कुंडली में गुर्दा रोग देखने के सूत्र

वर्तमान में गुर्दा रोग से पीडित रोगियों की संख्या निरंतर बढ रही है। गुर्दा संबंधी रोग के पीछे कई तरह के कारण देखे जाते है। इनमें डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, मादक द्रव्यों का सेवन, शराब व रासायन आधारित दवाओं का लगातार सेवन करना, कीटनाशक दवाओं के सम्पर्क में आना आदि कुछ प्रमुख कारण है। इनके अलावा पूर्व जीवन के संचित कर्म भी गुर्दों संबंधी रोगों का प्रमुख कारण बनते है।

हमारे देश में प्रतिवर्ष चार से पाँच लाख लोगों की गुर्दों की विफलता के कारण मौत का सामना करना पडता है, तो दूसरी तरफ करोड लोग मूत्र मार्ग या गुर्दे में पथरी की समस्या से परेशान होते है।

ज्योतिषीय दृष्टि में गुर्दा रोग और पथरी बनने के पीछे कई ग्रहों की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। ज्योतिषीय दृष्टि में जिन लोगों की जन्मकुंडली के लग्न या सप्तम् भाव में कोई अशुभ पापी ग्रह नीच बनकर बैठता है, तो उन्हें गुर्दा संबंधी रोग या गुर्दे की पथरी की समस्या का सामना करना पड़ता है।

इसी प्रकार जब कर्क राशि में शनि तथा मकर राशि में तीन या तीन से अधिक अशुभ ग्रह एक साथ बैठते हैं, तो भी ऐसी विषम स्थितियां निर्मित होने लगती है। जन्मकुंडली में सूर्य अपनी नीच राशि में बैठ जाएं, तो भी उन लोगों में पथरी बनने की आशंका कई गुना बढ जाती है।

जन्मकुंडली विवेचना

यह जन्मकुंडली भी गुर्दों की विफलता (किडनी फेल्योर) से ग्रस्त स्त्री की है। यह स्त्री डायलिसिस के सहारे कई वर्ष तक जिंदा रही। यह जातिका मधुमेह रोग से भी ग्रस्त थी। जातिका डायलिसिस के सहारे पिछले पंद्रह से अधिक वर्ष से जिंदा है। जातिका को शनि महादशा अन्तर्गत चंद्र अन्तर्दशा के दौरान ही मधुमेह और फिर गुर्दो रोग का निदान हुआ।

जन्मकुंडली में

  • लग्नेश बुध द्वादश भाव में व्ययेश के साथ स्थित है।
  • लग्नेश बुध पर अष्टमेश एंव तृतीयेश मंगल, केतु गुलिक की दृष्टि भी है।
  • इस जन्मकुंडली में काल पुरूष की छठवीं राशि कन्या पाप मध्यस्थ में है। राशि स्वामी बुध भी पर्याप्त रूप से पीडित है।
  • षष्ठेश शनि पर अष्टमेश मंगल का प्रभाव है।

गुर्दा रोग में ज्योतिषीय उपाय

गुर्दा रोग से पीड़ित रोगियों या पथरी रोग से ग्रसित लोगों के लिए पीतांबरी नीलम, लाल इटैलियन मूंगा, मून स्टोन, सरसों पुष्पी पुखराज में से जन्मपत्री की ग्रह स्थिति के अनुसार उपयुक्त रत्न धारण करने से अतिशीघ्र लाभ मिलता है।

अगर इन्हें अन्य उपायों के साथ चाँदी की शुद्ध अंगूठी में ‘किडनी स्टोन’ जड़वाकर धारण करवा दिया जाए, साथ ही मोती भस्म या प्रवाल पिष्टी का कुछ दिनों तक मलाई के साथ सेवन कराया जाए, तो उन्हें उपरोक्त व्याधियों में अप्रत्यासित लाभ मिलता है।

