शुक्र सम्बंधित अंग और रोग

शुक्र भोग कारक ग्रह है। इसका प्रभाव जातक के भोग पर अधिक पडता है। जातक को यौन एंव जननेन्द्रिय संबंधी रोगों का सामना करना पडता है।

जन्मकुंडली में शुक्र के निर्बल अथवा पीडित होने अथवा शुक्र के गोचर काल में जातक को गुप्त रोग, जननेन्द्रिय के गंभीर रोग, स्त्रियों को प्रदर रोग, संतान बंध्यत्व, स्तन रोग, वक्ष ग्रन्थि के विकार, पुरुष को शीघ्रपतन, नपुंसकता, लिंग सिकुडना, उपदंश, मूत्र संस्थान के रोग, दवा की विपरीत प्रतिक्रिया, कैंसर जैसे गंभीर रोग, गंडमाला, अत्यधिक शारीरिक कमजोरी अथवा चन्द्र एंव चतुर्थ भाव के पीडित होने पर हृदय संबंधी रोग अथवा हृदयाघात का सामना करना पडता है।

रोग भाव में शुक्र संबंधी विशेष रोग

शुक्र किसी भी भाव में रोग भाव के स्वामी के साथ स्थित रहे, तो जातक को जन्म से ही नेत्र अथवा आँखा के आसपास कोई व्रण अवश्य रहता है।

रोग भाव में शुक्र के मेष राशि में होने पर जातक को श्वास संबंधी विकार, त्वचा रोग अथवा कम गर्मी में भी त्वचा पर फफोले उठना, गुप्तेन्द्रिय से रक्त प्रवाह जैसे रोग हो सकते है।

 रोग भाव में शुक्र वृष राशि में हो, तो जातक को वाणी विकार एंव गले के रोग सताते है। बुध भी यदि पापी अथवा पीडित हो तो हकलाना अथवा तुतलाना भी संभव है। किसी पापी ग्रह का प्रभाव होने पर जातक गन्दी भाषा का प्रयोग करता है।

रोग भाव का शुक्र यदि मिथुन राशि में हो, तो जातक को सांस के रोग, दमा अथवा दम घुटने के रोग होते है।

कर्क राशि का शुक्र यदि रोग भाव में बैठा हो, तो जातक को छाती के रोग एंव उदर संबंधी रोग देता है। यदि चन्द्र का चतुर्थ भाव भी पीडित हो तो जातक को अवश्य ही हृदयाघात का सामना करना पडता है।

सिंह राशि का शुक्र छठे भाव में बैठकर छाती के अनेक रोग, मूर्च्छा तथा अस्थि भंग जैसे रोग देता है।

रोग भाव में कन्या राशि का शुक्र जातक को उदर रोग, अपच एंव बडे होने तक पेट के कीडों से पीडित रखता है। यहां पर जातक खाने के बाद वमन के रोग से भी पीडित रह सकता है।

इस भाव में तुला राशि का शुक्र जातक को मूत्र संस्थान के रोग, शीघ्रपतन तथा मूत्र के धात जाना जैसे रोग देता

वृश्चिक राशि का शुक्र रोग भाव में बैठकर जातक को क्षय रोग अथवा फेंफड़ों के अन्य विकार, गुर्दा संबंधी रोग, एंव शीच में रक्त जाना व पीडाएं देता है।

मकर राशि का शुक्र रोग भाव में बैठकर जातक को कई तरह के उदर रोग, पेट में संक्रमण, कृमि रोग, खाने में मन न लगना जैसे अनेक रोग देता है। शनि भी पीडित हो तो जातक के घुटनों में कष्ट रहता है तथा घुटने कमजोर बने रहते है।

कुंभ राशि का शुक्र यदि रोग भाव हो, तो शरीर में रक्त की कमी, स्नायु विकार तथा किसी भी कारण से बार-बार शल्य चिकित्सा करवानी पड़ती है। स्त्री की जन्मकुंडली में मासिक काल में रक्त की कमी से रक्त चढाना पड़ सकता है। केतु के पीडित होने पर स्त्री पिशाच बाधा से पीडित रह सकती है।

मीन राशि का शुक्र यदि रोग भाव में बैठे तो जातक को बार-बार सर्दी लगने का डर सताता है। जातक को भारी गर्मी में भी जुकाम से परेशान रखता है। यदि गुरू भी पीडित हो तो जातक को मधुमेह रोग हो सकता है।

