पडने से भी उदर संबन्धी रोगों की समस्याएं प्रायः बनी रहती है। ऐसे लोगों को यकृत संबन्धी रोग बार-बार सताते है। अन्य ग्रहों की अशुभ स्थिति में इन्हें उदर की शल्य चिकित्सा तक करानी पड़ती है।
इसी प्रकार जन्मकुंडली में चंद्रमा जिस राशि में बैठे और वह राशि और षष्ठेश, दोनों पाप ग्रहों के प्रभाव में पड जाएं, साथ ही बृहस्पति के ऊपर भी पाप प्रभाव पड जाएं, या बृहस्पति स्वंय निर्बल बनकर बैठे, तो निश्चित ही जातक को उदर संबन्धी व्याधियों, खासकर पीलिया, रक्ताल्पता जैसे रोगों का सामना करना पडता है। उदर संबंधी व्याधियों से संबन्धित कुछ प्रमुख योग निम्न प्राकर है:-
- पंचम भाव एंव पंचमेश का पाप पीडित होकर बैठना या पापकर्तरी योग में पडना भी उदर संबन्धी व्याधियों की संभावना बढाता है। यदि सूर्य भी निर्बल या पाप प्रभाव में हो, तो जातक को ऑपरेशन तक कराना पड जाता है।
- पंचम भाव में सूर्य और शनि एक साथ युति बनाकर बैठे, पंचम भाव पर अन्य पापी ग्रहों का अशुभ प्रभाव हो, तो भी कष्टकारक उदर व्याधियां जन्म लेती है।
- इसी तरह अगर पंचम भाव में बुध पापी ग्रहों के साथ विराजमान हो जाए, पंचमेश और बुध के ऊपर पापी ग्रहों का अशुभ प्रभाव पडे, तो भी जातक आंत्र संबन्धी रोगों से पीडित रहता है। यहां तक कि उसे सर्जरी तक करानी पड़ती है। रोगी को खूनी बवासीर का सामना करना पड़ता है। रोगी के उदर में रसौली बन सकती है। उसे रक्त स्त्राव का सामना करना पड सकता है।
- यदि जन्मकुंडली के छठवें यॉ आठवें भाव में शनि-मंगल की युति बन जाए और चंद्रमा सिंह राशि में पाप पीडित होकर स्थित हो, तो निश्चित ही उदर संबन्धी व्याधियां, विशेषकर यकृत, पित्ताशय, आमाशय, आंत्र संबन्धी रोग सताते है।
- यदि लग्न भाव में राहु, बुध के साथ और सप्तम् भाव में शनि के साथ मंगल स्थित हो, तो भी व्यक्ति को कई तरह के उदर संस्थान संबंधी रोग सताते है।
उदर रोगों में ज्योतिषीय उपाय
जो लोग उदर संबन्धी व्याधियों से ग्रस्त रहते है। अगर वह लोग सूर्य-चंद्र से संबन्धित दोषरहित एंव श्रेष्ठ क्वलिटी का कंधारी अनार रंग का माणिक्य और गौदांत रंग का उत्तम क्वालिटी एंव उपयुक्त वजन का मोती क्रमशः स्वर्ण एंव चाँदी की अंगूठी में जडवाकर शरीर पर धारण कर लें, साथ ही दशाऽर्न्तदशा अनुसार राहू-केतु, शनि आदि अशुभ ग्रहों से संबन्धित उपाय सम्पन्न कर लें, उनसे संबन्धित वस्तुओं का दान-पुण्य करें, तो निश्चित ही उदर संबन्धी व्याधियों से मुक्ति पा सकते है।
उदर संबंधी रोगों के दौरान शनि से संबन्धित वस्तुओं का दान एंव पूजा-पाठ का भी विशेष महत्व रहता है। इनसे अशुभ ग्रह का प्रभाव शीघ्र शान्त होता है।
अनेक बार उदर संबन्धी व्याधियों के पीछे पितृदोष या कालसर्प दोष भी देखे जाते है। अतः जब किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में उपरोक्त योग विद्यमान हो, तो उनकी शान्ति के लिए भी यथासंभव प्रयास किए जाने चाहिए।
