कुंडली में कैंसर रोग देखने के सूत्र
ज्योतिषीय आधार पर कैंसर जैसी भयानक और अति कष्टकारी रोग लिए मुख्यतः राहू, केतु तथा शनि जैसे अत्यंत अशुभ एंव पापी ग्रहों को जिम्मेदार माना जाता है।
यद्यपि राहु-केतु प्रत्यक्ष तो इस रोग का कारण नहीं बनते, क्योंकि यह दोनों ही छाया ग्रह माने गये है। परन्तु यह छाया ग्रह अन्य अशुभ ग्रहों के साथ मिलकर कैंसर जैसे असाध्य रोगों के पीछे अपनी विशेष भूमिका निभाते है।
ज्योतिष में केतु को गुप्त रोग का कारक, शनि रोग को अधिक समय तक अर्थात् रोग को दीर्घावधि तक बनाये रखने एंव राहु रोग को वीभत्स बनाने का मुख्य कारण माना है। इसलिए किसी विशेष भाव, राशि तथा अंग विशेष के प्रतिनिधि ग्रह एक साथ इन तीनों ग्रहों से पीडित हो, तो कैंसर जैसी अति गंभीर बीमारियां जन्म लेती है।
केतु गुप्त रोग देता है। कैंसर भी ऐसी ही एक गुप्त रोग है। कैंसर की शुरूआती अवस्था में इसका पता नहीं चलता। जब यह रोग पूरी तरह अपनी जड जमा लेता है तभी इस रोग का पता लगता है, पर तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
शनि के कारण रोग अधिक गंभीर बन जाता है तथा अधिक समय तक चलता रहता है। इसके बाद राहु उस रोग को वीभत्स रूप प्रदान करता है।
इसलिए जब कभी कोई विशेष भाव, भाव का स्वामी राशि तथा अंग विशेष से संबन्धित भाव, राशि, भावेश के ऊपर राहू-केतु जैसे पापी ग्रहों का प्रभाव पड़ने लगे, तो उसके फलस्वरूप कैंसर जैसे रोगों की उत्पत्ति होती है।
यदि सभी कारकों पर राहू-केतु और शनि तीनों का प्रभाव एक साथ पड रहा हो, तो निश्चित ही कैंसर जैसा भयानक रोग काफी समय तक गुप्त बना रहता है और फिर अनायास भयंकर रूप में प्रकट होकर एक दिन रोगी की जान लेकर ही जाता है।
यदि इन तीन ग्रहों के साथ अन्य अशुभ बने ग्रहों का प्रभाव भी संबन्धित भाव, भावेश, राशि, ग्रह आदि के ऊपर पड़ जाए, तो उसके कारण कैंसर की पीडा और भी असाध्य एंव दुसाध्य रूप ले लेती है।
जैसे यदि उपरोक्त कारकों के साथ मंगल भी पीडित हो जाए तो रक्त कैंसर, बुध पीडित हो जाए तो त्वचा संबन्धी कैंसर, सूर्य-चंद्र के पीडित होने से अस्थि एंव मस्तिष्क में ब्रेन ट्यूमर की आशंका बन जाती है।
अतः कैंसर पीडित व्यक्ति में रोग की संभावना या उसके निदान के लिए सर्वप्रथम जन्मकुंडली में राहू-केतू की स्थिति के साथ-साथ राहू-केतू से विस्थापित ग्रहों की स्थिति का अध्ययन किया जाता है।
जैसे यदि किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में राहू और केतु शुभ भावस्थ हैं, तो उस व्यक्ति को कैंसर जैसे गंभीर रोग का खतरा कम रहता है या न के बराबर ही रहता है।
ज्योतिष शास्त्र में बृहस्पति को सबसे शुभ ग्रह माना गया है, लेकिन ज्योतिष में रोग निदान के लिए बृहस्पति की भूमिका को ही सर्वप्रथम देखा जाता है। बृहस्पति जैसे शुभ ग्रह के प्रतिकूल स्थिति में पड़ने के कारण शरीर में उत्पन्न होने या रोग के जटिल, गंभीर, असाध्य बनने की संभावना रहती है।
जब किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में बृहस्पति राहू अथवा केतु से युक्त होकर बैठते है, अथवा राहू-केतु के नक्षत्र में स्थित रहते है, या फिर राहू-केतु बृहस्पति के नक्षत्र में स्थित होकर अथवा युत या दृष्टि होकर अपना प्रभाव डालता है, तो ऐसी ऐसी समस्त ग्रह स्थितियों में बृहस्पति प्रबल पाप प्रभाव में आ जाते है और अन्ततः कैंसर जैसी व्याधि का कारण बनते है।
