कैंसर में प्रभावशाली उपाय

ज्योतिष शास्त्र में अन्य रोगों के साथ कैंसर जैसी लाइलाज व्याधि का भी विश्लेषण किया जाता है। कैंसर व्याधि का उल्लेखा आयुर्वेद से संबन्धित ग्रंथों में ‘कर्कट रोग’ के रूप में किया गया है। आयुर्वेद मनीषियों ने इसे कर्मज व्याधि के रूप में मान्यता प्रदान की है।

दरअसल, ‘कर्मज’ रोग वह होते है, जिनका संबन्ध व्यक्ति के पूर्व जन्म के पाप कृत्यों के साथ रहता है। पूर्व जन्मों में किए गये पाप कर्मों के फलस्वरूप व्यक्ति अपने वर्तमान जीवन में कैंसर जैसे लाइलाज एंव पीडादायक रोग की यातना झेलने पर मजबूर होता है।

ज्योतिष मर्मज्ञों ने कैंसर जैसे कर्मज व्याधि और पितृदोष या पितृश्राप जैसे पीडादायक रोगों का संबन्ध मुख्यतः राहू, और केतू जैसे पृथक्ताकारी ग्रहों के साथ स्थापित किया है। इन छाया ग्रहों को ही कर्म नियन्ता ग्रह माना गया है। राहू-केतू नामक यह छाया ग्रह सूर्य (पितृ एंव आत्मबल, वृद्धिकारक, पुरुषार्थ कारक ) और चन्द्र ( मन, मनोबल, भावना, सुख आदि के कारक) जैसे प्रबल ग्रहों को पीडित करके व्यक्ति को ऐसे दुसाध्य रोग से पीडित रखते हैं।

इसलिए कैंसर जैसी व्याधि से पीडित व्यक्ति में इस रोग की संभावना या उसके निदान आदि के लिए सर्वप्रथम उसकी जन्मकुंडली में राहू-केतू की स्थिति के साथ-साथ राहू-केतू से विस्थापित ग्रहों की स्थिति का अध्ययन अवश्य करना चाहिए।

ज्योतिष और धर्म ग्रंथों में कर्मज रोगों से बचने या उनसे निवृत्ति के लिए अनेक परिहार बताये गये है, अतः जब किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में कैंसरकारी या ऐसे किसी जटिल रोग की कोई संभावना दिखाई पडे तथा व्यक्ति के ऊपर मारकेश, रोगेश या त्रिक भावों के स्वामियों की दशाऽन्तर्दशा का समय चलने वाला हो या उन ग्रहों की दशाऽन्तर्दशा का समय चल रहा हो अथवा गोचर वश भी मारकेश के अशुभ प्रभाव में एकाएक वृद्धि हो जाए, तो उन अशुभ ग्रहों से संबन्धित कुछ परिहार करने चाहिए।

ऐसे उपायों में ग्रहों से संबन्धित मंत्रों का अभीष्ट संख्या में जप, जप का दशांश हवन, हवन का दशांश तर्पण, तर्पण का दशांश मार्जन और मार्जन का दशांश संख्या में ब्राह्मण भोजन कराकर उनका आर्शीवाद लेना चाहिए। ऐसे उपाय से निश्चित ही उस रोग का परिहार हो जाता है। ऐसे परिहार से काफी हद तक रोग से पूर्णतः मुक्ति मिलती देखी गई है।

इस प्रकार के पूजा विधान या अनुष्ठान आदि किसी कुशल विद्वान आचार्य के निर्देशन में ही सम्पन्न कराने चाहिए, ताकि उनका पूर्ण लाभ मिल सके।

कर्मज व्याधि से मुक्ति पाने के लिए अन्य उपाय या परिहार के साधन निम्न माने गये है-

पाशुपतास्त्र स्त्रोत

पाशुपतास्त्र स्तोत्र का अभीष्ट संख्या में जप से पुरश्चरण करना चाहिए। जप का दशांश हवन, हवन का दशांश तर्पण, तर्पण का दशांश मार्जन और मार्जन का दशांश संख्या में ब्राह्मण भोजन कराकर उनका आर्शीवाद लेना चाहिए। ऐसे उपाय से निश्चित ही कैंसर जैसी गंभीर व्याधि से काफी हद तक मुक्ति मिल जाती है।