जन्मकुंडली नं. 1
यह ‘उदरशूल’ से ग्रस्त रहे एक ऐसे जातक की जन्मकुंडली है जो बुध महादशा के दौरान कई वर्ष तक अपने उदर शूल से परेशान रहा। एक समय इसे पेट के अल्सर का रोगी भी घोषित किया गया।

इस जन्मकुंडली में
- षष्ठेश मंगल की लग्न भाव पर दृष्टि तथा लग्नेश बुध का षष्ठस्थ होना विषम रोग का कारण बन रहा है।
- चंद्रमा नीचस्थ व पक्षबल में क्षीण होकर लग्नेश एंव षष्ठेश के साथ रोग भाव में अष्टमेश शनि से दृष्ट है।
- जन्म कुंडली में पंचमेश शुक्र अष्टमस्थ होकर केतु से दृष्ट है।
- षष्ठ भाव में सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध की युति तथा शनि एंव राहू की पापी दृष्टियां रोग को अति गंभीर रूप प्रदान कर रही है।
पंचमेश तथा षष्ठेश का दुःस्थान में होना तथा अष्टमेश शनि का व्यय भाव में जाकर बैठना, षष्ठ भाव के साथ-साथ सूर्य, चंद्रमा, मंगल और बुध के ऊपर अपनी दृष्टि डालने से निश्चित ही ‘उदरशूल‘ की पुष्टि हो रही है।
जन्मकुंडली नं. 2
यह एक बालिका की जन्मकुंडली है, जो केवल साढे तीन साल तक ही जीवित रह पायी यह जन्मजात रूप से रोग ग्रस्त थी। यह अपने संक्षिप्त जीवन में जिंदा रहने के लिए संघर्ष करती रही और अन्ततः हार कर मृत्यु की गोद में जा बैठी। इस बालिका के उपचार पर मां-बाप ने लाखों रूपये डॉक्टरी इलाज पर खर्च कर डाले, फिर भी उसका जीवन नहीं बचा पाये। यह बालिका अपने मां-बाप को कर्जदार बना गई।
बालिका के जन्म से ही आहार नाल नहीं थी। अहार नाल पाचन संस्थान का एक मुख्य अंग रहता है। इस बालिका को जन्म के तुरंत बाद ही डॉक्टरी मदद की जरूरत पड गई।

- बालिका की जन्मकुंडली में लग्नेश बृहस्पति अपनी नीच राशि में गुलिक के साथ बैठे है। बृहस्पति चांडाल योग में भी है।
- इस बालिका की जन्मकुंडली में काल पुरूष की चतुर्थ राशि कर्क में केतु, कर्क राशि स्वामी चंद्रमा सूर्य के साथ अस्त होकर एंव शनि से दृष्ट है।
- चतुर्थेश बृहस्पति अपनी नीच राशि में गुलिक के साथ पीडित होकर निश्चित ही चतुर्थ भाव से संबंध अंगों को नष्ट करने का संकेत दे रहे है। चतुर्थ भाव में आहार नाल भी आता है। अतः बालिका में रोग की पुष्टि हो रही है।
बालिका का जन्म गुरू महादशा के दौरान बुध अन्तर्दशा में हुआ और उसी महादशा के दौरान केतु अन्तर्दशा में वह मृत्यु का ग्रास बन गई। बालिका को गंभीर रोग की पुष्टि जन्म के तुरंत बाद ही हो गई। बालिका के पेट में आहार नाल अनुपस्थित थी। अतः बालिका को जन्म से ही नली डालकर फीडिंग करानी पड़ी। साढे तीन साल तक बालिका एक तरह से नली द्वारा ही जीवित रही। बालिका के दो-तीन बार ऑपरेशन भी हुए।
ऑन्त्रपुच्छ शोथ (एपेंन्डीसाइटिस)