कैंसर व्याधि की तीव्रता या उसके प्रसार को जानने के लिए बुध की स्थिति को भी देखा जाता है। यदि किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में बुध पापकांत होकर बैठे या मंगल से युक्त होकर अथवा मंगल के नक्षत्र में स्थित हो या फिर मंगल और बुध के मध्य परस्पर राशि परिवर्तन योग बने या बुध राहू-केतू के अशुभ प्रभाव में बैठे तो प्रतिकूल ग्रहों की दशाऽन्तर्दशा या गोचर वश कैंसर कोशिकाएं शीघ्र ही अनियन्त्रित एंव अव्यवस्थित होकर फैलने लगती है। इससे शीघ्र ही वह व्याधि अत्यंत गंभीर रूप धारण कर लेती है।
अष्टम् भाव को आयु भाव भी कहते है, जबकि तृतीय भाव भी अष्टम् से अष्टम् स्थान पर स्थित रहने के कारण आयु भाव बन जाता है। अतः जब इन भावों के स्वामी अथवा ये भाव रोग कारक ग्रहों से प्रभावित रहते है, तो भी कैंसर जैसी व्याधि के उत्पन्न होने की आशंका बढ़ जाती है।
कैंसर व्याधि के निदान के लिए जन्मकुंडली में शनि, मंगल की स्थिति को भी देखना जरूरी है। यदि शनि और मंगल 6, 8 अथवा 12 वें भाव से संबन्धित होकर बृहस्पति, बुध, राहू या केतू के साथ किसी भी रूप में प्रभावित हों, तो भी कैंसर की संभावना बढ जाती है।
कुछ अन्य रोग, व्याधियों से संबन्धित ग्रह स्थिति निम्न प्रकार निर्मित होती है:-
- यदि चन्द्रमा के साथ लग्नेश या षष्ठेश युति बनाकर 6, 8 अथवा 12 वें भाव में स्थित हो जाए, तो उस व्यक्ति के शरीर में कही न कहीं कोई जटिल व्याधि जन्म लेती ही है। यह व्याथि ट्यूमर सदृश्य भी हो सकती है।
- चन्द्रमा यदि कैंसरकारी उपरोक्त ग्रह योगों से प्रभावित हो जाए, तो भी उदर और अंतडियों से संबन्धित कैंसर जैसी असाध्य व्याधि के जन्म लेने की संभावना बढ जाती है।
- यदि षष्ठ भाव में स्थित होकर सूर्य अथवा राहू जैसे क्रूर ग्रह शनि और मंगल के ऊपर अपना अशुभ एंव क्रूर प्रभाव डाले, तो भी व्यक्ति किसी न किसी गंभीर रोग से ग्रस्त रहता ही है।
- यदि किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में लाभेश षष्ठ भाव में स्थित हो, तो भी व्यक्ति किसी न किसी गंभीर व्याधि की चपेट में आता है।
- यदि चंद्रमा कर्क, वृश्चिक अथवा कुंभ के नवांश में जाकर बैठ जाए, साथ ही शनि भी उसके साथ युति बनाकर बैठे, तो भी ऐसी ग्रह स्थिति में व्यक्ति के शरीर में कोई न कोई जटिल व्याधि उत्पन्न होती है। यह व्याधि ट्यूमर के रूप में भी हो सकती है।
- शुक के पापाक्रांत होकर बैठने से मुंह से संबन्धित कैंसर जैसी व्याधि के जन्म लेने की आशंका रहती है।
- यदि कोई क्रूर और पापी ग्रह षष्ठेश के रूप में लग्न स्थान पर स्थित हो जाए या लग्नेश को प्रभावित करे अथवा अष्टम् भाव और अष्टमेश अथवा दशम् भाव को प्रभावित करे, तो भी कैंसर जैसी व्याधि की प्रबल संभावना रहती है।
- यदि बृहस्पति अथवा बुध षष्ठेश के रूप में शनि, मंगल, राहू अथवा केतु से प्रभावित होकर बैठे, तो भी कैंसर की प्रबल संभावना रहती है। षष्ठ भाव का स्वामी क्रूर ग्रह तब ही बनता है, जब लग्न सिंह, कन्या, वृश्चिक, मीन अथवा मिथुन रहते हैं। षष्ठेश के लग्न भाव में जाकर बैठने से निश्चित ही व्यक्ति की शारीरिक क्षमता, ओजस्वता, कर्मठता आदि के साथ प्रतिरक्षक शक्ति भी प्रभावित होती है। यही स्थिति आगे चलकर कैंसर जैसी व्याधियों की नींव रखती है।
- यदि किसी जन्मकुंडली में कैंसरकारी ग्रह स्थितियां बन रही हो और वह ग्रह योग मंगल आदि से भी पीडित हो जाएं, उदर संबन्धी, विशेषकर गॉल ब्लैडर से संबन्धित व्याधि की संभावना बनती है।
- इसी तरह शनि षष्ठ भाव में राहू के नक्षत्र – आर्द्रा, स्वाति, शतभिषा में से किसी एक में बैठे, तो भी कैंसर जैसे रोग की संभावना रहती है।
