कुंडली में वाणी दोष देखने के सूत्र
द्वितीय स्थान वक्तृत्व शक्ति, भाषण शक्ति का स्थान है और बुध भाषण का कारक ग्रह है। काल पुरूष के इस हिस्से में वृष राशि का वास माना गया है। इसलिए इन योगों में वृष राशि की स्थित पर भी विचार किया जाता है।
जब द्वितीय स्थान तथा वाणी का कारक बुध पाप ग्रहों से युत हो, पाप दृष्ट हो, तो व्यक्ति बोलने में लड़खड़ाता है। उसकी वाणी में कोई त्रुटि होती है।
1. यदि बुध द्वितीय स्थान मे अत्यधिक पाप प्रभाव में हो तो भाषण शक्ति ह्रास योग होता है।
2. द्वितीयेश-षष्ठेश की युति पर शनि की दृष्टि हो तो व्यक्ति गूंगा होगा।
3. बुध तथा षष्ठेश लग्न में हो तो, जातक गूंगा हो।
4. बुध, मकर या कुंभ में हो तथा शनि से दृष्ट हो तो जातक हकलाकर बोलेगा।
5. द्वितीय भाव में चन्द्र-शनि की युति हो, द्वितीय भावस्थ बुध निर्बल हो तथा पाप ग्रह से दृष्ट हो, तो वाणी दोष की संभावना रहती है।
उदाहरण – यह कुण्डली एक बालक की है जो जन्म से ही नही बोल सका। यहाँ वुध द्वितीय स्थान अर्थात् वाणी के स्थान मे स्थित है। दोनो प्रबल पाप मध्यत्व मे स्थित है क्योंकि दोनों के एक ओर तो शनि राहु मंगल का पाप प्रभाव है और दूसरी ओर सूर्य, चन्द्र (सूर्य के समीप होने से पापी) तथा केतु का प्रभाव है । इस प्रकार तीन पापी प्रभावो से पाप मध्यत्व बना है। अतः बुध तथा द्वितीय भाव अत्यन्त निर्बल है। फल स्वरूप वाणि-शक्ति का अभाव हो गया है।

पंचम भाव भी वाक्-स्थान कहलाता है उस पर भी राहु तथा शनि का प्रभाव राहु की पंचम दृष्टि द्वारा पड रहा है । पचमाधिपति तथा वागीश गुरु पर भी वही शनि का प्रभाव केतु की दृष्टि द्वारा पड रहा है।
इस प्रकार द्वितीय भाव, उस का स्वामी, पंचम भाव उसका स्वामी बुध तथा गुरु सभी भाषण शक्ति के द्योतक अंग (Factors) ह्रासात्मक प्रभाव मे पाये गये जिससे जन्मजात भाषण शक्ति का अभाव सिद्ध हुआ।
ज्योतिष शास्त्र में कर्ण संबंधी रोग
तृतीय एंव एकादश भाव का संबंध कान के माना गया है। गुरू को कर्ण रोग का कारक कहा गया है। निम्न ग्रह स्थितियां कर्ण रोग का कारण बनती है:-
- यदि तृतीय एंव एकादश भाव गुरू, शनि तथा मंगल से युक्त अथवा दृष्ट हो तो कर्ण विकार की संभावना रहती हैं।
- तृतीय भाव स्थित पाप ग्रह अथवा तृतीय भाव किसी पाप ग्रह से दृष्ट हो अथवा तृतीय अथवा एकादश भाव स्थित पाप ग्रह पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि न हो अथवा लग्न में तृतीयेश एंव मंगल की युति हो, तो भी जातक को कर्ण रोग होते है।
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