पितृदोष और रोग विचार

पितृदोष भी एक ऐसा दोष है कि जिसके जन्म कुंडली में विद्यमान रहने पर जातक और उसक परिवार एंव सगे-संबन्धी सभी नाना प्रकार के दुःख, दर्द, कष्ट और रोगादि भोगने पर मजबूर होना पडता है।

पितृदोष के प्रभाव से स्वयं जातक को ही नहीं, अपितु उसकी संतान और उसके परिवार के अन्य सदस्यों को भी दुःख, संताप एंव विघ्न-बाधाओं का सामना करना पडता है। ऐसे परिवार के सदस्यों के वैवाहिक कार्य एंव संतान प्राप्ति में नाना प्रकार की विघ्न-बाधाएं खड़ी होती है।

यहां तक कि परिवार के अनेक सदस्य जीवन भर के लिए अविवाहित या निःसंतान ही रह जाते है। पितृदोष के कारण ऐसे परिवार जीवन भर निर्धन रहकर कलंकित अपमानित जीवनयापन करने पर विवश होते है।

इन्हें बार-बार झूठे दोषारोपण का सामना करना पडता है, ऐसे दोषारोपण के कारण उन्हें अपनी नौकरी तक से हाथ धोने पड जाते है या फिर जेल यात्रा करने पर मजबूर होना पडता है। ऐसे परिवार या तो निर्धन अभाव ग्रस्त रहते है या फिर धन, दौलत, जमीन, जायदाद होने के बावजूद निर्धन, अभाव ग्रस्त व रोगी बनकर जीवनयापन करते है।

पितृदोष का सबसे गहरा प्रभाव तो परिवार के सदस्यों के गृहस्थ जीवन, पति-पत्नी के परस्पर व्यवहार पर देखा जाता है। पितृदोष का एक अन्य दुष्प्रभाव परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य पर देखा जाता है। ऐसे परिवारों में प्रायः कोई न कोई सदस्य हमेशा बीमारी ही बना रहता है। परिवार का एक सदस्य ठीक होता है, तो तुरंत दूसरा सदस्य बीमार पड जाता है। यहां तक कि इन्हें अकाल मृत्यु का सामना भी करना पडता है।

ऐसे परिवारों में ही अचानक दिल का दौरा पडने (हृदया घात), मस्तिष्कीय आधात एक्सीडेंट कैंसर जैसी व्याधियों डूबने, विषधात आदि का सामना भी अधिक करना पडता है।

अनेक बार तो पितृदोष जन्य ऐसी व्याधियां पीछे लग जाती है, जिनका वर्षों तक निदान संभव नहीं हो पाता। डॉक्टर बार-बार अनेक तरह के टेस्ट्स कराकरा के थकहार जाते है, रोगी को किसी दवा दारू से रत्ती भर भी आराम नहीं मिलता। वर्षों तक उनकी अज्ञात बीमारी पीछा नहीं छोडती और उसके कारण घर-परिवार की आर्थिक, मानसिक स्थितियां बिगडती जाती है।

यद्यपि ऐसे असाध्य और लाइलाज बने रोग पित्तरों के निमित्त विधि-विधान पूर्वक सम्पन्न किए पिंडदान, पितृ तर्पण’ जैसे कर्म के बाद चमत्कारिक ढंग से अदृश्य हो जाते है। क्योंकि ऐसे अधिकांश लाइलाज रोगों के पीछे पितृदोष की ही प्रमुख भूमिका रहती है।

ज्योतिष शास्त्र में पितृदोष के योग

ज्योतिष शास्त्र में पितृदोष के लिए मुख्यतः सूर्य, चंद्र, पंचम भाव, द्वादश भाव, शुक्र, राहू, केतु जैसे ग्रहों की अशुभ स्थिति को कारण माना जाता है। दरअसल जन्मकुंडली के नवम्, पंचम स्थान पूर्व पुण्य कर्मों के जबकि छठवा आठवा और द्वादश स्थान पूर्व अशुभ कर्मों के माने गये हैं। शनि पूर्व कर्मों का फल प्रदान करने वाले मुख्य नियन्ता व कारक माने गये है।

सूर्य से पिता के पूर्व कर्मों का, चंद्रमा से माता के पूर्व कर्मों कां, राहू से परिवार के पूर्व कर्मों का शुक्र से पत्नी एंव गुरू से संतान, बुध से संगति के पूर्व कर्मों का संबंध माना गया है। अतः जन्मकुंडली में इन ग्रहों की विशिष्ट योग या युति से पितृदोष का पता चलता है।

