हृदय रोगों के अनेक प्रकार देखने में आते है। इन सबके पीछे अलग-अलग तरह के कारण रहते हैं। जैसे कुछ लोगों का हृदय रक्त आपूर्ति में बाधा आने के कारण कमजोर पड़ने लगता है तो कुछ लोगों में रक्त नलिकाओं के अवरुद्ध होने पर हृदय अपना काम एकाएक बंद कर देता (हृदयाघात) है। अनेक बार हमारा हृदय किसी वाल्व की खराबी के कारण अपना काम ठीक से नही कर पाता। जबकि कुछ रोगियों में रक्तचाप के निरंतर बढे रहने के कारण हृदय विफलता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

यद्यपि हृदय से संबन्धित रोगियों में एक बात अवश्य देखी जाती है कि ऐसे अधिकांश रोगियों की जन्म कुंडलियों में ग्रह-नक्षत्रों की कुछ खास स्थितियां उपस्थित रहती है। साथ ही तत्संबन्धी ज्योतषीय उपाय करने से उन्हें यथाशीघ्र एंव अप्रत्याशित लाभ भी मिलते देखा जाता है।

कुंडली में हृदय रोग देखने के सूत्र

सूर्य हृदय का कारक है। चतुर्थ भाव से इसका विचार किया जाता है। षष्ठ स्थान रोग स्थान है। अतः सूर्य तथा चतुर्थ भाव पाप ग्रहों से युत, दृष्ट पीड़ित हों तो हृदय रोग हो सकता है। पंचम भाव से भी हृदय का विचार किया जाता है। हृदय रोग के निम्न योग हैं:-

1. षष्ठेश सूर्य पाप से युक्त चतुर्थ में बैठा हो।

2. चतुर्थ व पंचम भाव में पाप ग्रह हों या इन पर पाप प्रभाव हो।

3. पंचमेश तथा द्वादशेश एक साथ छठे, आठवें या बारहवें भाव में हों।

4. चतुर्थ भाव में सूर्य, शनि, गुरु तीनों स्थित हों।

5. सप्तम या चतुर्थ भाव में मंगल, गुरु एवं शनि एक साथ हों।

6. पंचमेश तथा सप्तमेश दोनों षष्ठ भाव में हों तथा पंचम या सप्तम में पाप ग्रह स्थित हो।

7. तृतीय, चतुर्थ व पंचम इन तीनों भावों में पाप ग्रह हों।

8. मंगल, गुरु एवं शनि तीनों चतुर्थ में हों, तो हृदय रोग होता है।

जन्मकुंडली विवेचना – यह हृदय रोग से पीडित रहे एक व्यक्ति की जन्मकुंडली है। यह जातक पंद्रह से अधिक वर्ष तक हृदय रोग से पीडित रहा। एक समय इसे बाईपास सर्जरी कराने का परामर्श भी दिया गया, परंतु जातक इसके लिए तैयार नहीं हुआ। फिर भी ज्योतिष संबंधी कुछ उपाय अपनाने से इसे पर्याप्त आराम मिला। जातक की मृत्यु एक सडक दुर्घटना के दौरान हुई।

इस जन्मकुंडली के लग्न भाव में केतु बैठे है। लग्न भाव के ऊपर राहू की अशुभ दृष्टि है। जबकि लग्नेश बृहस्पति द्वितीय भाव में शनि की अशुभ दृष्टि लेकर बैठे हैं। शनि में व्ययेश मंगल का प्रभाव भी समाहित है।

चतुर्थ भाव, अष्टमेश चंद्रमा तथा व्ययेश मंगल के कारण पाप मध्यस्व में है। चतुर्थेश बृहस्पति पर व्यय स्थान से शनि (व्ययेश से दृष्ट भी) की अशुभ दृष्टि है। अतः जन्म कुंडली का चतुर्थ भाव पर्याप्त रूप में पीडित है।

पंचम भाव में पंचमेश मंगल स्वगृही बनकर बैठे है तथा षष्ठ भाव बाधापति बुध से दृष्ट है। केतु की दृष्टि पंचम भाव को पर्याप्त अशुभता प्रदान कर रही है। मंगल अष्टम भाव, बाधकेश बुध तथा शनि को देखने के कारण अशुभ बन गये है।

