कुंडली में क्षय रोग देखने के सूत्र

वैसे तो क्षय रोग के रोगाणु शरीर के किसी भी अंग पर अपना प्रभाव डाल सकते हैं, लेकिन फेफड़ों के क्षय रोग के मामले अधिक संख्या में प्रकाश में आते हैं । प्रायः विद्वानों का मत है कि क्षय रोग का विचार कर्क राशि, चंद्रमा और चतुर्थ भाव से करना चाहिए। लेकिन कर्क राशि, चंद्रमा और चतुर्थ से केवल छाती के क्षय रोग का ही विचार करना चाहिए। दूसरे अंगों या हड्डियों में क्षय रोग हो, तो उपरोक्त कारकत्व बदल जाते हैं । जब जन्मांग में कर्क राशि, चंद्रमा और चतुर्थ भाव पाप प्रभावित हो, तो क्षयरोग की उत्पत्ति होती है

जन्मकुंडली विवेचना 1. छाती के क्षय रोग का यह अच्छा उदाहरण है। इस उदाहरण में

  • चतुर्थ भावगत राहु और चंद्रमा है।
  • जन्मांग में राहु की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। यहां राहु क्षय रोग के भाव चतुर्थ, भावेश सूर्य और कारक ग्रह चंद्रमा तीनों को संयुक्त रूप से प्रभावित कर रहा है।
  • चतुर्थेश सूर्य रोग स्थानाधिपति शुक्र से मृत्यु के स्थान अष्टम में युति करता है ।
  • सूर्य धनु राशि के 11 अंश और 58 कला पर है। यह केतु के गंडमूल नक्षत्र ( सतइसा दोष लगने वाला नक्षत्र) में स्थित है, जो कि रोग को उत्पन्न करता है।
  • लग्नेश शुक्र अष्टमस्थ होकर अस्त है, जो कि शरीर की रोग निरोधक क्षमता का नाश करता है।

जातक दीर्घ काल तक क्षय रोग से पीड़ित रहा।

जन्मकुंडली विवेचना 2.

  • चतुर्थ भाव में राहु है और शनि की चतुर्थ पर पूर्ण दसवीं दृष्टि है। शनि यहां पुनः भाव और भावेश को प्रभावित कर रहा है।
  • भावेश बुध की शनि से युति है।
  • चंद्रमा केतु के नक्षत्र में है।
  • फेफड़ों के क्षय रोग के लिए चंद्रमा और शुक्र का प्रभावित होना भी आवश्यक है। शुक्र रोग स्थान में शत्रु राशिगत है और मंगल से दृष्ट है।
  • चतुर्थ पर किसी भी शुभ ग्रह की दृष्टि नहीं है।

इन सभी कारणों से जातक को फेफड़ों में क्षय रोग की उत्पत्ति हुई, लेकिन लग्नेश के सप्तमस्थ होने से जातक वर्तमान में पूर्ण स्वस्थ है।

इन लोगों को स्वास्थ्य लाभ लिए ज्योतिषीय उपचार के रूप में उपयुक्त भार वाला ‘मोती’ के साथ हाथीदाँत, चन्द्रमणि के साथ एक सात मुखी रूद्राक्ष धारण कराने से अतिशीघ्र लाभ मिलता है।

इनके अलावा चतुर्थेश को सबल बनाने के प्रयास भी किये जाते हैं। राहू की अशुभता शान्ति के लिए भी इन्हें राहू संबन्धित वस्तुओं का दान पुण्य भी करना चाहिए।

फेफड़ों के रोग

कुंडली में चतुर्थ भाव तथा कर्क राशि पाप ग्रहों के प्रभाव में हो तथा सूर्य व चंद्र 4-8-12 भाव में हों, तो फेफड़ों की बीमारी का भय रहता है। कुछ अन्य योग इस प्रकार हैं:-

1. कर्क, वृश्चिक, मीन राशि में सूर्य, चंद्र का योग हो तथा चतुर्थेश नीच राशिगत या अस्त हो।

2. चंद्र तथा शुक्र षष्ठेश से युत होकर चतुर्थ में हों।

3. चंद्र जल राशि में हो तथा शुक्र अस्त हो।

4. चंद्र जिस राशि में हो उसका स्वामी तथा सूर्य जिस राशि में हो उसका स्वामी, दोनों का योग जल राशि में हो।

5. लग्न में जल तत्त्व राशि हो तथा सूर्य व चंद्र जल तत्त्व राशि में बैठकर उसे देखें।

6. कर्क लग्न में मंगल हो तथा उस पर शनि की दृष्टि हो।

7. चतुर्थ भाव में कर्क राशि में मंगल के साथ शनि/राहु हो।

8. लग्न जल राशि हो तथा लग्नेश की शनि के साथ युति 6-8-12 भाव में हो।

अस्थमा (दमा)