शुक्र महादशा का फल

जन्मकुंडली शुक्र पीडित, अकारक, अस्त, पापी अथवा दूषित हो तो उसकी दशाऽन्तर्दशा में निम्न फल प्राप्त होते है। यद्यपि शुभ ग्रह, लग्नेश या कारक ग्रह की युति अथवा दृष्टि से शुक्र के अशुभ फलों में निश्चित कमी आती है। फिर भी यह आवश्यक नहीं कि शुक्र की अशुभ स्थिति में सभी कष्ट भोगने ही पडे या फिर शुक्र अपनी शुभ स्थिति में पूर्णतः भोग ही प्रदान करे।

शुक्र ही एक मात्र ऐसा ग्रह है जो अपने अशुभ काल में कुछ ऐसे कार्य कराता है जिसका अन्त बुरा ही रहता है। फिर भी जातक उसे बहुत ही अच्छा मानते है।

उदाहरण के लिए अशुभ शुक्र की स्थिति में जातक बलात्कार जैसे निकृष्ट कार्य भी कर सकता है और इस काम को जातक अच्छा भी मान सकता है, पर यथार्थ में गोचर अथवा दशाकाल में शुक्र के अशुभ प्रभाव से यह कार्य होते है तथा आगे चलकर उसे भयावह परिणाम झेलने पडते है।

शुक्र जन्मकुंडली में सिंह अथवा कर्क राशि में हो अथवा किसी नीच ग्रह के प्रभाव में हो अथवा गुरू की किसी राशि में कोई नीच या पापी ग्रह बैठा हो अथवा शुक्र स्वंय नीचत्व को प्राप्त हो, तो ऐसे जातक को प्रायः गुप्त रोग, चोरी के माध्यम से भौतक वस्तुओं की हानि अथवा किसी पापी कर्म से मानहानि का भय सताता है।

इसके अतिरिक्त शुक्र किसी त्रिक भाव में हो अथवा त्रिक भाव के स्वामी के साथ हो, तो जातक को अत्यंत कष्ट प्राप्त होते है। इसमें भी यदि इन भावों का स्वामी कोई पाप ग्रह हो तो फिर अशुभ फल की कोई सीमा नहीं रहती।

वैसे शुक्र की महादशा में जातक भोग विलासता भरा जीवन व्यतीत करता है। उसे भोग सामग्री की प्राप्ति होती है। वाहन, आभूषण, नये वस्त्र, आर्थिक लाभ आदि की प्राप्ति होती है। उसे विपरीत लिंग से सुख एंव सम्मान मिलता है। जातक की ज्ञान वृद्धि होती है। जातक जल मार्ग से विदेश यात्रा करता है तथा राज्य में मान-सम्मान प्राप्त करता है।

मेरे अनुभव में यह सारे कार्य शुक्र के शुभ एंव शक्तिशाली होने पर ही संभव होते है। जातक के घर-परिवार में कोई मांगलिक कार्य अवश्य सम्पन्न होता है।

शुक्र महादशा में अन्य ग्रहों की अन्तर्दशा के फल

शुक्र यदि द्वितीय भाव में है तो जातक हृदयाघात, नेत्र कष्ट, शत्रु क्लेश, राजभय तथा चोरी का भय रहता है। शुक्र जन्म कुंडली में तृतीय अथवा एकादश भाव में हो तो समाज में सम्मान, अचानक धन लाभ तथा राज्य से लाभ प्राप्त होते है। जबकि अशुभ स्थिति में होने पर जातक को शारीरिक कष्ट, आर्थिक हानि, अग्नि से हानि एंव कारागार का भय रहता है।

यद्यपि यह फल तो शुक्र महादशा अन्तर्गत शुक्र अन्तर्दशा में ही मिलते है, लेकिन निम्न फल शुक्र की पूर्ण महादशा में कभी भी मिल सकते है:-

शुरू में शुक्र अन्तर्दशा फल शुक्र की महादशा का आरम्भ अधिकतर शुभ ही रहता है। इसमें भी यदि शुक्र बली होकर 1, 4, 5, 7, 9 अथवा 10 वें भाव में बैठे तो जातक को नये भवन एंव अच्छे वस्त्राभूषण की प्राप्ति के साथ आर्थिक लाभ प्राप्त होता है। जातक का मन अच्छे कार्य एंव भोग-विलासता में लगता है उसे पुत्र संतान की प्राप्ति, राज्य से सम्मान के साथ सम्पत्ति भी प्राप्ति होती है।