जन्मकुंडली में व्यय भाव में स्थित सूर्य की षष्ठेश शुक्र तथा शनि से युति बनी है। अष्टमेश चंद्रमा पर राहू की अत्यंत अशुभ दृष्टि है। मंगल पर बाधापति बुध तथा लग्नस्थ केतु की दृष्टि अशुभता प्रदान कर रही है।

इस प्रकार मंगल-शनि के परस्पर संबंध से रक्त संबंधी विकार की संभावना स्पष्ट हो रही है। यदि इस योग में कर्क राशि या चंद्रमा भी सम्मिलित हो जाए, तो हृदय रोग की स्पष्ट रूप में पुटि होती है। यहां पंचमस्थ मंगल, अष्टम भाव में कर्क राशि तथा व्यय भाव में लग्नेश नियंत्रक, शनि पर पाप प्रभाव डाल रहा है। शनि स्वयं भी षष्ठ स्थान तथा चंद्र दृष्ट सिंह राशि को देख रहे है। अतः निश्चित ही जातक के हृदय रोग से पीडित रहने की ग्रह स्थिति बन रही है।

हृदय रोगों के उपाय

हृदय रोग से पीडित रोगियों के लिए ज्योतिष संबन्धी निम्न उपाय निश्चित ही लाभप्रद सिद्ध होते है:-

1. हृदय संबंधी रोगियों को हृदय रोग से मुक्ति पाने के लिए सबसे पहले उत्तम क्वालिटी और दोषरहित सूर्य रत्न या उसका उपरत्न उपयुक्त धातु में जडवाकर अपनी अंगुली में धारण करना चाहिए।

2. इसके साथ ही उन्हें उत्तम क्वालिटी का एक मोती के साथ तीन या एक पंचमुखी रूद्राक्ष भी अपने शरीर पर धारण करना चाहिए।

3. इसके अलावा इन्हें राहू-शनि के लिए त्रिधातु अर्थात् तांबा, लौहा और कांसा के उपयुक्त अनुपात से बना कड़ा भी शनिवार के दिन अपने हाथ में पहनना चाहिए।

4. रोग अति गंभीर हो तो चतुर्थेश का रत्न भी धारण करना उपयुक्त रहता है।

5. यदि रोगी मोटापे का भी शिकार है, तो उसे उत्तम क्वालिटी का सरसों पुष्पी रंग का पुखराज भी धारण करके रखना चाहिए। इससे मोटापे में लाभ मिलता है।

मेरे निजी अनुभवों में ऐसा आया है कि रोगी को उपयुक्त रत्न धारण कराने के साथ, उसके लिए जो ग्रह रोग कारक बना है या कष्टकारी सिद्ध हो रहा है, उस ग्रह से संबन्धित वस्तुएं भी दान करानी चाहिए एंव अन्य उपायों की भी मदद लेनी चाहिए।

पुराने जमाने में हृदय रोगों से सुरक्षित रहने या हृदय रोगों से मुक्ति पाने के लिए सम्पन्न वर्ग के लोग प्रायः मोती भस्म, मुक्ता पिष्टी, माणिक्य भस्म आदि का प्रयोग करते थे। आज भी यह भस्में अपनी चमत्कारिक प्रभाव प्रदान करती देखी गई है। इन उपायों से हृदय रोग से पीडित एंव लंबे समय तक बिस्तर पर पड़े रोगियों को सामान्य जिन्दगी जीते देखा गया है।

हृदय रोग के दौरान जब शरीर में शक्ति और गर्मी की कमी से रोगी का दिल कमजोर हो जाये, रोगी का चेहरा पीला पड़ा हो, रोगी लो ब्लड प्रेशर, हृदय की कमजोरी, रक्ताल्पता से बेहोश में जाने लगे, तो उसे सोने की अंगूठी में उपयुक्त वजन का कंधारी अनार रंगी माणिक्य पहनाने से शक्ति एंव गर्मी मिलती है। इससे दिल, शरीर और मस्तिष्क संबंधी कमजोरियां तुरंत दूर होने लगती है।

माणिक्य सूर्य की शक्तिदायक किरणों का भंडार है। इससे रोगी में शक्ति और गरमी पैदा होकर उपरोक्त रोग और गर्मी की कमी से उत्पन्न रोग दूर हो जाते हैं।


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