उपरोक्त उपचार से छः महीने के बाद ऐसे आधे से अधिक रोगियों को न तो किसी ऑपरेशन कराने की आवश्यकता पड़ती है और न ही किसी अन्य उपचार की। इतना ही नहीं, इस उपचार से उनके गुर्दा या मूत्र संस्थान में पुनः पथरी बनने की संभावना भी नहीं रहती। उनके गुर्दे पुनः अपना सामान्य काम करने लगते है। डायलिसिस जैसे उपचार की भी इन्हें मदद नहीं लेनी पडती।

कमर दर्द

कमर दर्द की पीडा भी आज के समय एक सामान्य समस्या बन गई है। कमर की पीडा के कारण व्यक्ति वे-बजह एंव असमय ही चलने-फिरने, उठने-बैठने में मुश्किल अनुभव करने लगता है। कमर दर्द का प्रभाव एक तरह से व्यक्ति के पूर्ण व्यक्तित्व के ऊपर ही पडता है।

ज्योतिष शास्त्र में कमर दर्द का संबन्ध स्नायु तन्त्रिकाओं के साथ जोड़ते हुए शनि ग्रह के साथ स्थापित किया गया है। अतः जिस व्यक्ति की जन्मकुंडली में शनि पीडित या पाप ग्रस्त होकर बैठते हैं, उन लोगों को कमर और शरीर के निचले हिस्से से संबन्धित अंगों, विशेषकर पैर, पिंडलियों, टखनों, पंजों के रोग सताते हैं।

शनि के अतिरिक्त कन्या राशि का संबन्ध भी कमर एंव निचले हिस्से से जोडा गया है। अतः जिस जन्मकुंडली में शनि के साथ कन्या राशि के ऊपर भी पर्याप्त पाप प्रभाव रहता है, कन्या राशि में चन्द्र-शनि युति बनाकर एंव पीडित होकर बैठते है, तो निश्चित ही उन लोगों को प्रतिकूल ग्रह की दशा ऽन्तर्दशा या गोचर के अनुसार कमर दर्द के साथ पैरों की पीडा का सामना करना पडता है।

कमर दर्द का ज्योतिषीय उपाय

कमर दर्द से मुक्ति पाने के लिए इन लोगों को शनि के पाप ग्रस्त रहने पर लौह धातु से बना कडा (कड़ा यदि घोड़े की नाल या नाव की कील से बना हो तो अति उत्तम) धारण करने के साथ, सूर्य रत्न माणिक्य अथवा मंगल रत्न मूंगा भी अंगूठी में जडवाकर धारण करना चाहिए।

यदि जन्मकुंडली में शनि पीडित है, तो उन्हें लौह के कड़े के साथ शनि रत्न नीलम भी धारण करना चाहिए। कन्या राशि के पीडित रहने पर बुध का रत्न ‘पन्ना’ धारण करना इनके लिए अनुकल रहता है। अनुभव में आया है कि इन लोगों को शानि रत्न नीलम के साथ गोमेद धारण करवाने से तत्काल आराम मिलता है।

ज्योतिष शास्त्र में पक्षाघात (लकवा)

शरीर का आशिंक या पूरी तरह से पक्षाघात ग्रस्त होने से व्यक्ति की जिंदगी एकाएक नर्क बनकर रह जाती है। इसमें व्यक्ति जिंदा तो रहता है, लेकिन स्नायु तन्त्रिका के क्षतिगस्त हो जाने से उसके संपूर्ण शरीर या शरीर के कुछ अंग यथा हाथ-पैर, आँख, गला आदि पर पक्षाघात का बुरा असर पड़ता है एंव वह अंग एक तरह से बेकार हो जाते है। फलतः व्यक्ति को अपंगता का जीवन जीने पर विवश होना पडता है।

ज्योतिष शास्त्र में पक्षाघात नामक इस रोग का संबन्ध भी स्नायु संस्थान के साथ स्थापित करते हुए शनि और बुध जैसे ग्रहों के साथ स्थापित किया गया है।