यदि शुक्र उच्च, स्वक्षेत्री अथवा मूलत्रिकोण के होकर 1, 5 अथवा 9 वें भाव में बैठे, तो जातक किसी एक अथवा अनेक बड़े ग्रन्थों के लेखक का कार्य करता है।

यद्यपि शुक्र के नीच, अस्त, पाप ग्रह के प्रभाव में रहने अथवा शुक्र के साथ 6, 8 अथवा 12 वें भाव में राहू के विराजमान रहने से जातक को राजदण्ड, मृत्युतुल्य कष्ट के अतिरिक्त आर्थिक हानि उठानी पडती है।

शुक्र में सूर्य अन्तर्दशा फल इस दशाकाल में जातक को प्रायः मिश्रित फल प्राप्त होते है। शुक्र अथवा सूर्य उच्च, मूलत्रिकोण, स्वक्षेत्री हो अथवा नवपंचम योग निर्मित कर रहे हो या दशमेश से सूर्य केन्द्रगत हो, तो जातक को राज्य सम्मान, कार्य क्षेत्र में उन्नति, भाई से लाभ के साथ उसकी उन्नति, माता-पिता को सुख मिलते है।

यद्यपि कोई ग्रह नीच, पाप प्रभाव अथवा षडाष्टक योग अथवा 6, 8 अथवा 12 वें भाव में हो, तो अस्थि भंग, नेत्र पीडा, राजदण्ड, पिता से अथवा किसी गुरु समान वृद्धजन से कष्ट देखने पडते है।

शुक्र में चन्द्र अन्तर्दशा फल यह दशा जातक की अच्छी व्ययतीत होती है, लेकिन और अधिक अच्छी के लिए दोनों में से किसी एक ग्रह का उच्च, स्वक्षेत्री, मूलत्रिकोण अथवा शुक्र से चन्द्र का त्रिकोण अथवा केन्द्रगत होना आवश्यक है। इस योग से जातक को विपरीत लिंगी सुख तथा स्त्री वर्ग में सम्मान, आर्थिक लाभ कर्म क्षेत्र में उन्नति अथवा उच्च पद की प्राप्ति, कन्या सन्तति की प्राप्ति जैसे फल प्राप्त होते है।

लेकिन किसी ग्रह के पाप प्रभाव में होने पर, नीच, अस्त, शत्रु क्षेत्री अथवा षडाष्टक योग निर्मित करने पर जातक को अनेक प्रकार के शारीरिक कष्ट भोगने पड सकते है। इसमें मुख्यतः मानसिक भय, दांत, सिर, नाखून की पीडा, आर्थिक संकट, टी.बी. अथवा गुल्म (तिल्ली) जैसे असाध्य रोग होते है।

शुक्र में मंगल अन्तर्दशा फल यह दशा जातक को शुभ फल की अपेक्षा अशुभ फल ही अधिक प्रदान करती है। यदि शुक्र से मंगल त्रिकोण, केन्द्रगत अथवा एकादश भाव में हो अथवा कोई ग्रह उच्च मूल त्रिकोण या स्वक्षेत्री होने पर जातक को कार्य सिद्धि, आर्थिक लाभ अथवा भूमि लाभ मिलता है।

यद्यपि किसी ग्रह के अस्त, नीच, पाप प्रभाव, शत्रु क्षेत्री अथवा षडाष्टक योग में होने पर जातक का किसी से अवैध संबंध, रक्त विकार, हाथ का कार्य छोडना, आर्थिक हानि, बुद्धि अथवा स्थान भ्रंश अथवा दुर्घटना का सामना करना पडता है।

शुक्र में राहू अन्तर्दशा फल – इस दशा में भी जातक को मिश्रित फल की प्राप्ति होती है। शुक्र से राहू यदि त्रिकोण, केन्द्रगत अथवा एकादश भाव में हो अथवा कोई ग्रह उच्च मूल त्रिकोण या स्वक्षेत्री है, तो जातक को व्यवसायिक एंव आर्थिक लाभ, सुख-ऐश्वर्य की प्राप्ति, पुत्र संतान की प्राप्ति, शत्रु विजय, कुल का सम्मान जैसे फल प्राप्त होते हैं।