- शनि और मंगल आदि राहु के आर्द्रा या स्वाति नक्षत्र व षष्ठ भाव में स्थित हों, तो भी कैंसर योग की स्थिति बनती है।
- यदि लग्नेश और षष्ठेश दशम् अथवा चतुर्थ भाव में जाकर बैठे तथा उनमें से एक ग्रह बृहस्पति हो अथवा बृहस्पति इन ग्रहों के साथ युति बनकर बैठे तथा यह ग्रह युति मंगल और शनि के पाप प्रभाव में आ जाए, तो छाती से संबन्धित जटिल रोग की संभावना रहती है। वक्ष कैंसर से पीडित महिलाओं में यह ग्रह स्थिति देखी जाती है।
- जब किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में उपरोक्त ग्रह स्थितियां विद्यमान रहें और उन्हें बृहस्पति या राहु की दशाऽर्न्तदशा के दौरान या 6, 8, 12 वें भाव स्वामी अथवा मारकेश की दशा उर्न्तदशा का समय लग जाए, तो या तो उनके शरीर में अनायास किसी दुसाध्य रोग की शुरूआत होती है या फिर उनका वह रोग एकाएक गंभीर रूप धारण करने लगता है।
कैंसर रोग में ज्योतिषीय उपाय
अगर ज्योतिष विश्लेषण से किसी व्यक्ति में कैंसर का निदान हो, तो यथाशीघ्र अर्थात् रोग की शुरूआती अवस्था में ही उस अंग विशेष अर्थात् जन्मकुंडली के पीडित भाव, राशि तथा ग्रह को शुभत्व प्रभाव प्रदान करने के लिए उपयुक्त रत्न धारण करना चाहिए एंव अशुभ ग्रहों की शान्ति के लिए उनसे संबन्धित वस्तुओं का दान पुण्य एंव मंत्र जाप करना चाहिए।
कैंसर जैसे भयंकर रोग को नियन्त्रित करने में रत्न, धातुएं और ज्योतिष आधारित कई तरह के उपाय काफी मददगार सिद्ध होते है। ऐसा देखने में आया है कि शरीर का जो अंग व्याधि ग्रस्त हुआ है, उस अंग से संबन्धित भाव, राशि तथा ग्रह को शुभत्व प्रदान करने, बल प्रदान के लिए उसका रत्न धारण करने से रोग की वीभत्सता घटने लगती है।
अतः इन रोगियों को दोषरहित श्रेष्ठ क्वालिटी एंव पर्याप्त वजनी केतु रत्न लहसुनिया या राहु रत्न गोमेद, कांसे या पंच धातु निर्मित अंगूठी में जडवाकर धारण कराने से आराम मिलता है। इसके साथ अशुभ ग्रहों की दोष शान्ति के उपाय करने से कैंसर रोगियों को तुरंत आराम मिलने लगता है।
मैंने रक्त कैंसर के अनेक मामलों में केतु रत्न के साथ मूंगा धारण करवाकर साथ ही राहू-केतु, शनि आदि पापी ग्रहों की वस्तुओं के दान-पुण्य एंव अन्य उपायों की मदद से अनेक रोगियों की जटिलता कम होते देखी है। इस प्रकार के उपायों के साथ कैंसर रोग संबंधी परंपरागत चिकित्सा के भी अनुकल परिणाम मिलते हैं। इस प्रकार यह रोगी कैंसर जैसी व्याधि से पीडित होने के बावजूद दीर्घजीवन जी लेते हैं।
यह महिला दीर्घकाल तक स्तन कैंसर से पीडित रही। लग्न भाव में व्ययेश चंद्रमा की राहू से युति तथा लग्नेश सूर्य के द्वितीय (मारक) भाव में षष्ठेश शनि से युत बनाना दीर्घकालीन रोग की पुष्टि कर रहा है। केन्द्र व त्रिकोण भाव में कोई शुभ ग्रह स्थित नहीं पंचमेश बृहस्पति (अष्टमेश भी) की सप्तम्, नवम तथा एकादश भाव पर दृष्टि निश्चित ही पति, पुत्र व भाग्य सुख का संकेत दे रही है।

भाग्येश मंगल की धनेश-लामेश बुध से धन भाव में युति तथा भाग्य एंव कर्म भाव पर दृष्टि, राजयोग कारक बनकर, आर्थिक स्थित को सुदृढ बना रही है। कभी दुर्बल व अनिष्टप्रद कुंडली को मात्र एक या दो ग्रह की दृष्टि-युति कियी प्रकार का शुभत्व प्रदान करते है। ये कुंडली इसका ज्वलंत प्रमाण है।
चतुर्थेश मंगल की शनि से युति तथा षष्ठेश शनि की चतुर्थ भाव पर दृष्टि, स्तन कैंसर का कारण बन रही है।
इस महिला को राहू के अन्तर्गत गुरू अर्न्तदशा के दौरान अपने बाएं स्तन में एक गांठ बनने का पता चला। जिसे बाद में कैंसर की गांठ घोषित किया गया।
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