श्री शतचण्डी सम्पुटित

यह श्री शतचण्डी अनुष्ठान भी एक अनुभूत प्रयोग है। इसके विधिवत् विधान से भी अनेक जीर्ण रोग एंव कैंसर जैसी व्याधि से ग्रसित लोगों को काफी हद तक मुक्ति मिलते देखी गयी है। इस अनुष्ठान के दौरान निम्न मंत्र का सम्पुटित लगाया जाता है। इस सम्पुटित की पाठ संख्या 108 मानी गई है। पाठ के अंत में पाठ संख्या का दशांश हवन, हवन का दशांश तर्पण, तर्पण का दशांश मार्जन और मार्जन का दशांश संख्या में ब्राह्मण भोजन कराकर उनका आर्शीवाद लेना चाहिए। सम्पुटित मंत्र:-

रोगानशेषानपहंसि तुष्टयं सम्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।

त्वामाश्रितानां न विपनराणां त्वामाश्रिता श्राश्रयतां प्रयान्ति

श्री गणपति अथर्वशीर्ष स्त्रोत

श्री गणपति अथर्वशीर्ष स्तोत्र का नियमित रूप से पंद्रह बार पाठ पाठ का दशांश हवन, हवन का दशांश तर्पण, तर्पण का दशांश मार्जन करना चाहिए। यह भी एक अति प्रभावशाली प्रयोग है।

लाल किताब के उपाय

1. अगर किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में बृहस्पति की अशुभता के कारण गैस्ट्रिक या फेंफडों से संबन्धित बीमारी का सामना करना पड़े, तो उसे रोजाना अपने मस्तक पर केसर का तिलक लगाना चाहिए तथा प्रतिदिन ही थोडी बहुत मात्रा में केसर या गोरोचन का सेवन करना चाहिए। इससे बृहस्पति की अशुभता नष्ट होती है।

2. शुक की अशुभता के कारण यदि किसी स्त्री-पुरुष में गुप्त रोग पैदा हो जाएं, तो उसे गाय की सेवा करनी चाहिए। अपने घर में गाय की पालना करनी चाहिए। मन्दिर या किसी ब्राह्मण को गाय दान करनी चाहिए। इससे शुक्र की अशुभ जन्य रोग शांत होते है।

3. सूर्य से संबन्धित बीमारियों की अवस्था यथा हृदय रोग के दौरान पानी में गुड डालकर पीना चाहिए। नियमित रूप से सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए। इससे सूर्य से संबन्धित बीमारियां नष्ट हो जाती है।

4. चंद्र से सबन्धित बीमारियों के लिए कुछ दिन तक कच्चा दूध और चावल किसी देव स्थान पर चढाना चाहिए। खीर बनाकर या बर्फी का दान किसी मन्दिर में करते रहना चाहिए। ऐसे उपायों से चंद्र से संबन्धित बीमारियां दूर होने लगती है।

5. मंगल से सबन्धित बीमारियों के लिए अर्थात् जब पेट संबन्धी बीमारियां ज्यादा परेशान करने लगे तो बरगद के पेड की जड़ में मीठा मिला कच्चा दूध निरंतर 43 दिन के चढाना चाहिए। इससे मंगल से संबन्धित बीमारियां शान्त होने लगती है।

6. बुध से समन्धित बीमारियों के लिए जब त्वचा संबंधी बीमारियों सताये तो निरंतर चार दिन अर्थात् 96 घंटे तक के लिए नाक में चांदी की तार या सफेद धागे से विधवा कर रखना चाहिए। तांबे के पैसे में सूराख करके चलते पानी में प्रवाहित करना चाहिए। इससे बुध से संबन्धित बीमारियां दूर हो जाती है।

7. शनि से सबन्धित बीमारियों के लिए चलते पानी में रोजाना कच्चा नारियल बहाना चाहिए। इससे निचित ही सहायता मिलती है।

8. राहू से सबन्धित बीमारियों के लिए मूली, जौ, सरसों का साग दान करना चाहिए। इससे राहू से संबन्धित बीमारियों में लाभ मिलता है।

9. केतु से सबन्धित बीमारियों के लिए तंदूर में मीठी रोटी बनाकर लगातार 43 दिन तक कुत्तों को खिलानी चाहिए। तंदूर मिट्टी का बना होना चाहिए। ऐसे उपाय से केतु संबन्धित बीमारियां शान्त होने लगती है।