यद्यपि इनमें से कोई ग्रह दुःस्थान, नीच, अस्त, शत्रुक्षेत्री, पाप प्रभाव अथवा षडाष्टक योग निर्मित करे तो जातक को प्रायः बहुत कष्ट उठाने पडते है। इन ग्रह योग जातक को विष, अग्नि, दुर्घटना, करंट लगने का भय रहता अथवा जातक अचानक जेल जा सकता है।

शुक्र में गुरु अन्तर्दशा फल मेरे अनुभव में जातक की यह दशा प्रायः अच्छी ही रहती है। इसमें भी यदि शुक्र से गुरू केन्द्र अथवा त्रिकोण में हो अथवा कोई ग्रह उच्च मूल त्रिकोण या शुभ प्रभाव या स्वक्षेत्री हो, तो जातक को संतान प्राप्ति, आर्थिक लाभ, परिवार में मांगलिक कार्य, राज्य पद एंव यश प्राप्ति के अतिरिक्त भजन-पूजन आदि में मन लगता है।

यद्यपि कोई ग्रह नीच, अस्त, शत्रु क्षेत्री, पाप प्रभाव में अथवा षडाष्टक योग निर्मित करे, तो जातक को आर्थिक कष्ट, चौर्य भय, शारीरिक पीडा तथा गुरु मारक हो तो मृत्यु अथवा मृत्युतुल्य पीडा का सामना करना पडता है।

शुक्र में शनि अन्तर्दशा का फल मेरे अनुभव में जातक को इस दशा में अच्छे फल ही मिलते है। यदि दोनों ग्रह में से कोई ग्रह उच्च, मूल त्रिकोण, त्रिकोण अथवा केन्द्रगत अथवा शुभ ग्रह के प्रभाव में हो, तो व्यक्ति को कर्म क्षेत्र में उन्नति, भूमि-भवन एंव वाहन का लाभ, राज्य में सम्मान, विशेषकर पुलिस या सेना से सम्मान, अनेक प्रकार से आर्थिक लाभ, भौतिक सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है।  यद्यपि इनमें से कोई ग्रह बली तथा एक निर्बल हो, तो जातक को उपरोक्त फल प्राप्त हो सकते है।

लेकिन यदि दोनो ग्रह बलहीन अथवा लग्नेश अथवा शुक्र से शनि षडाष्टक योग निर्मित करे, नीच, अस्त अथवा पाप प्रभाव में हो, तो जातक को आर्थिक हानि, क्लेश, आय से अधिक व्यय, व्यापार में हानि जैसे फल प्राप्त होते है। यदि शनि मारकेश हो तो जातक को अकाल मरण अथवा मृत्युतुल्य कष्ट का सामना करना पड़ता है।

शुक्र में बुध अन्तर्दशा फल इस दशाकाल में जातक को शुभ फल अधिक तथा अशुभ फल कम मिलते है। इसमें भी यदि कोई ग्रह उच्च मूल त्रिकोण, स्वक्षेत्री, केन्द्र अथवा त्रिकोणगत् हो, तो जातक को संतान सुख, सम्पत्ति प्राप्ति, कार्यों में सफलता, शत्रु विजय, साहित्यिक क्षेत्र में यश एंव धन की प्राप्ति जैसे अनेक फल प्राप्त होते है।

लेकिन कोई ग्रह नीच, अस्त, पाप प्रभाव में अथवा षडाष्टक योग निर्मित करे, तो जातक त्रिदोष अर्थात् वात, पित्त एंव कफ जन्य किसी रोग से पीड़ा हो सकती है। उसे अपयश, कुटुम्ब में क्लेश जैसे फल प्राप्त होते है।

शुक्र में केतु अन्तर्दशा फल इस दशा में जातक को प्रायः अशुभ फलों की प्राप्ति अधिक होती है। यदि शुक्र उच्च मूल त्रिकोण, स्वक्षेत्री, केन्द्र अथवा त्रिकोणगत हो अथवा केतू 3, 6 अथवा 11 वें भाव में हो, तो जातक को अल्प लाभ, सम्मान व थोड़ा सुख मिल सकते है।

यदि कोई ग्रह नीच, अस्त, पाप प्रभाव में अथवा षडाष्टक योग निर्मित करे, तो भाई से वियोग, शत्रु पीडा, सुख में कमी, सिर में पीडा अथवा चोट लगने, फोडे-फुन्सी निकलना, अग्नि भय, सम्पत्ति हानि अथवा अवैध संबंध बनने जैसे फलों की प्राप्ति होती है।


0 Comments

Leave a Reply

Avatar placeholder

Your email address will not be published. Required fields are marked *