अतः जब किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में बुध निर्बल, नीच या पाप पीडित होकर बैठते हैं, शनि भी पाप पीडित रहते है और किसी राशि पर शनि-राहू, सूर्य, केतु का प्रबल पापी प्रभाव पडता है, तो प्रतिकूल ग्रह की दशाऽन्तर्दशा या गोचर के अनुसार शरीर का अंग विशेष या सारे शरीर ही बेकार होते जाते हैं।

जन्मकुंडली विवेचना

यह अपंगता के शिकार रहे व्यक्ति की जन्मकुंडली है। यह व्यक्ति बचपन में ही अपंगता का शिकार बन गया और आज भी अपंगता का जीवन जी रहा है। आज से तीस-चालीस वर्ष पहले ऐसे गंभीर रोग का कोई इलाज संभव नहीं था। अतः जातक ने स्वंय को विवशता के भरोसे ही छोड़ दिया था।

इस जातक को युवावस्था में शनि का प्रकोप सहना पड़ा। जातक वात रोग के कारण बचपन से चलने-फिरने में लाचार हो गया। गोचर में अष्टम शनि रहते यह कष्ट प्रारंभ हुआ। उस समय चिकित्सा भी कराई।   

सात वर्षों की दीर्घकालीन पीडा के बाद जातक चलने-फिरने में समर्थ हो सका। यद्यपि सामान्य व्याधि प्रकोप अब भी कभी-कभार देखने को मिलता है।

इस मेष लग्न की जन्मकुंडली में लग्नेश मंगल सप्तम् भाव में राहू, शुक के साथ शनि की अशुभ दृष्टि लेकर बैठे है। जबकि लग्न भाव में केतु स्थित है। शनि कर्क राशि के बनकर चतुर्थ भाव में बैठकर दशम् भाव के ऊपर अपनी स्वगृही दृष्टि डाल रहे है।

ज्योतिष शास्त्र में दशम् भाव घुटनों का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि शनि स्नायु संस्थान के ऊपर अपना प्रभाव रखते है। शनि विकलांगता के प्रमुख कारक माने गये हैं।

शनि की लग्न भाव पर भी दृष्टि है। लग्न पर राहू की भी अशुभ दृष्टि है। लग्नेश के ऊपर शनि एवं राहू का प्रबल अशुभ प्रभाव है। अतः प्रस्तुत जन्मकुंडली एक विकलांगता पीडित व्यक्ति की सिद्ध होती है। इतना ही नहीं, नवांश कुंडली में भी शनि की राहू एंव मंगल से युति बनी हुई है।

जातक राहू महादशा के दौरान ही विकलांगता का शिकार बना। राहू महादशा अन्तर्गत शनि अन्तर्दशा के दौरान उसे लकवा का दौरा पड़ा। दरअसल जातक पोलियो का शिकार है।

पक्षाघात का ज्योतिषीय उपाय

पक्षाघात के मामले में रोगियों को यथाशीघ्र माणिक्य के साथ मूंगा धारण करना चाहिए। इसके साथ उत्तम क्वालिटी का एक दोषरहित मून स्टोन भी धारण करना चाहिए। इससे रोगियों को यथाशीघ्र लाभ मिलता है। इस रोग का काफी हद तक संबन्ध ‘बुध’ के साथ भी रहता है। अतः इन रोगियों को निरोगी बनाने के लिए बुध की अशुभता दूर करने के लिये बुध संबन्धी कुछ उपाय यथा उससे संबन्धित पूजा-पाठ, मंत्र- अनुष्ठान भी कराने चाहिए। बुध की वस्तुओं का दान-पुण्य भी करना भी उपयुक्त रहता है।

इसके अलावा इन रोगियों के लिए प्रत्येक नवरात्रि के दौरान नौ दिनों तक देवी पूजन, कन्या पूजन एंव कन्याओं को दान-दक्षिणा देकर उनका आर्शीवाद लेना भी उत्तम रहता है। देवी पूजन को बुध पूजा के रूप में ही देखा जाता है।


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