जन्मकुंडली में सूर्य, चंद्र के ऊपर राहू, शनि का अशुभ पडना, सूर्य का नीच राशि में स्थित रहना आदि पितृदोष के योग माने गये है।

पितृदोष शान्ति के उपाय

ज्योतिष शास्त्र और कर्मकाण्ड संबन्धी विविध ग्रंथों में पितृदोष निवारण हेतु अनेक उपायों का विस्तारपूर्वक वर्णन हुआ है। इन उपायों को विधिवत् सम्पन्न कराने से निश्चित ही व्यक्ति व उसका परिवार पितृदोष संबन्धी कष्टों से मुक्ति पा लेता है। शास्त्रमत् में नारायण बली, नागबली, त्रिपिण्डी श्राद्ध, पितृतीर्थ जाकर पित्तरों को पिंडदान, तर्पण, गऊ-ब्राह्मण को दान-दक्षिणा सहित भोजना कराना, कन्जका पूजन करना जैसे उपाय पितृ पूजन एंव पितृयज्ञ के निमित्त सम्पन्न कराये जाते है।

पितृदोष निवारण के लिए अन्य उपायों के साथ-साथ दिवंगत आत्मीयजनों का श्राद्ध कर्म सम्पन्न करना भी एक अनिवार्य विधान माना गया है। श्राद्ध कर्म के रूप में पितृ पूजन, पितृ तर्पण, ब्राह्मण भोजन, कुलीन ब्राह्मण को वस्त्र, फल, अनाज आदि को दान-दक्षिण देकर उनका आर्शीवाद लेने से पितृ संतुष्ट होते है और अपने कुलजनों को आर्शीवाद स्वरूप विभिन्न भोग एंव ऐर्श्वय पूर्ण जीवनयापन में मदद करते है।

पितृदोष निवारणार्थ कुछ अन्य प्रमुख उपाय

  • श्राद्धपक्ष के दौरान प्रतिदिन पंद्रह दिन तक ‘सर्प सूक्त’ का पाठ करते हुए तर्पण देना।
  • किसी योग्य विद्वान ब्राह्मण, आचार्य से महामृत्युंजय मंत्र का सवा लाख जप व अनुष्ठान सम्पन्न कराना।
  • कच्चा नारियल बहते पानी में प्रवाहित करना। बहते पानी में मसूर की दाल डालनी चाहिए।
  • प्रत्येक पुष्य नक्षत्र को महादेव पर जल एवं दुग्ध चढाते रूद्र का जप एवं अभिषेक करना चाहिए।
  • नित्य या अमावस के दिन कुलदेवता की पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
  • पित्तरों की प्रसन्नता हेतु श्राद्ध पक्ष में किसी मन्दिर परिसर अथवा उद्यान इत्यादि में पीपल वृक्ष का एक पौधा रोपना या पित्तरों की स्मृति तिथि पर कुआ, बावडी या पंप लगवाना रोपित वृक्ष को नियमित रूप से जल से सींचे तथा वहीं बैठकर ‘ॐ नमो भगवते वासु देवाय’ मंत्र की एक माला का जाप करें। मंत्र जाप के पश्चात् हाथ जोडकर पीपल में स्थित देवताओं से अपने पूर्वजों की सद्गति की प्रार्थना करें।
  • नित्य पीपल को सींचतने, विष्णु मंत्र जाप करने तथा जानवरों से पौधे की सुरक्षा करने से निश्चित ही पित्तरों एंव अन्य देवी-देवता प्रसन्न होते है।
  • यदि वैवाहिक जीवन में बाधा आ रही हो तो पत्नि के साथ सात शुक्रवार नियमित रूप से किसी देवी मन्दिर में सात परिक्रमा लगाकर पान के पत्ते में मक्खन और मिश्री रखकर प्रसाद चढायें। पति-पत्नि एक-एक सफेद फूल अथवा सफेद फूलों की माला देवी माँ के चरणों में अर्पित करें।

कालसर्प दोष जन्य रोग

पितृदोष की तरह जन्मकुंडली में कालसर्प दोष विद्यमान रहे तो भी नाना प्रकार की विघ्न-बाधाएं एंव कष्ट, दुःख, दुर्भाग्य से लेकर संतान कष्ट, असाध्य रोगों तक का सामना करना पड़ता है।

