कुंडली में यौन रोग देखने के सूत्र
नपुंसकता
नपुंसकता के पीछे कई तरह की स्थितियां काम करती है। इसके कारण पुरूष अपनी पत्नी के साथ सहवास करने में अक्षम बन जाता है या उसके वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या घट जाती है या पूरी तरह से समाप्त हो जाती हैं। इस अवस्था में पुरुष संतोनोत्पत्ति में सक्षम नहीं रहता।
ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि में इस रोग का संबन्ध शुक्र ग्रह के साथ स्थापित किया गया है। जब किसी जन्मकुडंली में शुक निर्बल बनकर बैठते है, साथ ही चन्द्रदेव भी पाप प्रभाव में पड जाए, तो वह पुरुष प्रतिकूल ग्रह की दशाऽन्तर्दशा अथवा गोचर के दौरान अनायास नपुंसकता का शिकार बनता है। इन ग्रह स्थितियों के अतिरिक्त पंचम अथवा सप्तम् भाव पर पाप प्रभाव पड़ने तथा शुक्र मंगल अथवा सूर्य से पीडित तथा सप्तम् भाव या बुध शनि की युति व्यक्ति को नपुंसक बना देती है।
जन्मकुंडली विवेचना – यह जन्मकुंडली नपुंसकता के शिकार रहे एक व्यक्ति की है। इस जातक का विवाह हुआ परंतु उसकी पत्नी प्रथम मास में ही उसे त्याग कर चली गई और फिर दोबारा एक बार भी लौट कर नहीं आयी। बाद में पता चला कि जातक नपुंसकता का शिकार है।

- लग्न में चंद्रमा की राहू से युति तथा शनि की दृष्टि है।
- जन्मकुंडली में यद्यपि उच्चस्थ बुध शुभ एंव बली जान पड़ते है, किंतु लग्नस्थ राहू तथा व्ययेश मंगल से दृष्ट होने के कारण यह भी पर्याप्त अशुभ एंव दूषित हो गये है।
- अष्टमेश बृहस्पति का व्यय भाव में स्थित होकर षष्ठ एंव अष्टम् भाव से दृष्टि संबंध बनाना पौरूष क्षमता में कमी की पुष्टि करता है।
- सप्तम् भाव में शनि की शुक्र से युति तथा लग्नस्थ राहू की दृष्टि पुनः नपुसंकता की पुष्टि कर रही है। यह जातक नपुंसकता का दंश झेलने पर मजबूर है।
नपुंसकता का व्योतिषीय उपाय
नपुंसकता की दशा में इन रोगियों के लिए सबसे पहले शुक्र को प्रबल बनाने के लिए उत्तम क्वालिटी का शुक्र रत्न ‘हीरा’ धारण करवाना चाहिए। अगर हीरा के साथ पुखराज भी धारण कर लिया जाए, तो इन्हें विशेष लाभ मिलता है।
हालिया अनुभवों से पता चला है कि यौन संसर्ग के मामलों में जो पुरुष स्वयं को फिसड्डी अनुभव करते है। अगर वह पुरुष अपने दाहिने हाथ की अनामिका उंगुली में उपयुक्त वजन का दोषरहित हीरा पहन लें, तो निश्चित ही कुछ दिनों के भीतर वह स्वयं को यौन क्रीड़ा के लिए पूर्णतः सक्षम अनुभव करने लगते है। अर्थात् उपयुक्त वजन का दोषरहित हीरा धारण करने से वह स्वंय को पूर्ण सक्षम पौरूष अनुभव करने लगते है।
इसी तरह सेक्स के मामले में ठंडी पड़ चुकी महिलाओं को भी अगर उनके बायें हाथ की अनामिका उंगुली में हीरा जठित अंगूठी पहना दी जाए, तो उनकी जिंदगी में भी पुनः बहार खिल उठती है।
जन्मकुंडली में शुक्र के नीच अथवा शत्रु राशि में स्थित रहने से सेक्स, चमडी के रोगों के साथ-साथ शुक्राणुओं की संख्या में कमी, लिंगोत्थान की कमी जैसी स्थितियां बनने लगती है। ऐसी सभी स्थितियों में हीरा पहनना अनुकूल रहता है।
अन्य यौन रोग देखने के सूत्र
यौन संबंधी अन्य रोगों के लिए निम्न ग्रह स्थितियां कारण बनती है:-