लंबी बीमारियों के उपाय

यदि किसी परिवार में लगातार बीमारियों का दौर बना रहे। घर का कोई न कोई सदस्य सदैव बीमारी ही बना रहे। परिवार का कोई न कोई सदस्य जीर्ण रोग से ग्रस्त बना ही रहे, रोग चिकित्सकों के नियंत्रण में न आये। बार-बार परीक्षण कराने के बावजूद रोग का ठीक से निदान तक संभव न हो पाए। रोगी का परिवार जगह-जगह डॉक्टरों को दिखा-दिखा कर थकहार जाए, तो निश्चित ही निम्न उपाय अवश्य कराने चाहिए। लाल किताब आधारित इन उपायों से निश्चित ही रोग को काबू करने में मदद मिलती हैं।

1. इसमें सबसे पहले तो घर के सभी सदस्यों और महीने में घर आने वाले अतिथियों की कुल संख्या से थोड़ी अधिक मीठी रोटियां बनाकर ( रोटियां अगर मिट्टी के तंदूर में बनायी जाएं तो अति उत्तम) प्रतिमास गायों, कौओं, कुत्तों को खिलानी चाहिए। साथ ही भिकारियों को बांटानी चाहिए।

2. एक पका हुआ पीले रंग का काशीफल किसी मंदिर में चढाना चाहिए। काशीफल चढाने से पहले देख लेना चाहिए कि वह अन्दर से खोखला है वह अंदर से ठोस तो नहीं है।

3. यदि लगातार प्रयास के बावजूद बीमारी पर नियंत्रण न हो पाए, तो ऐसे मरीज को रात के समय अपने सिराहने तांबे के कुछ सिक्के रखकर सोना चाहिए। अगले दिन प्रातः काल उन्हें वह सिक्के किसी सफाई सेवक (भंगी) को दे देने चाहिए।

4. ऐसे बीमार लोग या उसके घर का कोई सदस्य जब कभी शमशान भूमि या कब्रिस्तान में से गुजरे या वहां जाएं या उसके आगे से निकले, तो उन्हें शमशान के अन्दर तांबे के कुछ सिक्के अवश्य गिराने चाहिए। ऐसा करने से उन्हें कुदरती सहायता प्राप्त होती है तथा बीमारी में आराम मिलता है।

5. यदि कोई व्यक्ति नेत्र पीडा, आँखों की बीमारी से पीडित चल रहा है, तो उन्हें शनिवार के दिन चार सूखे नारियल या तांबे के चौरस सिक्के लेकर किसी नदी में प्रवाहित करने चाहिए। इससे उन्हें दीर्घ बीमारी से मुक्ति मिलती है।

6. यदि कोई व्यक्ति डायबिटीज, आर्थराइटिस, मूत्र संबन्धी रोग, रीढ की हडडी के किसी रोग से पीडित हो, तो उसे चिकित्सा के साथ-साथ काले रंग का कुत्ता अवश्य पालना चाहिए या फिर ऐसे कुत्ते की सेवा करनी चाहिए। अपनी नाभि के ऊपर स्तूरी का लेपन करना चाहिए। इससे निश्चित ही उसकी डायबिटीज नियंत्रण में आ जाती है।

7. कान संबन्धी बीमारी होने पर एक सफेद रंग के कपडे में काले सफेद तिल बांधकर किसी जंगल में जाकर धूरे पर फेंकने चाहिए या जमींन के नीचे दबाने चाहिए।

8. उच्च रक्तचाप से ग्रस्त होने पर रात्रि को सोते वक्त अपने सिराहने तांबे या चांदी के एक पात्र में जल भरकर सोना चाहिए। अगले दिन उस जल को किसी पौधे के ऊपर चढ़ा देना चाहिए।

9. मिरगी या हिस्टीरिया के दौरे पडते हो, तो आटे के पेड़े में पताशा रखकर उसे गाय को खिलाना चाहिए। इससे मिरगी के दौरे पड़ने रूक जाते है।

10. यदि किसी व्यक्ति का ज्वर न उतर रहा हो तो उसे तीन दिन तक लगातार सांयकाल के समय किसी मन्दिर में गुड और जौ चढाने चाहिए। इस उपाय से निश्चित ही लाभ मिलता है।

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