जिन लोगों की जन्म कुंडलियों में कालसर्प योग विद्यमान रहता है उन लोगों के जीवन में दाम्पत्य का सूत्र भी बाधित होता है। हमारे विचार में ‘सुखद दाम्पत्य’ जीवन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग है।

यदि किसी व्यक्ति जीवन में सब कुछ हो, परंतु वह दाम्पत्य सुख से वंचित हो, पत्नी से प्रतिदिन कलह रहती हो, विचारों में असहनीय मतभेद हो, एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप के कारण वैवाहिक जीवन टूटने के कगार पर पहुंच गया हो, उन्हें शीघ्र ही अपने कालसर्प योग से मुक्ति के प्रयास करने चाहिए।

जिन जन्म कुंडलियों में कालसर्प योग विद्यमान रहता है उन्हें बार-बार शारीरिक कष्ट भी सहने पड़ते है। विशेष रूप से यदि अष्टम भाव में राहू तथा द्वितीय भाव में केतु हो अथवा राहू षष्ठ भाव में तथा केतु द्वादश भाव में एंव अन्य समस्त ग्रह राहू और केतु की धुरी मध्य स्थित हो।

कालसर्प योग के कारण शारीरिक कष्ट के साथ रोग भी बार-बार सताते रहते हैं। निरंतर चिकित्सा लेने के उपरांत भी व्याधियां पीछा नहीं छोडती। कभी चोट, कभी दुर्घटना, तो कभी ऐसी व्याधि जिसका कारण तक ज्ञात न हो पाए, तो कभी असाध्य रोग शरीर की समस्त शान्ति, उत्साह और उल्लास का पतन कर डालते है।

किसी विधवा स्त्री को स्वप्न में देखना अथवा किसी स्त्री की गोद में मृत बालक देखना भी कालसर्प योग के लक्षण माने गये हैं। जब इस प्रकार की बाधाएं, दुःस्वप्न, व्याधि, दारिद्रता, दाम्पत्य विघटन तथा आर्थिक और व्यावसायिक विसंगतियां जीवन के सुख को ग्रहण लगा दें तो जीवन का उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है।

राहू के प्रभाव से जातक को मुख्यतः उन्माद, फोडे-फुन्सी, त्वचा संबंधी रोग, मस्तिष्क विकार, हिस्टीरिया, भूत-प्रेत बाधा, मन का भय, अचानक बेहोश होना, अपस्मार, रक्त विकार जैसे अनेक रोगों की संभावना रहती है।

इनके अतिरिक्त मेरे अनुभव में आया है कि व्यक्ति को जो भी अचानक रोग होते हैं, जैसे अपघात, हृदयाघात, मस्तिष्कीय आघात, सडक दुर्घटनाएं, विषपान आदि उनमें निश्चित ही राहू का अप्रत्यक्ष प्रभाव रहता है। राहू जनित यह रोग दीर्घ अवधि तक चलते है।

कालसर्प योग की शान्ति के उपाय

कालसर्प योग शान्ति के लिए निम्न उपाय सम्पन्न कराये जाते है:-

  • इन्हें कालसर्प योग ‘यंत्र’ की प्राण प्रतिष्ठा करवाकर उसकी स्थापना करवानी चाहिए एंव उसका नित्य पूजन करना चाहिए।
  • नित्य प्रातःकाल पक्षियों को जौ के दाने खिलाने चाहिए।
  • प्रतिदिन ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र की कम से कम एक माला जप करनी चाहिए। नाग पंचमी का व्रत रखना चाहिए और उस दिन नाग प्रतिमा की अंगूठी बनवाकर पहननी चाहिए।
  • राहु एवं केतु के नित्य 108 बार मंत्र जप से यह योग शिथिल पडता हैं। राहु माता सरस्वती एवं केतु श्री गणेश की पूजा से भी प्रसन्न होते हैं।
  • हर पुष्य नक्षत्र को महादेव पर जल एवं दुग्ध चढाएं तथा रुद्र का जप एवं अभिषेक करें।
  • राहु-केतु की वस्तुओं का दान करें। राहु का रत्न गोमेद पहनें।
  • शिव लिंग पर तांबे का सर्प अनुष्ठानपूर्वक चढ़ाएं। पारद का शिवलिंग प्राण प्रतिष्ठित पूर्वक अपने घर स्थापित करायें।
  • एक साल तक गेहूँ या उड़द के आटे की सर्प मूर्ति बनाकर पूजन के बाद नदी में छोड़ते रहे और तत्पश्चात नाग बलि कराने से कालसर्प योग शान्त होता हैं।
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