ज्योतिष शास्त्र में छठवां भाव आंत्र संस्थान (पेट के आन्तरिक अंग) से संबन्धित माना गया है। इसके साथ कन्या राशि का संबंध भी उदर एंव आंत्र संस्थान के अंदर स्थिति अंगों के साथ स्थापित किया गया है। इसके अलावा बृहस्पति का कारकत्व भी उदर संस्थान और उसमें स्थिति अंगों दिया गया है। सूर्य चन्द्र भी उदर संस्थान के ऊपर अपना विशेष प्रभाव रखते है। इनका भी उदर संस्थान से संबन्धित रोगों के साथ कुछ न कुछ संबंध अवश्य रहता है।
जबकि मंगल और राहू का छठवें भाव, षष्ठेश, कन्या राशि के अतिरिक्त बृहस्पति, सूर्य चंद्र आदि के ऊपर क्रूर, पापी प्रभाव पड़ने से इन रोगों की पीड़ा एंव तीव्रता जटिल बन जाती है।
राहू के प्रभाव से उदर संस्थान संबंधी कई रोग असाध्य बन जाते है, जबकि मंगल के प्रभाव से इनकी पीडा इस हद तक बढ़ जाती है, इतनी गंभीर हो जाती है कि तत्काल ऑपरेशन की नौबत बनने लगती है। कई बार ऐसी स्थिति से अकाल मृत्यु की संभावना भी बन जाती है।
आंत्रपुच्छ शोथ (एपेंन्डीसाइटिस) उदर संस्थान से संबन्धित एक ऐसा रोग है, जिसमें रोगी उदर में अत्यंत तीव्र पीडा अनुभव करता है। इस रोग में तत्काल ऑपरेशन कराने की नौबत बन जाती है।
- सूर्य और चन्द्रमा जब त्रिक भावस्थ हो अथवा त्रिकेश के साथ सूर्य-चंद्र युति बना कर बैठ जाए, तो आंत्रपुच्छ शोथ जैसे गंभीर रोगों की उत्पत्ति होती है। चन्द्र एंव सूर्य जब शनि या राहू द्वारा पीडित होते हैं तब भी ऐसे ही उदर रोग सामने आते है।
- इसी तरह षष्ठ भावेश (रोगेश) स्वयं पाप ग्रहों से पीड़ित हो जाए, कन्या राशि और कन्या राशि स्वामी बुध भी पाप पीडित हो, तो भी ऐसे गंभीर रोग अर्थात् आंत्रपुच्छ शोध की स्थिति बनती है।
- अगर उपरोक्त कारकों के साथ लग्न भाव और लग्नेश भी पाप पीडित या निर्बल बनकर स्थित हो, तो निश्चित ही षष्ठेश, अष्टमेश की दशाऽन्तदशा अथवा गोचर भ्रमण के समय षष्ठेश, शनि, राहू अशुभ राशिगत् हो, तो ऐसे उदर रोगों की शुरूआत होती है।
कई बार इस अवधि में पहले से विद्यमान रोग एकाएक जटिल और उग्र बनने लगते है। अतः उदर संस्थान से संबन्धित ऐसे रोगों के निदान एंव उपाचार पर तत्काल ध्यान देना चाहिए।
जन्मकुंडली नं. 3
यह एक ऐसे व्यक्ति की जन्मकुंडली है जिसे बीस वर्ष की उम्र में अचानक तीव्र ‘उदरशूल’ का शिकार बनना पड़ा। चार महीने तक इसका अलग-अलग जगह इलाज चलता रहा, परंतु इसके रोग का निदान नहीं हो पाया। अन्ततः उसमें ‘आंत्रपुच्छ शोष’ का निदान हुआ। डॉक्टरों ने तत्काल ऑपरेशन द्वारा उसे निकलवाने का परामर्श दिया, जिसे रोगी ने सहज स्वीकार कर लिया। रोगी को उदरशूल से मुक्ति पाने के लिए आंत्रपुच्छ का ऑपरेशन कराना पड़ा।

- इस जन्मकुंडली में बाधापति तथा राहू नियंत्रक शनि अपनी नीच राशि के होकर लग्न में स्थित है। शनि केतु से भी दृष्ट है।