दमा यानी अस्थमा रोग का संबंध फेंफड़ों के साथ रहता है। अस्थमा के दौरान व्यक्ति के फेंफडों के वायु कोष्ठक और सूक्ष्म श्वसन नलिकाएं शोध युक्त बन जाती है। इससे रोगी को श्वास अन्दर भरने एंव बारह छोड़ने में अवरोध महसूस होने लगता है। इसलिए व्यक्ति को बाहर से श्वास भरने में खासी मशक्कत करनी पडती हैं। इस समय व्यक्ति को अपनी श्वांस घुटने जैसा अहसास होता है। रोगी को ऐसा लगता है जैसे उसका जीवन खतरे में पड़ गया है।

ऐसा देखने में आया है कि मेष लग्न एंव कर्क राशि में राहु, शनि, सूर्य अथवा मंगल में से कोई ग्रह विराजमान हो अथवा व्यक्ति के अष्टम भाव में नीच के चन्द्र, नीच राहु अथवा सूर्य बैठे हो, तो उन लोगों के दमा ग्रस्त होने की सर्वाधिक संभावना रहती है। इसी प्रकार अमावस्या के आसपास जन्म लेने वाले बच्चों में भी अस्थमा रोग की संभावना ज्यादा देखी जाती है।

ज्योतिष शास्त्र में दमा का संबंध चंद्रमा, शनि, बुध आदि ग्रहों के साथ स्थापित किया जाता है।

जब किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली का तृतीय भाव, तृतीयेश, मिथुन राशि और बुध के साथ-साथ लग्न भाव एंव चन्द्रमा के ऊपर पर्याप्त पापी एंव क्रूर ग्रहों के अशुभ प्रभाव पडते हैं, तो उन लोगों को प्रतिकूल ग्रहों की दशाऽन्तर्दशा अथवा गोचर के दौरान दमा संबंधी गंभीर समस्याएं झेलनी पड़ती है। यदि उपरोक्त कारकों के साथ बुध एंव चन्द्रमा के ऊपर भी राहू की युति बन जाए, तो व्यक्ति का दमा और भी गंभीर बन जाता है।

सिंह अथवा धनु लग्न में नीच चन्द्रमा, राहु अथवा शनि के साथ बैठे, धनु लग्न में चतुर्थ भाव में चन्द्रमा, शनि और राहु एक साथ युति बनाकर बैठे, तो भी इन लोगों में अस्थमा की संभावना बढ जाती है।

जन्मकुंडली में बुध नीच या अस्तगत् होकर शनि-केतु साथ अपनी नीच राशि अथवा 3, 4, 8, 12 वें भाव में जाकर बैठ जाए, तो भी अस्थमा रोग की संभावना रहती है।

दरअसल अस्थमा रोग का संबंध चन्द्रमा के साथ गहराई से जुडा है। ज्योतिष शास्त्र में चन्द्रमा को मन, शीतलता, उद्वेग, मधुरता, कफ आदि का कारक माना है। दमा रोग का संबंध भी एक तरह से कफ, शीतलता आदि के साथ ही रहता है। अस्थमा के संबंध में एक बात और देखी गई है। अस्थमा सोमवार एंव बुधवार केन्द्रित तथा अमावस्या के दिन, चन्द्र ग्रहण के आसपास भी अस्थमा के दौरा पड़ने की संभावना एकाएक बढ़ जाती है।

अस्थमा का ज्योतिषीय उपाय

अस्थमा रोग का निदान एंव उसकी चिकित्सा जन्मकुंडली में स्थिति ग्रह-नक्षत्रों के योग का विश्लेषण करके सहज ज्ञात की जा सकती है। अतः समय रहते ज्योतिष संबंधी उपयुक्त उपाय यथा उपयुक्त रत्न पहनना, पूजा-पाठ, मंत्रजप, हवन अनुष्ठान कराने एंव जडी-बूटियों का प्रयोग करने से दमा से निश्चित ही मुक्त पायी जा सकती है।

दमा रोगियों को पन्ना, मोती, लहसुनिया आदि पहनने से भी पर्याप्त आराम मिलता है।

दमा रोग से बचने के लिए चंद्रमा, मंगल और बुध के लिए मूंगा और पन्ना के साथ रक्तमणि एंव अन्य उपयुक्त रत्न धारण करवाये जाते है।

यदि जन्मकुंडली में बुधादि के ऊपर राहु या शनि का प्रबल अशुभ प्रभाव भी बना हो, तो इन्हें चाँदी के लॉकेट में पन्नादि के साथ उपयुक्त वजन का मोती भी धारण करना चाहिए। साथ ही काली रंग की रेशम की डोरी में पाँच मुखी रूद्राक्ष धारण करना चाहिए।

शनि शांति के लिए इन्हें भैरव देव की पूजा-अर्चना करते रहना चाहिए। प्रत्येक रविवार के दिन इन्हें भैरव देव को उड़द से बनी इमरती या पकौडे का प्रसाद चढाना चाहिए और उस प्रसाद को बच्चों के बीच बॉटवा देना चाहिए।

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