- आठवें भाव में शुक्र या शनि हो तो यौन संबन्धी रोगों की संभावना बन जाती है।
- सप्तमेश क्रूर ग्रह हो एंव बुध और शुक्र की युति बनी हो तो यौन रोग की संभावना रहती है।
- अष्टमेश मंगल के साथ शुक्र की युति बनी हो और उसके ऊपर शनि की पापी दृष्टि पड़ रही हो, तो वीर्य स्त्राव संबंधी रोग होता है।
- लग्न में शनि और अष्टम् भाव में शुक्र हो और उसके ऊपर सूर्य की दृष्टि पड़ रही हो, तो मूत्र संबंधी रोग, मूत्र के साथ वीर्य जाने की शिकायत शुरू हो जाती है।
- लग्नेश मंगल छठवें भाव में सूर्य, शुक्र, राहु के साथ युति बनाकर स्थित तो भी वीर्य संबंधी रोग, पौरूषता की कमी या बांझपन की शिकायत रहती है।
- यदि सप्तमेश शनि के साथ हो, शुक्र और सूर्य दोनों नीच के होने पर गुप्तेन्द्रिय संबंधी रोग अवश्य होते है। यदि शुक्र नीच का होकर केतू के साथ हो, तो गुप्त रोग या कैंसर जैसे जटिल रोग की संभावना बढ़ जाती है।
- अगर सातवें या नवांश में मंगल, शनि, सूर्य हो तो भी व्यक्ति को यौन संबन्धी रोग परेशान करते है।
मधुमेह (Diabetes)
निम्नलिखित योग मधुमेह सूचक हैं:
- गुरु नीच राशि का 6-8-12 भाव में हो।
- शुक्र छठे भाव में तथा गुरु बारहवें भाव में हो।
- गुरु सूर्य के साथ अस्त हो तथा उस पर राहु की दृष्टि हो।
- गुरु एवं शनि की युति 6-8-12 भाव में हो।
- गुरु, शनि तथा राहु से युत या दृष्ट हो।
- षष्ठेश व्यय भाव में तथा व्ययेश छठे भाव में हो।
ज्योतिष शास्त्र में एड्स रोग
एड्स एक विषाणु जनित गंभीर संक्रामक रोग है। इस रोग का संबन्ध व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक शक्ति के साथ रहता है। इस गंभीर रोग के दौरान व्यक्ति का रोग प्रतिरोधक तंत्र इतना कमजोर बन जाता है कि उसके शरीर में साधारण से साधारण संक्रामक रोग भी गंभीर सिद्ध होते है। उदर और श्वसन संस्थान संबंधी साधारण संक्रमण भी इनके लिए मृत्यु कारक सिद्ध होते है। ऐसे साधारण संक्रामक रोग इनके लिए अकाल मृत्यु का कारण बन जाते हैं।
ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि में इस रोग का संबन्ध शुक्र ग्रह के साथ स्थापित किया गया है। जब शुक्र के ऊपर अशुभ ग्रहों का प्रभाव पडता है, राहू मंगल भी कष्टप्रद बन जाते है, शुक्र अथवा मंगल वृष अथवा वृश्चिक राशि में एक साथ बैठ कर राहु की अशुभ दृष्टि में रहते हैं, तो इस रोग की शुरूआत होती क्योंकि इन ग्रह स्थितियों के प्रभाव से व्यक्ति अनेक लोगों के साथ अनैतिक संबन्ध स्थापित करता रहता है और अकारण ऐसा गंभीर रोग ग्रहण कर लेता है।
यदि उपरोक्त ग्रह स्थितियों के साथ जन्मकुंडली के लग्न भाव में मंगल तथा शनि के ऊपर भी चन्द्रमा की सप्तम् दृष्टि पड जाय, तो ऐसे यौन संबंधी रोगों की संभावना और बढ जाती है।
एड्स का ज्योतिषीय उपाय
एड्स जैसे यौन संबंधी रोगों के निर्वाणनार्थ इन रोगियों को शुक्र को प्रबल बनाने के लिए ‘त्रिधातु’ निर्मित अंगूठी में एक उत्तम क्वालिटी का फिरोजा और मून स्टोन जडवाकर धारण करना चाहिए। इनके लिए हीरा धारण करना भी शुभ रहता है।
इनके अतिरिक्त गुरू अथवा शनि के पीडित होने पर फिरोजा के साथ पीतांबरी नीलम अथवा फिरोजा के साथ श्यामुखी पुखराज धारण करना भी लाभदायक रहता है।
0 Comments