- लग्नेश मंगल और गुरू अष्ठम भाव में है।
- एकादश भाव से राहू का पंचम भाव पर पापी प्रभाव है।
- पंचमेश सूर्य की षष्ठेश बुध से युति तथा शनि से दृष्टि लेकर बैठे है। सूर्य स्व भाव से छठवें स्थान पर है। अतः इन सबसे उदर रोग की पुष्टि हो रही है।
- चंद्रकुंडली में भी पंचम भाव में पंचमेश मंगल की षष्ठेश गुरू से युति उदर रोग की पुष्टि कर रही है।
जातक का शुक्र महादशा अन्तर्गत राहू अन्तरर्दशा एंव शनि प्रयन्तर दशा के दौरान आंत्रपुच्छ शोथ (एपेंन्डीसाइटिस) का ऑपरेशन हुआ, जो सफल रहा।
जन्मकुंडली नं. 4
यह जन्मकुंडली भी आंत्रपुच्छ शोष से पीडित रहे एक रोगी की है। यह रोगी पांच वर्ष तक उदर व्याधि से गंभीर रूप से पीडित रहा। ज्योतिष शास्त्र में छठवें भाव तथा कन्या राशि को उदर संस्थान (आंतों) का प्रतिनिधित्व दिया गया है।
जब षष्ठ भाव अथवा षष्ठेश पाप ग्रहों से पीडित हो जाए, कन्या राशि भी पीडित हो, तो भी उदर संस्थान से संबन्धित गंभीर रोग जन्म लेते हैं। इस संबंध में हम लग्न के महत्व का भी अवमूल्यन नहीं कर सकते।

उपरोक्त जन्मकुंडली में
- मंगल षष्ठ भावस्थ है और केतु द्वारा दृष्ट होकर पीडित है।
- लग्न एंव लग्नेश बुध मंगल तथा शनि द्वारा दृष्ट होकर पीडित है।
- सूर्य, राहु एंव शनि से दृष्ट होकर पीडित है।
- कन्या राशि भी राहु से पाप पीडित है।
अतः निश्चित ही उपर्युक्त विश्लेषण से षष्ठ भाव, सूर्य, लग्न, लग्नेश एंव कन्या राशि पीडित है। इसलिए इस जन्मकुंडली में भी आंत्रपुच्छ शोध (एपेंन्डीसाइटिस) की पुष्टि हो रही है।
जन्मकुंडली नं.5
यह जन्मकुंडली भी उदर पीडा से त्रस्त रहे एक व्यक्ति की है। यह व्यक्ति एक दशक तक अपनी पीडा से परेशान रहा। अन्त में उसमें ‘आंत्रपुच्छ’ की पुष्टि हुई। यद्यपि इस जातक से अपना ऑपरेशन नहीं कराया। यह जातक कई वर्ष तक दर्दशामक दवाओं के साथ आयुर्वेदिक उपचार लेता रहा । अन्ततः उसने ज्योतिष शास्त्र का आसरा लिया। इसे भी ज्योतिष संबंधी कुछ उपाय सम्पन्न कराने के बाद अपनी उदर पीड़ा से मुक्ति मिल गयी।

इस जन्मकुंडली में
- षष्ठ भाव पापकर्तरी योग में विद्यमान है।
- षष्ठेश का योग मंगल से है। अतः षष्ठेश भी पर्याप्त रूप में पीडित है।
- सूर्य भी शनि से दृष्ट होकर पीडित है।
- लग्न शनि एंव राहू से तथा लग्नेश केतु से दृष्ट होकर पीडित है।
- चंद्रमा की युति भी शनि के साथ है तथा वह केतु के पाप प्रभाव में भी है। अतः जन्मकुंडली में चंद्रता पर्याप्त रूप से पीडित है।
अतः उपरोक्त विश्लेषण के आधार पर यही कहा जा सकता है कि जन्मकुंडली में सूर्य, चंद्रमा, लग्न, लग्नेश के साथ-साथ षष्ठ भाव एंव षष्ठेश सभी पर्याप्त रूप में पडित होकर स्थित है। निश्चित ही उदर व्याधि (एपेन्डिसाइटिस) का योग बन रहा है।
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